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अपराध के साथ रिश्वतखोरी पर भी कमजोर पड़ रही है नीतीश कुमार की लगाम

बेशक नीतीश कुमार ने दंगाइयों को शांत कर रखा है लेकिन, अपराध की तरह रिश्वतखोरों पर उनकी पकड़ ढीली हो रही है

Arun Ashesh

सीएम नीतीश कुमार का सूत्र वाक्य है...अपराधी, रिश्वतखोर और दंगाइयों से समझौता नहीं करेंगे. बेशक वो निजी तौर पर इन तीनों बुरे विचार के तत्वों से समझौता नहीं करते हैं. दंगाइयों को उन्होंने शांत कर रखा है. लेकिन, अपराध की तरह रिश्वतखोरों पर उनकी पकड़ ढीली हो रही है या पहले की तरह मजबूत नहीं रह गई है. ग्राम पंचायत से लेकर मुख्यालय तक रिश्वतखोरी की शिकायत मिल रही है. अभी हाल में निगरानी टीम ने एक मुखिया को एक लाख 20 हजार रुपए लेते पकड़ लिया.

औरंगाबाद के जिला सहकारिता पदाधिकारी वीरेंद्र कुमार जून के पहले सप्ताह में रिश्वत के डेढ़ लाख रुपए सहित धरे गए. जल संसाधन विभाग की ओर से 68 इंजीनियरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई. इनमें जूनियर से लेकर एक्जक्यूटिव इंजीनियर तक शामिल हैं. आरोप है कि ये सब विभागीय निर्माण में 90 फीसदी सीमेंट खा गए.


कार्रवाई के दायरे में तीन बड़े ठेकेदार भी आए. सरकार की इस कार्रवाई से ही जाहिर हो रहा है कि उसके मुलाजिम रिश्वतखोरी के मोर्चे पर सीएम की जीरो टोलरेंस वाली पाॅलिसी पर कतई भरोसा नहीं करते हैं. क्योंकि यह घपला वर्षों से चल रहा था. हां, सीएम के अलावा विभागीय मंत्री राजीव रंजन सिंह को यह श्रेय जाता है कि गड़बड़ी पकड़ में आते ही उन्होंने कार्रवाई की. फिर भी यह सवाल उठता ही है कि वर्षों से यह सब कैसे चल रहा था. पता नहीं, इस समय कहां-कहां चल रहा है.

रिश्वत की रकम से घर बना तो सरकार ले लेगी

2005 में सत्ता में आने के साथ ही नीतीश ने रिश्वतखोरी के खिलाफ कार्रवाई का मन बनाया. अपराधियों के खिलाफ स्पीडी ट्रायल की तरह रिश्वत के मामलों के जल्द निबटारे के लिए छह स्पेशल कोर्ट बनाए गए. रिश्वत की कमाई से बने सरकारी अधिकारी के एक मकान को 2010 में जब्त कर उसमें बच्चों का स्कूल खोला गया.

सीएम उन दिनों ब्लाॅग लिखते थे. इस कार्रवाई की घोषणा अपने ब्लाॅग पर की- ‘विगत सप्ताह हमारी सरकार ने एक ऐसे मुकाम को हासिल किया, जिसके लिए मैं प्रतिबद्ध था. हमारी सरकार ने एक ऐसे वरीय लोकसेवक के घर में प्राथमिक विद्यालय की शुरुआत की, जिनपर आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोप में मुकदमा चल रहा था. उक्त भवन में उस प्राथमिक विदयालय का स्थानांतरण किया गया, जहां गरीब एवं वंचित समाज के बच्चे पढ़ते थे.’

उन्होंने वादा किया था कि आनेवाले दिनों में ऐसे और मकान जब्त किए जाएंगे. इनमें स्कूल के अलावा गरीबों के लिए विश्राम गृह भी खुलेंगे. कुल मिलाकर माहौल यही बनाया जा रहा था कि रिश्वत से अर्जित धन से मकान-दुकान बनाने का कोई फायदा नहीं है. क्योंकि सरकार आज न कल इसपर कब्जा कर ही लेगी.

