view all

भारत बंद: दलितों के विरोध-प्रदर्शन का कौन है असली नेता और सूत्रधार?

खुफिया एजेंसियों के साथ ही सरकार की कानून लागू करने वाली मशीनरी से 'भारत बंद' को लेकर गंभीर चूक हुई, जो जमीनी हकीकत का आकलन नहीं कर सकीं

Yatish Yadav

यह भीम आर्मी है, नेशनल कनफेडरेशन फॉर दलित ऑर्गेनाइजेशन (NACDOR) है या एक अनजान दलित युवा, जिसने एक हफ्ते पहले पहली बार वाट्सएप मैसेज भेज 'भारत बंद' का आह्वान किया था? सोमवार को देश भर में दलित संगठनों के लाखों लोग हाथों में 'देश संविधान से चलेगा, फासीवाद से नहीं' जैसे नारे लिखी तख्तियां और बैनर थामे सड़कों पर निकल पड़े तो उन्हें देखकर  दिल्ली में सुरक्षा एजेंसियों के आला अफसर हड़बड़ा उठे. प्रदर्शनकारी दलितों के उत्पीड़न को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे थे.

शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन की अपील के बावजूद मार्च हिंसक झड़पों के साथ खत्म हुआ. इसमें तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सड़कों पर 8 लोग मारे गए. सुरक्षा अधिकारियों ने दो बातों पर मंथन किया- इस आंदोलन का वास्तविक अगुवा अशोक भारती की अगुवाई वाले NACDOR का आह्वान था या सोशल मीडिया? शाम तक एक अनजान नंबर से फार्वर्ड हुआ एक वाट्सएप मैसेज उनके हाथ लगा, जिसके बारे में उनका अंदाजा है कि यही इस विशाल आंदोलन की वजह बना. लेकिन बैठक में एक बात बिल्कुल साफ हो गई कि- लोकल इंटेलिजेंस यूनिट्स के साथ ही सरकार की कानून लागू करने वाली मशीनरी से गंभीर चूक हुई, जो जमीनी हकीकत का आकलन नहीं कर सकी.


दलित संगठनों के बुलाए 'भारत बंद' के दौरान तोड़फोड़ और आगजनी करते हुए प्रदर्शनकारी

सरकारी एजेंसियां 'भारत बंद' के बड़े पैमाने का अंदाजा नहीं लगा सके

मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) में आ रही रिपोर्ट शांतिपूर्ण 'भारत बंद' के बारे में बता रही थीं, जैसा कि पहले भी कई मौकों पर हुआ है. कुछ रिपोर्ट बता रही थीं कि अशोक भारती की अगुवाई वाले नैकडॉर की तरफ से आह्वान किया गया है और कुछ अन्य संगठन भी इस एक दिन के प्रदर्शन में शामिल हो सकते हैं. एजेंसियां और मुखबिर आंदोलन में शरारती तत्वों के शामिल हो जाने और बड़े पैमाने पर आगजनी और लाठियों के इस्तेमाल का अंदाजा नहीं लगा सके.

भीम आर्मी के चीफ पैट्रन जय भगवान जाटव का दावा है कि हालांकि उनके संगठन समेत कई संगठनों ने इसमें हिस्सा लिया, लेकिन यह एक नेतृत्वविहीन प्रदर्शन था. फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए जाटव ने बताया कि उन्होंने मंगलवार को एक बैठक बुलाई है, जिसमें अगला कदम तय करने के लिए 25 संगठन शामिल होंगे.

जाटव ने कहा कि 'मैं सोमवार के इस विरोध-प्रदर्शन को जननेतृत्व वाला आंदोलन कहूंगा, जिसमें कोई नेता नहीं था. यह संदेशों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से आगे बढ़ा. इसके पीछे कोई भी दलित संगठन नहीं था. सरकार ने अगर कोई कदम नहीं उठाया तो हम मंगलवार की बैठक में दिल्ली घेराव का फैसला करेंगे. और यह इसी महीने हो सकता है.'

