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कहीं गाय चिड़ियाघर की शोभा बनकर न रह जाए

गौहत्या पर प्रतिबंध क्या वास्तव में निरीह पशु गाय के लिए फायदेमंद साबित होगा

Akshaya Mishra

आरएसएस के चीफ मोहन भागवत चाहते हैं कि पूरे देश में गौ-हत्या पर रोक लगे. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि संघ परिवार हमेशा ही यह मांग करता आ रहा है.

लेकिन मोहन भागवत ने अपनी मांग उस वक्त उठाई है जब स्वघोषित गौरक्षकों की पहरेदार जमात अपने पूरे उफान पर है. ऐसे में मुद्दे पर चल रही बहस के और ज्यादा सरगर्म होने की संभावना है.


गौहत्या पर प्रतिबंध क्या वास्तव में निरीह पशु गाय के लिए फायदेमंद साबित होगा? यह एक बड़ा सवाल है. क्या बहस में इस सवाल से टकराने की कोशिश होगी?

देश में गौहत्या पर पाबंदी को लेकर चलने वाली बहस के बारे में कुछ चीजों को साफ-साफ समझ लेना जरुरी है. दरअसल, यह जानवरों पर क्रूरता का मामला तो बिल्कुल नहीं है.

मसला जानवरों पर क्रूरता का होता तो गौरक्षा के पैरोकार भैंस और उन सारे जानवरों की बात उठाते जिन्हें भोजन या किसी और इस्तेमाल के लिए मार दिया जाता है. मसला, शाकाहार का भी नहीं है क्योंकि तब मांस की बिक्री पर प्रतिबंध की मांग उठायी जाती.

बात गौवंश की बेहतरी की भी नहीं है. आजकल खेती-बाड़ी में जुताई का काम आधुनिक तरीके से होता है. इसमें बैल की खास अहमियत नहीं रह गई सो बछड़े की उम्र अब पहले की तुलना में छोटी होती है. वह बैल बनने से पहले ही अस्वाभाविक मौत का शिकार हो जाता है.

आजकर  खेती बाड़ी के काम में भी गाय की मदद नहीं ली जाती है

जज्बातों का तूफान

गाय को लेकर चल रहे विवाद में जज्बातों का तूफान इस एक बात को लेकर जोर मारता है कि मुसलमान गोमांस खाते हैं और इस वजह से गाय को मार डालते हैं.

यह बात अलवर की उस घटना से भी जाहिर होती है जिसमें हफ्ते भर पहले खुद को गौरक्षक कहने वाली जमात के सदस्यों ने पहलू खान पर हमला बोला और इसके पहले देश में कई और जगहों में हुई ऐसी ही घटनाओं से भी.

बहस से मुसलमान वाला कोण निकाल दीजिए और इसकी जगह दलित या अन्य हिन्दू-समूहों को रखिए जो पालतू पशुओं का भोजन सहित अन्य कामों में इस्तेमाल करते हैं.

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ऐसा करने पर बहस एक अलग ही रंग पकड़ लेगी. गौर करने की बात यह है कि बहस सरगर्म तो बहुत है लेकिन इसमें प्रसंग को उसके पूरे विस्तार में पकड़ने की कोशिश नहीं हो रही.

खैर, इन बातों को जाने दीजिए और बात को बिल्कुल उसी पशु पर केंद्रित कीजिए जो जेरे-बहस है. बहुत संभव है कि गौहत्या पर देशव्यापी प्रतिबंध से गाय का हित ना सधे बल्कि उसे हानि ही हो. सवाल उठता है आखिर कैसे ?

पहली बात तो यही है कि डेयरी किसान गाय की जगह अपना ध्यान भैंस पालने पर लगायेंगे. भैंस पालना कहीं ज्यादा फायदेमंद विकल्प है. गाय ने दूध देना बंद कर दिया और उसे बेचने का कोई रास्ता नहीं बचा.

बिना किसी लाभ के अब गाय को सालों-साल अपने खूंटे पर बांधकर खिलाने-जिलाने का वित्तीय बोझ उठाना होगा ऐसा सोचकर डेयरी किसान गाय पालने से ही हाथ खींच लेंगे.

किसान गाय को छुट्टा घूमता हुआ भी नहीं छोड़ सकते क्योंकि ऐसा करने पर गौरक्षकों और कानून के प्रावधान उनके आड़े आयेंगे.

भैंस का मांस खाने पर कोई प्रतिबंद नहीं है, इसका दूध भी गाय के दूध से ज्यादा महंगा होता है

भैंस के मांस पर प्रतिबंध नहीं

दूसरी बात यह कि भैंस के मांस पर कोई प्रतिबंध नहीं है. यह गौमांस का आसान विकल्प बन सकता है. खेती-बाड़ी या अन्य कामों में गाय के बछड़े (नर) का विशेष इस्तेमाल ना होने के कारण डेयरी किसान पहले के वक्त में इसे बूचड़खानों या किसी और के हाथ बेच देते थे. इससे उन्हें ठीक-ठाक रकम भी मिल जाती थी.

पाबंदी की हालत में चूंकि...उनके पास यह विकल्प नहीं रह जायेगा इसलिए वे गाय से मुंह मोड़ भैंस पालने पर जोर लगायेंगे.

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इस सिलसिले की तीसरी बात यह कि इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक देसी नस्ल की गाय के दूध की तुलना में भैंस का दूध कहीं ज्यादा गुणवत्तापूर्ण होता है. ऐसे में भैंस के दूध की मांग कहीं ज्यादा है.

माना जाता है कि भैंस के दूध में मलाई ज्यादा होती है इसलिए उसके दाम ज्यादा मिलते हैं. सोचकर देखिए कि गाय पालने में आने वाली तमाम झंझटों को देखते हुए किसान आखिर गो-पालन क्यों करना चाहेंगे?

आखिर को होगा यह कि गाय पालने की कोई वजह नहीं रह जायेगी और गाय चिड़ियाघर की शोभा बढ़ायेगी. गौशाला एक किस्म का चिड़ियाघर ही है. क्या हम ऐसी ही स्थिति चाहते हैं? क्या हम गौ-हत्या पर रोक लगने से पैदा होने वाले अनचाहे नतीजों को लेकर एकदम ही अनजान हैं?

गौरक्षकों के लिए भले ही यह आस्था का मामला हो लेकिन बात जब जमा-पूंजी को होनेवाली नुकसान की आएगी तो शायद ही कोई गौ-पालन का विकल्प चुनने का जोखिम उठाये.

अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मसले को लेकर गंभीर है तो उसे गौरक्षा के लिए सरकार से मोटी रकम आवंटित करने की मांग करनी चाहिए. डेयरी किसान को कुछ सहयोग-राशि मिलेगी तो उनका उत्साह बढ़ेगा. दूध देना बंद कर चुकी गायों और बछड़े (नर) को गोद लेने की भी योजना होनी चाहिए.

इस मोर्चे पर कोई सुझाव आये तो वह सकारात्मक कदम होगा. पूरे देश में एकबारगी गौहत्या पर प्रतिबंध से गौवंश का भला नहीं होने वाला. गौरक्षा की बहस में केंद्रीय प्रश्न मुसलमान नहीं है.

यह बात किसी को नहीं भूलनी चाहिए.