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क्या सत्ता के लिए बेचैन लोग बिहार में अराजकता का माहौल पैदा करा रहे हैं?

सत्ता का सुख भोग चुके लोग दोबारा सत्ता पाने के लिए बेचैन हैं. वो कुछ भी करने को तैयार हैं

Kanhaiya Bhelari

कुछ साल पहले का एक रोचक प्रसंग है. राज्य में हुए विधानसभा चुनाव से कुछ सप्ताह पहले ‘राजा’ ने एक कड़क छवि के उभरते राजनेता को देर रात अपने आवास पर चुपके से बुलाया और कहा, ‘आप पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर मुझे गाली दीजिए. इसके बदले जितना ‘राशन’ चाहिए आपके आवास पर पहुंच जाएगा.’ राजनेता ने ईमानदारी से अपना काम पूरा किया और दूसरी तरफ राजा ने भी अपना वचन निभाया.

चुनाव जीतने के बाद ‘राजा’ ने बताया कि ‘उनके गाली देने से मुझे बहुत चुनावी फायदा हुआ. ओबीसी और ईबीसी के मतदाता जो हमसे नाराज चल रहे थे फिर मेरे पक्ष में गोलबंद हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि एक उच्च जाति का नेता हेलीकाप्टर घुमा-घुमाकर गाली दे रहा है. इसका मतलब है कि हमारा राजा हमारे भले के लिए जरूर कोई नेक काम कर रहा है.’


इस कर्मकांड के नायक अभी जीवित हैं पर स्वयं निष्क्रिय हैं. लेकिन लगता है कि उनकी सोच अभी भी चलन में है. ये वही नेता हैं जिन्होंने सत्तर के दशक में मात्र अपने राजनीतिक लाभ के लिए आवाज बदलकर फोन से अपने मरने की झूठी खबर राज्यभर में फैला दी थी. इनका मानना रहा है कि सियासी लाभ व सत्ता को हथियाने के लिए जायज और नाजायज पर बहस नहीं की जाती है. येन, केन, प्रकारेण कुर्सी को झपट लिया जाता है.

खुद ही मर्ज बने और खुद ही हाकिम भी

गंभीरता से विवेचना करने पर दिख रहा है कि पिछले कुछ दिनों से राज्य में घट रही हिंसक और शर्मशार करने वाली घटनाएं ऊपर वर्णित विचार और सोच से बहुत अच्छी तरह मेल खा रही हैं. सत्ता का सुख भोग चुके लोग दोबारा सत्ता पाने के लिए बेचैन हैं. वो कुछ भी करने को तैयार हैं. अपने हित को साधने के क्रम में उन्हें सही-गलत की पहचान नहीं करनी है क्योंकि यही विचार और सोच उनको ‘विरासत’ में मिली है. घटनास्थल के दर्शन करने पर स्पष्ट और प्रमाणिक सबूत मिल रहा है कि इसी सोच के महारथी लोग जनता को दर्द दे रहे हैं और हाकिम बनकर दवा देने का भी नाटक कर रहे हैं. ऐसा कर-कराके वो अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे कि नहीं ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

इसी विचार के लोगों ने भोजपुर जिला के विंहिया बाजार का आंचल 20 अगस्त को मैला किया है. लोग-बाग बताते हैं इस सोच के युवकों ने अफवाह फैलाने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अनुसूचित समाज की महिला को निवस्त्र करके पूर बाजार में घंटों घुमाया. अब प्रशासन भी मान रही है कि अरेस्ट किए गए 15 संदिग्धों में कई लोग इस सोच के हैं. घटना के विरोध में प्रदर्शन करने का काम भी इसी जमात के लोग कर रहे थे. विंहिया की जनता बातचीत के क्रम में बता रही है कि दोषी और विरोधी दोनों एक ही चना के दाल हैं. फिर ये विरोध और हंगामा मजाक नहीं तो और क्या है?

अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश

अगस्त 17 को भोजपुर जिला के सहार थाना में घटी घटना के पीछे भी इसी सोच के लोगों का हाथ है. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि एक दबंग विधायक ने सरकार को बदनाम करने के लिए चैकीदार के लड़के की हत्या पर बवंडर खड़ा करवाया और जब पुलिस लाश उठाने गई तो भीड़ जुटाकर पुलिस को पिटवाने का काम किया ताकि अराजकता का माहौल बने. एक महिला पुलिसकर्मी को भी बेदर्दी से पीटा गया. इसी भीड़ में से किसी ने तमंचे से दारोगा पर गोली दाग दी. दारोगा अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं. घटना के दूसरे दिन वही भीड़ कानून को हाथ में लेकर सड़क जाम कर रही थी और देश और प्रदेश सरकार के खिलाफ नारा लगा रहीं थी.

उसी प्रकार, वैशाली जिला अंतर्गत जन्दाहा प्रखंड के ब्लाक प्रमुख मनीष कुमार सहनी की हत्या 13 अगस्त को दिन दहाड़े होती है. एफआईआर में रामबाबू सहनी और उनका बेटा अभय सहनी नामजद अभियुक्त बनाए गए हैं. मृतक का भाई ओम प्रकाश सहनी लिखता है कि रामबाबू के कहने पर उसका बेटा अभय सहनी पिस्टल से गोली मारता है. जनता दल यू के एमएलसी और प्रवक्ता नीरज कुमार बताते हैं कि ‘आरोपी एक राजनीतिक दल के प्रखंड अध्यक्ष हैं. अभी तक उनको दल से भी नहीं निकाला गया है.’ उनका सवाल है कि ‘कानून-व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह उठाने और चिल्लाने वाले नेताओं की मंशा क्या है?’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)