हालांकि नैकडॉर की प्रतिनिधि सुमेधा दावा करती हैं कि 'भारत बंद' का आह्वान उनके नेता अशोक भारती की तरफ से किया गया था. उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि हो सकता है कि कई संगठनों ने इसका समर्थन किया हो, लेकिन सोमवार के विरोध-प्रदर्शन का अगुवा नैकडॉर ही था.

वह बताती हैं, 'हमारे नेता अशोक भारती ने 21 या 22 मार्च को 'भारत बंद' का आह्वान किया था. इसके लिए 2 अप्रैल की तारीख तय की गई और देश भर में बंद रखने का संदेश अन्य दलित संगठनों को भेजा गया.'

प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर विरोध के तहत ट्रेन सेवाएं बाधित कर दीं और पटरी पर आकर लेट गए (फोटो: पीटीआई)

'भारत बंद' के दावे को लेकर दलित संगठनों में अंदरूनी खींचतान

दूसरी तरफ जाटव इस दावे को खारिज कर देते हैं, जिससे पता चलता है कि दलित संगठनों में अंदरूनी खींचतान है. उनका दावा है कि प्रदर्शनों के लिए विभिन्न ग्रुप और धड़े श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि सही नहीं है. जाटव बताते हैं कि उनकी भीम आर्मी ने एक अनजान नंबर से मिले मैसेज को मांज-संवार कर बंद को सफल बनाने के लिए सर्कुलेट कर दिया. उन्होंने मैसेज में अपील की कि इसे पाने वाला 10 दूसरे लोगों को फॉरवर्ड करे, जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बात पहुंचाई जा सके.

फ़र्स्टपोस्ट ने भीम आर्मी की उत्तर प्रदेश विंग की तरफ से भेजे गए मैसेज को देखा है, जिसमें कहा गया है, 'अगर आप आज यह नहीं करेंगे, तो कल सड़कों पर आपके बच्चों का उत्पीड़न होगा और दूसरे खामोश दर्शक बने रहेंगे.'

जाटव ने कहा, 'हम दलितों के लिए न्याय चाहते हैं और सरकार के हमारी मांग पूरी करने तक हमारा विरोध जारी रहेगा.'

सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद स्पष्ट संकेतों के होते हुए भी वह हिंसा से भरे विरोध के दर्जे का अंदाजा नहीं लगा सके.

वह आगे कहते हैं कि, 'यह पूरी तरह सोशल मीडिया से संचालित नहीं था. लोगों में गुस्सा और बेचैनी थी, लेकिन हम नहीं जान सके कि क्या होने वाला है. निश्चित रूप दलित संगठनों की तरफ से कहीं ना कहीं कोई योजना जरूर रही होगी, जिसे लोगों तक पहुंचाने में सोशल मीडिया की भूमिका रही होगी. चूंकि कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए हम आशा करते थे कि वो इसे संभाल लेंगे.' वह भी यह भी जोड़ते हैं कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें विपक्ष चुनावी फसल काटने में जुट गया है, जो कि और भी अनर्थकारी है.

शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील का बयान जारी किया

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शाम को राज्यों से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील करता हुए एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया है किः 'देश में बंद और विरोध-प्रदर्शन के मद्देनजर केंद्रीय गृह मंत्रालय स्थिति पर बारीकी से निगाह रखे हुए. मंत्रालय राज्यों से निरंतर संपर्क बनाए हुए है. अभी तक मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब ने केंद्रीय बलों की मांग की है. रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) और सेंट्रल आर्मड पुलिस फोर्स (सीएपीएफ) उपलब्ध करा दी गई है. मंत्रालय ने राज्यों से सभी सुरक्षात्मक कदम उठाने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और लोगों के जान-माल की सुरक्षा करने को कहा है.'