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उपराष्ट्रपति चुनाव: विपक्ष की बैठक से नदारद नीतीश का संदेश क्या है?  

विपक्ष की रणनीति को कुंद करने के लिए एक बार फिर नीतीश की किसी नई गुगली से इनकार नहीं किया जा सकता.

Amitesh

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर विपक्ष की साझा बैठक से नदारद रहने वाले हैं. उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी एकता की खातिर इस बार फिर से 18 दलों के नेताओं की साझा बैठक बुलाई गई है. लेकिन जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार इस बैठक में शिरकत नहीं करेंगे.

इसी दिन नीतीश कुमार ने पटना में अपनी पार्टी के विधायकों और जिलाध्यक्षों की बैठक बुलाकर दिल्ली पहुंचने की किसी भी संभावना को खत्म कर दिया है. हालांकि जेडीयू की तरफ से शरद यादव और के सी त्यागी विपक्ष की बैठक में शिरकत करेंगे. जेडीयू महासचिव के सी त्यागी ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में बताया कि उनकी पार्टी जेडीयू विपक्ष की बैठक में शामिल होगी.


उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन को लेकर राष्ट्रपति चुनाव के वक्त की कहानी फिर याद आ रही है. राष्ट्रपति चुनाव के वक्त भी विपक्षी दलों की तरफ से कुछ इसी तरह की बैठक हुई थी जिसमें विपक्षी नेताओं ने साझा उम्मीदवारी को लेकर चर्चा की थी. लेकिन, उस वक्त भी नीतीश कुमार ने अपनी व्यस्तता का हवाला देकर दिल्ली की बैठक से किनारा कर लिया था.

हालांकि विपक्ष की बैठक में उस वक्त भी शरद यादव और के सी त्यागी ने भाग लिया था. विपक्षी नेताओं के जमावड़े से नीतीश ने कन्नी काटकर संकेत दे दिए थे कि विपक्ष केवल विपक्षी एकजुटता के नाम पर जो कुछ कर रहा है, उससे वो सहमत नहीं हैं.

आखिरकार हुआ वैसा ही. जब विपक्ष ने रामनाथ कोविंद के नाम पर राष्ट्रपति चुनाव के वक्त समर्थन पर आनाकानी की तो नीतीश ने पहले ही विपक्ष से किनारा कर लिया. विपक्ष की बैठक में तो इस बार ना शरद यादव पहुंचे और ना ही के सी त्यागी. मीरा कुमार के नाम के ऐलान से पहले ही नीतीश ने रामनाथ कोविंद के नाम पर समर्थन का ऐलान कर दिया.

अब एक बार फिर नीतीश विपक्ष की बैठक से गायब हैं. रस्मअदायगी के लिए शरद यादव और के सी त्यागी हिस्सा लेने पहुंचेगे. तो अब नीतीश के लिए विपक्ष की बैठक की गंभीरता का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.

नीतीश कुमार इस बैठक में पहुंचे भी तो कैसे. अभी कुछ दिन पहले ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेसी नेताओं की तरफ से उनके सिद्धांत के ऊपर ही सवाल खड़े किए गए थे. गुलाम नबी आजाद की बात उन्हें इस कदर नागवार गुजरी की कांग्रेस को गांधी से लेकर नेहरू तक के सिद्धांतों की याद दिला दी.

विपक्ष को एक सामूहिक एजेंडे पर आगे बढ़ने की नसीहत भी दी. लेकिन, लगता है अभी भी नीतीश कुमार इस बात को भूले नहीं हैं. लिहाजा, एक बार फिर उपराष्ट्रपति पद के मुद्दे पर बैठक से अपने आप को अलग कर लिया है.

उधर, बिहार के भीतर महागठबंधन की गांठ और उलझ गई है. आरजेडी की तरफ से तेजस्वी के इस्तीफे के इनकार के बाद नीतीश के लिए मुश्किलें कुछ ज्यादा बढ़ गई हैं. इस उहापोह के बीच दिल्ली जाकर लालू के साथ मंच साझा करना शायद नीतीश कुमार को मंजूर नहीं. तभी वो विपक्षी बैठक से दूरी बना रहे हैं.

लेकिन, पटना में होने वाली जेडीयू की बैठक पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी. क्योंकि, एक तरफ जब विपक्ष उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर बीजेपी को घरेने की रणनीति पर काम कर रहा होगा. तो इधर पटना में नीतीश कुमार बिहार के भीतर पैदा सियासी संकट और उलझन से अपने-आप को निकालने की कोशिश कर रहे होंगे.

आरजेडी विधायक दल की बैठक के बाद मिले संकेतों के बाद नीतीश कुमार के लिए राहें आसान नहीं लग रहीं. विकल्प सीमित लग रहे हैं. कांग्रेस भी उनके मुकाबले लालू के प्रति ज्यादा नरम है. ऐसे में विपक्ष की रणनीति को कुंद करने के लिए एक बार फिर से नीतीश की किसी नई गुगली से इनकार नहीं किया जा सकता.