गुजरात कांग्रेस के बड़े नेता शंकर सिंह वाघेला काफी दुखी हैं. दुख इस बात का है कि कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया है. ये दावा खुद बाघेला कर रहे हैं. अपने जीवन के 77 साल पूरा होने के मौके पर वाघेला के समर्थकों ने उनके दीर्घायु होने की कामना भी की. बधाई देने वाले भी पहुंचे. लेकिन, शंकर सिंह वाघेला इस मौके पर ‘विषपान’ की बात करने लगे.
वाघेला ने कहा ‘मुझे विष पीने की आदत रही है. मुझे भगवान शंकर ने सीखाया है.’ बाघेला के बयान से उनके भीतर का दर्द साफ झलक रहा था. लेकिन, उनकी टीस कोई नई नहीं है. वो काफी लंबे वक्त से कांग्रेस के भीतर अंसतुष्ट चल रहे थे. आखिरकार अंदर की वो नाराजगी बाहर आ ही गई.
दरअसल, शंकर सिंह बाघेला गुजरात विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे. वो चाहते थे कि कांग्रेस इस बार विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर आगे करे. लेकिन, कांग्रेस आलाकमान ने ना ही उन्हें भरोसे में रखा और ना ही उन्हें मनाने की कोशिश भी की.
अब बाघेला के कांग्रेस से बाहर जाने के बाद गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को ऐसा झटका लगा है जिससे उबर पाना उसके लिए आसान नहीं होगा. गुजरात में अर्जुन मोडवाढ़िया से लेकर शक्ति सिंह गोहिल तक कांग्रेस के नेता इस हैसियत में नहीं हैं कि उनके नेतृत्व के सहारे कांग्रेस गुजरात में बीजेपी के खिलाफ मजबूत लड़ाई भी लड़ सकें.
अब वाघेला के हटने के बाद मुश्किल और बढ़ गई है. लेकिन, शंकर सिंह वाघेला के जाने से सवाल कांग्रेस आलाकमान की नीतियों पर उठ रहा है. सवाल राहुल गांधी पर भी उठ रहे हैं.
क्या कांग्रेस की तरफ से वाघेला को वो तवज्जो नहीं दी गई जिसके वो हकदार थे. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को क्या डैमेज कंट्रोल नहीं करना चाहिए था. ये चंद सवाल हैं जो कांग्रेस आलाकमान की नीतियों को कठघड़े में खड़े करने वाले हैं.
हालांकि, वाघेला इस वक्त कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को लेकर थोड़ा नरम दिखे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल का गृह राज्य गुजरात है. गुजरात से वो राज्यसभा सांसद भी हैं. ऐसे में गुजरात कांग्रेस के भीतर की हलचल की जानकारी क्या अहमद पटेल को नहीं थी? अगर थी तो क्या उन्होंने सोनिया गांधी से इस बारे में चर्चा नहीं की थी?
ये चंद सवाल सीधे कांग्रेस के नंबर वन परिवार के सियासी हाल को बयां कर रहे हैं. जहां होता है तो होने दो की नीति पर लगता है काम हो रहा है. वरना, इस तरह से पहले से बंटाधार कांग्रेस पार्टी अपने-आप को फिर से मजबूत करने के बजाए इस कदर नहीं बिखरती.
क्या ‘राहुल’ कांग्रेस को संभाल नहीं पा रहे हैं ?
गुजरात के सियासी घटनाक्रम ने एक बार फिर से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्योंकि एक ही दिन कांग्रेस के लिए दो झटके लगे. एक तरफ वाघेला पर बवाल से कांग्रेस परेशान थी तबतक पार्टी की वरिष्ठ नेता और कांग्रेस महासचिव अंबिका सोनी ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया.
अंबिका सोनी ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के प्रभारी के पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया. उनके इस्तीफे ने कांग्रेस के भीतर की खींचतान को सतह पर ला दिया है. माना जा रहा है अंबिका सोनी पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज चल रही थीं.
गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का इस्तीफा तो हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले हिमाचल प्रभारी का इस्तीफा. कांग्रेस के नेतृत्व क्षमता की कलई खोलने के लिए दोनों सियासी घटनाक्रम काफी हैं.
पिछले साल असम विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कुछ इसी तरह के हालात थे जब असम कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत रखने वाले हेमंत विश्वशर्मा नाराज बताए जा रहे थे. लेकिन, उस वक्त भी राहुल गांधी ने राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए वक्त रहते डैमेज कंट्रोल नहीं किया.
नाराज विश्वशर्मा कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे. जनाधार वाले विश्वशर्मा के जाने का असर असम चुनाव में देखने को मिला.
लेकिन, लगता है कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी गलतियों से सबक लेने के बजाए गलती पर गलती करते जा रहे हैं. उनकी यही गलती गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की लड़ाई को कमजोर कर देगी.
‘शंकर’ का संन्यास से इनकार
अपने जन्मदिन के मौके पर गांधीनगर में समर्थकों से घिरे वाघेला ने कहा अभी मैं 77 नॉट आउट हूं. मतलब साफ है कि वो अभी राजनीति से रिटायर नहीं हो रहे हैं. आगे उनकी पारी चलने वाली है.
लेकिन, कांग्रेस से तनातनी के साथ बीजेपी को लेकर भी उनकी तरफ से किसी नरमी के संकेत नहीं मिले. कयास लगाया जा रहा था कि बापू कांग्रेस छोड़ फिर से बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. उनकी घर वापसी हो सकती है.
लेकिन, पुराने घर में 75 पार कर चुके इस पुराने दिग्गज के लिए शायद ही कुछ अब हासिल होता. ना वो पुराना रसूख ही मिलता और ना ही कोई बड़ा पद. एक बार फिर से वो किनारे ही बैठने पर मजबूर हो जाते. लिहाजा अभी अपनी सियासी पारी को जारी रखने की बात कर नए गठजोड के संकेत दे रहे हैं.
गुजरात में विधानसभा चुनाव इस साल के आखिर में होने वाला है. कयास लग रहे हैं कि पाटीदार आंदोलन के हीरो हार्दिक पटेल से लेकर दूसरी गैर-कांग्रेस गैर-बीजेपी ताकतों को साथ रखकर वाघेला एक तीसरी ताकत को उभारने की कोशिश कर सकते हैं.
अभी एक दिन पहले ही दिल्ली में एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल और स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर से उनकी मुलाकात की खबर आने के बाद नए समीकरण के संकेत भी मिल रहे हैं. आगे गुजरात की सियासत किस करवट बैठेगी इस पर सबकी नजरें होंगी. लेकिन, वाघेला की बगावत ने राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर ऐसा सवाल उठा दिया है जो 2019 तक राहुल का पीछा करता रहेगा.