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बिहार: तेजस्वी की जनादेश अपमान यात्रा का नीतीश जवाब दे पाएंगे?

तेजस्वी यादव और शरद यादव उनके के लिए राह मुश्किल कर रहे हैं

Arun Tiwari

नीतीश कुमार को भारतीय राजनीति के उन विरले नेताओं में शुमार किया जाता है जो अपने राजनीतिक निर्णयों को आसानी के साथ जस्टीफाई कर लेते हैं. उन्होंने कई बार आम धारणा के विपरीत निर्णय लिए. अपनी पार्टी की आम विचारधारा से अलग हटकर निर्णय लिए.

लोग आश्चर्य करते रहे कि नीतीश कुमार इस बार तो फंस ही गए. लेकिन हर बार नीतीश लोगों के बीच आकर एक बेहतर सा एक्सप्लेनेशन देते हैं और विरोध में बहती हर बयार को अपनी तरफ से मोड़ देते रहे हैं. उनकी इस राजनीतिक काबिलियत की तारीफ भी की जाती है.


ये सर्वविदित तथ्य है कि नीतीश कुमार ने जब 2013 में भारतीय जनता पार्टी के साथ 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ा था तो उनकी पार्टी में ही इसका काफी विरोध था. एनडीए के संयोजक रहे शरद यादव भी नहीं चाहते थे कि बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ा जाए.

कार्यकर्ताओं के स्तर पर भी काफी विरोध था क्योंकि जमीन पर तो असली लड़ाई आरजेडी और जेडीयू कार्यकर्ताओं के बीच ही चलती रही थी. लेकिन नीतीश कुमार ने ये निर्णय लिया और बेहद आसानी के साथ इससे बाहर निकल गए.

लेकिन इस बार आरजेडी से दोस्ती टूटने की कहानी थोड़ी अलग नजर आ रही है. नीतीश कुमार बिहार में चौतरफा घिरे हैं. शरद यादव फिर एक बार उनके सामने विरोध में खड़े हैं. शरद यादव ने बीजेपी और जेडीयू गठबंधन बनाने का विरोध करते हुए कहा कि हमें सांप्रदायिक ताकतों के साथ नहीं जाना चाहिए.

शरद यादव के ऐसा कहते ही लालू यादव ने जेपी मूवमेंट के समय की याद दिलाते हुए ट्वीट किया, 'मैं और शरद जी काफी पुराने साथी हैं और उन्हें हमारा साथ देना चाहिए'. तेजस्वी यादव ने भी शरद यादव से साथ देने की अपील की.

शरद यादव का विरोध अगर एक तरफ रख दिया जाए तो भी नीतीश के सामने आरजेडी कम बड़ी चुनौती नहीं है. आरजेडी के पास इस समय 80 विधायक हैं अगर कांग्रेस के 27 की संख्या को भी जोड़ दें तो 110 के करीब पहुंचता है.

ये संख्या बहुमत से बहुत ज्यादा पीछे नहीं. यानी एक मजबूत विपक्ष नीतीश के सामने खड़ा है. विपक्ष कमजोर होता है तो सत्तासीन पार्टी को सरकार चलाने में ज्यादा मुश्किलें नहीं आतीं. एक और बात जो आरजेडी को इस समय मजबूत बना रही है वो हैं तेजस्वी यादव.

जिस दिन नीतीश कुमार सदन में बहुमत साबित कर रहे थे उस दिन तेजस्वी यादव ने एक लंबा भाषण दिया था. उस भाषण के दौरान तेजस्वी यादव मंझे हुए राजनेता की तरह बोल रहे थे. उन्होंने नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाए. जवाब देने जब नीतीश कुमार खड़े हुए थे तो उन्होंने बस यही कहा कि मैं एक-एक बात का जवाब दे सकता हूं लेकिन मैं पर्सनल हमले नहीं करना चाहता.

इसके बाद अब जिस तरह से आरजेडी पूरे प्रदेश में यात्रा निकालने की बात कर रही है वो फिर पूरे प्रदेश की राजनीति को गरमाने वाला है. तेजस्वी यादव ने 9 अगस्त को 'जनादेश अपमान यात्रा' की शुरुआत कर दी है. उन्होंने कहा कि वो पूरे बिहार में आरएसएस-बीजेपी भगाओ आंदोलन छेड़ेंगे.

9 अगस्त के दिन को भी आरजेडी ने सांकेतिक रूप से ही चुना है. तेजस्वी की अगुवाई में आरजेडी इस मौके पूरे प्रदेश में जेडीयू और बीजेपी के प्रति आक्रोश में तब्दील करने की पूरी कोशिश कर रही है.

तो नीतीश कुमार, जो एक्सप्लेनेशन के माहिर माने जाते हैं, कैसे इस बार भी लोगों को समझाने में कामयाब होते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा. हालांकि इस मामले में उनका ट्रैक रिकॉर्ड देखकर तो कहा जा सकता है कि वो इन परिस्थितियों से बाहर आ जाएंगे. क्योंकि पहले से काफी मजबूत होने के बावजूद आरजेडी भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरी हुई है.

नीतीश कुमार उसके भ्रष्टाचारों का सहारा लेकर पूरे विरोध को फुस्स भी कर सकते हैं. बस पेंच यही है कि तेजस्वी और नीतीश में जनता किस पर भरोसा ज्यादा जताती है.