2006 में रिश्वतखोरों के जेल जाने की रफ्तार तेज हो गई. कांग्रेस और राजद के शासनकाल में राजनीतिक दृष्टि से चुनिन्दा कार्रवाई करने के आरोपों से घिरा निगरानी विभाग भी सक्रिय हो गया था. राज्य सरकार के पास अपने अधिकारी कम पड़ रहे थे. इसके चलते केंद्र सरकार के आईबी और दूसरे विभाग के रिटायर अफसरों को निगरानी विभाग से जोड़ा गया. रिश्वतखोरी नहीं रुकने वाली थी, नहीं रुकी. लेकिन, खुला खेल कुछ हद तक बंद हुआ. कुछ समय के लिए ही सही रिश्वतखोरों को डर लगा. बाद में सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौटने लगा.

ठंडा पड़ने लगा निगरानी का जोश

शुरुआती दौर में निगरानी विभाग ने अच्छा काम किया. चंद आईएएस और आइपीएस अफसरों के अलावा पुलिस के छोटे अधिकारियों के घर छापामारी कर निगरानी विभाग ने इस आरोप से एक हद तक खुद को मुक्त किया कि उसकी नजर छोटे मुलाजिमों पर ही रहती है.

2015 से अब तक दो आईएएस और एक आइपीएस निगरानी विभाग की चपेट में आ चुके हैं. इधर के वर्षों में अपराध नियंत्रण की तरह इस मोर्चे पर भी सुस्ती नजर आने लगी है. इस साल के छह महीने में अबतक निगरानी विभाग की सिर्फ डेढ़ दर्जन कार्रवाई हुई है. जबकि आम चर्चाओं में रिश्वतखोरी की शिकायतें कहीं से कम नहीं हो रही हैं.

निगरानी विभाग के अपने रिकार्ड से भी जाहिर होता है कि उसकी कार्रवाई नागरिकों की परेशानी और रिश्वत से होनेवाली परेशानियों से मेल नहीं खा रही है. 2006 में 61 सरकारी सेवक रंगे हाथ पकड़े गए थे. उसके अगले साल 104 पर कार्रवाई हुई. 2007 के बाद सिर्फ 2016 में कार्रवाई का आंकड़ा सौ को पार कर सका था. चुनावी वर्ष में न जाने किन वजहों से निगरानी विभाग की कार्रवाई बेहद धीमी हो जाती है.

2010 में 64 और 2015 में 44 कार्रवाइयां हुईं. इन वर्षों में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे. वैसे निगरानी विभाग की सुस्ती नीतीश कुमार के दूसरे कार्यकाल में पूरी तरह रही है. बीच में कुछ महीनों के लिए जीतनराम मांझी भी सीएम बने थे. सबसे कम 28 ट्रैप केस 2014 में दर्ज किए गए. उस साल लोकसभा का चुनाव हुआ और हार के बाद नीतीश ने मांझी को सत्ता सौंप दी थी. कह सकते हैं कि राजनीतिक अस्थिरता या सीएम की अन्यत्र व्यस्तता से निगरानी विभाग  का काम भी प्रभावित होता है.

ज्यादा छोटी मछलियां ही फंसती हैं

नीतीश के शासन में आज की तारीख तक निगरानी विभाग में 840 (2006-18) मामले दर्ज हुए. निगरानी विभाग के पास इसका हिसाब नहीं है कि जांच-अनुसंधान के बाद कितने लोग आरोपों से मुक्त हुए. इन मामलों के निपटारे के लिए छह स्पेशल कोर्ट हैं. जजों की कमी से निगरानी कोर्ट भी अप्रभावित नहीं हैं.

यह देखना दिलचस्प है कि निगरानी की पकड़ में किस स्तर के रिश्वतखोर आते हैं. सबसे अधिक रकम के साथ पकड़े गए अधिकारी हैं-महर्षि राम. ये नवादा में एडिशनल कलक्टर थे. दो साल पहले इन्हें चार लाख रुपए की रिश्वतखोरी में पकड़ा गया. लाख से अधिक रिश्वत लेते पकड़ में आए अफसरों की तादाद बमुश्किल तीन दर्जन होगी. ज्यादा तो लाख से कम वाले ही हैं. लेकिन निगरानी विभाग के पास भी बड़े रिश्वतखोरों की खबर नहीं पहुंचती है. तबादले में जहां रिश्वत का खेल होता है, वहां पहुंचने के बारे में तो निगरानी की टीम सपने में भी नहीं सोच सकती है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)