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बाबरी मस्जिद: राम जन्मभूमि पर शिया वक्फ बोर्ड के नए हलफनामे का मतलब क्या है?

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने हलफमाना दिया है. इस पर मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.

Debobrat Ghose

शिया समुदाय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका को जले पर नमक की तरह लिया है. वक्फ बोर्ड ने कहा है कि विवादित रामजन्मभूमि वाली जगह से एक निश्चित दूरी पर मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है.

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने हलफमाना दिया है. इस पर मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. संगठन का कहना है कि शरिया और कानून के मुताबिक शिया वक्फ बोर्ड का हलफनामा कहीं नहीं ठहरता है.


मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद शिया मौलवियों का संगठन है. लखनऊ में रहने वाले मौलाना सैयद कल्बे जव्वाद इसके महासिचव हैं. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने आठ अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था. हलफनामे में कहा गया है कि रामजन्मभूमि वाले स्थान से एक निश्चित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद निर्माण पर वो सहमत है.

कल्बे जव्वाद

मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद की कार्यकारी और सलाहकार परिषद के सदस्यों ने बयान में कहा 'ये हलफनामा शिया और सुन्नियों के बीच खाई पैदा करने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं है. इसलिए इसे अनदेखा किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में कई विरोधाभास हैं. यह वक्फ बोर्ड के भीतर भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश है, जिसे मौलाना कल्बे जव्वाद सालों से उठा रहे हैं.'

मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद की आपत्तियां-

1- मस्जिद का कोई मालिक नहीं होता है. वक्फ बोर्ड सिर्फ केयरटेकर है. वो मालिक नहीं है.

2- मस्जिद किसी संप्रदाय की नहीं होती- न तो ये शिया और सुन्नी की. यह अल्लाह का घर है.

3- मस्जिद का केयरटेकर शिया और सुन्नी भी हो सकता है.

4- वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में लिप्त है; इसलिए उसने जो मांग सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी है, उसके पास यह मांग करने का अधिकार नहीं है.

वक्फ और दिल्ली स्थित दरगाह-शाह-ए-मरदान के इमामबाड़े की देखभाल करने वाले और शियाओं के धार्मिक ट्रस्ट अंजुमन-ए-हैदरी ने रिजवी के हलफनामे पर सवाल उठाए हैं.

अंजुमन-ए-हैदरी के महासचिव सैयद बहादुर अब्बास नकवी का कहना है, 'वक्फ बोर्ड के चेयरमैन रिजवी के खिलाफ गंभीर आरोप हैं. उन पर बोर्ड की जायदाद पर अवैध कब्जा करने और भूमि सौदों में भ्रष्टाचार का आरोप है. सरकार ने इन आरोपों की जांच शुरू की है. इसके अलावा, कोई अकेला व्यक्ति मस्जिद से जुड़ी यह मांग कैसे कर सकता है.'

पीटीआई रिपोर्ट के मुताबिक हलफनामा दाखिल करने का वक्त अहम है. सुप्रीम कोर्ट कुछ दिन पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तेजी से सुनवाई के लिए तैयार हुआ था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भूमि विवाद पर फैसला दिया था. शिया बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित अपील में एक पक्षकार है.

बोर्ड ने बातचीत से अयोध्या विवाद का सौहार्दपूर्ण हल निकालने के लिए एक समिति गठित करने की मांग रखी है. उसने सुप्रीम कोर्ट से इसके लिए समय मांगा है. बोर्ड ने हलफनामे में दावा किया है कि बाबरी मस्जिद उसकी संपत्ति है.

मौलाना आजाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति जफर सरेशवाला सरेशवाला ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा, 'शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का ये हलफनामा राजनीतिक दिखावा और अवसरवाद का उदाहरण है. अब ये सुप्रीम कोर्ट पर है कि वो इसे स्वीकार करता है या नहीं. लेकिन हमें रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के मुताबिक अगर सुलह प्रक्रिया शुरू होती है तो इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश की निगरानी और नियंत्रण होना चाहिए. इसका टर्म ऑफ रेफरेंस भी सुप्रीम कोर्ट को तय करना चाहिए. हमें इस मसले पर किसी एक व्यक्ति की राय को भूल जाना चाहिए.'

उनका कहना है, 'इसके अलावा इस मामले में विश्वसनीयता सबसे महत्वपूर्ण है. योगी आदित्यनाथ सरकार ने वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया है. इसके चेयरमैन रिजवी को चार्जशीट भी किया जा चुका है. इसलिए रिजवी द्वारा अचानक इस मुद्दे को उठाना सवालों के घेरे में है.'

एतिहासिक रूप से, बाबरी मस्जिद के निर्माण की तारीख अनिश्चित है. बीसवीं शताब्दी में बाबरी मस्जिद परिसर से मिले शिलालेख के मुताबिक इसका निर्माण 935AH (हिजरी संम्वत्) में हुआ. इसका मतलब इसे 1528-29 में बाबर की इच्छा के मुताबिक मीर बाकी ने बनवाया था.

सरेशवाला के मुताबिक, 'एतिहासिक रूप से, बाबरी मस्जिद सुन्नियों की है. साल 1945-46 में शियाओं ने फैजाबाद जिला अदालत के सामने सूट फाइल किया. इसमें दावा किया गया कि इस मस्जिद का निर्माण शियाओं ने किया था, जिसे खारिज कर दिया गया था. अदालत का फैसला सुन्नियों के पक्ष में था. लेकिन 72 साल बाद शिया बोर्ड से अचानक आया यह बयान हैरान करने वाला है.

शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामे के बाद, रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में मुख्य याचिकाकर्ता जफरयाब जिलानी ने एक समाचार चैनल से कहा, 'वो (शिया वक्फ बोर्ड) पहले से ही एक सूट में पक्षकार है. इसलिए वो नया हलफनामा नहीं दे सकता. सुप्रीम कोर्ट इसे स्वीकार नहीं करेगा.' जिलानी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य भी हैं.