view all

बीजेपी का 'पशु वध रोकने' का दांव क्या उल्टा पड़ता दिख रहा है ?

जानवरों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने के फैसले के बाद से ही पूर्वोत्तर और दक्षिण के राज्य उबल रहे हैं

Amitesh

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह मिजोरम की राजधानी आईजोल में भारत-म्यांमार सीमा सुरक्षा के विषय पर एक उच्चस्तरीय बैठक कर रहे थे. राजभवन में यह बैठक हो रही थी लेकिन, ठीक उसी वक्त राजभवन से चंद मीटर दूर वनापा हॉल में बीफ पार्टी चल रही थी.

जोलाइफ नाम के स्थानीय संगठन ने इस बीफ पार्टी का आयोजन किया था. इस आयोजन में लगभग 2 हजार लोग शामिल हुए थे. राजनाथ सिंह का कुछ इस अंदाज में मिजोरम में विरोध करना पूर्वोत्तर के राज्यों में लोगों के भीतर के उस गुस्से को दिखाता है जो अंदर ही अंदर उबल रहा है.


केंद्र सरकार की तरफ से मई के आखिर में पशु वध के लिए पशु बाजार में जानवरों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने के फैसले के बाद से ही पूर्वोत्तर उबल रहा है. लोगों में गुस्सा है. आक्रोश है. विरोध भी है जिसको वह केंद्रीय गृह मंत्री के दौरे के वक्त इस कदर निकाल रहे हैं.

केंद्र का तर्क है कि ये फैसला पर्यावरण मानकों के हिसाब से लिया गया है जिसमें पशु के खिलाफ क्रूरता को रोकने की कोशिश है. लेकिन, इसका सीधा असर बीफ खाने वालों पर पड़ रहा है. पर्यावरण मंत्रालय के गाइडलाइन के मुताबिक, गाय, सांड, भैंस, बछिया, बछड़ा और ऊंट के कत्ल के लिए खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी गई है.

केंद्र सरकार ने देश भर में पशु वध कानून लागू कर दिया है

बैन की दिशा में सरकार का सख्त कदम

गोवंश को लेकर बीजेपी पहले से ही किसी तरह के कत्ल और खरीद-फरोख्त पर सख्त रही है. लेकिन, इसके अलावा बाकी जानवरों को लेकर जारी गाइडलाइन के बाद बीफ बैन की दिशा में इसे सरकार का सख्त कदम माना जा रहा है.

पूर्वोंत्तर राज्यों में इसका सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है. पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में बीफ का सेवन करने वालों की तादाद काफी ज्यादा है लिहाजा विरोध के स्वर भी वहीं से ज्यादा आ रहे हैं.

सरकार के फैसले के तुरंत बाद बीजेपी के भीतर बगावत से साफ हो गया कि इस फैसले का असर जमीन तक कितना होने वाला है. मेघालय में बीजेपी के लगभग पांच हजार कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर चले गए.

यहां तक कि पार्टी के वेस्ट गारो हिल्स जिलाध्यक्ष बर्नाड मारक ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. बाद में मारक ने विरोध में बीफ पार्टी का भी आयोजन किया. मेघालय में आदिवासी और जनजातीय इलाके में बीफ खाने का रिवाज रहा है. इसके चलते वहां सरकार के जानवरों के खरीद-फरोख्त के नियम का अधिक विरोध हो रहा है.

उधर 12 जून को ही मेघालय में विधानसभा के विशेष सत्र में एक प्रस्ताव पास कर उस फैसले का विरोध किया गया है. मेघालय की कांग्रेस सरकार केंद्र के इस फैसले को जोर-शोर से उठाकर इसका सियासी फायदा उठाना चाहती है.

दक्षिण के राज्यों में कई जगहों पर बीफ पार्टी का आयोजन कर केंद्र के फैसले का विरोध किया गया

बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा करने वाले बन रहे हैं

बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर के राज्यों में इस फैसले से निपटना काफी मुश्किल हो रहा है. मेघालय में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. उसके पहले मेघालय विधानसभा के भीतर इस तरह का प्रस्ताव मंजूर होना और वहां पैदा हुए माहौल से साफ है कि हालात बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा करने वाले बन रहे हैं.

पिछले साल असम में मिली जीत के बाद बीजेपी पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अपनी सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. पार्टी की तरफ से नार्थ इस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस यानी नेडा के जरिए अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश हो रही है. असम सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले हेमंत विस्वा शर्मा को नेडा का संयोजक बनाया गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी फोकस नार्थ इस्ट पर रहा है. कोशिश पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी का जनाधार बढ़ाकर वहां अपनी ताकत में इजाफा करने का है. लेकिन, केंद्र के हालिया फैसले के बाद बने हालात के बाद बीजेपी के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है.

ऐसा ही हाल गोवा और दक्षिण के राज्यो में भी है जहां विरोध के सुर तेज होते जा रहे हैं. वहां कुछ मुस्लिम और ईसाई संगठनों की तरफ से 'बीफ फॉर गोआ' और 'गोआ फॉर बीफ' नाम से अभियान चलाया जा रहा है. इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है. लेकिन, गोवा की बीजेपी की मनोहर पर्रिकर सरकार इस पर कुछ ठोस जवाब नहीं दे पा रही है.

पूर्वोत्तर के राज्यों में लोगों ने बीफ पार्टी आयोजित कर राजनाथ सिंह के दौरे का विरोध किया

मद्रास हाईकोर्ट ने फैसले पर रोक लगाकर जवाब मांगा

दक्षिण के राज्यों में तमिलनाडु और केरल में विरोध ज्यादा हो रहा है. केरल में विरोध-प्रदर्शन के दौरान बीफ पार्टी पर बवाल भी हुआ था. उधर तमिलनाडु में भी भारी नाराजगी है. मद्रास हाईकोर्ट ने 30 मई को केंद्र के फैसले पर रोक लगाकर प्रदेश और केंद्र सरकार से 4 हफ्ते में इसपर जवाब मांगा है.

लेकिन, वहां भी डीएमके और बाकी राजनीतिक दलों का विरोध झेलना पड़ रहा है. डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एम के स्टालिन ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.

फिलहाल पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिण के राज्यों तक बीजेपी सरकार के इस फैसले के खिलाफ माहौल बना है. बीजेपी इस बात की उम्मीद कर रही थी कि इस फैसले के बाद सांप्रादियक ध्रुवीकरण के चलते उसे फायदा पहुंचेगा.

लेकिन, विरोध के सुर ने पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिण भारत के उन राज्यों में उसकी संभावनों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है जहां वो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद को मजबूत करने में लगी हुई थी.