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बाबरी विध्वंस मामला: बीजेपी के सबसे उज्जवल दौर में पुराने 'दाग' का क्या होगा

आडवाणी, जोशी, उमा और 9 अन्य के खिलाफ सीबीआई कोर्ट द्वारा आरोप तय किये गए थे

Sanjay Singh

सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए इससे अधिक विडंबना क्या हो सकती है कि एक तरफ तो मोदी सरकार सत्ता में 3 साल पूरा करने का आधिकारिक जश्न जोर-शोर से मना रही है, तो दूसरी तरफ लखनऊ में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और केंद्रीय मंत्री उमा भारती के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने, भीड़ को उकसाने, विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने के आरोप तय कर दिए हैं.

यह विडंबना तो और भी स्पष्ट है, क्योंकि पिछले 25 वर्षों से बीजेपी इन आरोपों को झूठा और मनगढ़ंत कहती रही है. वह इन्हें केंद्र में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली नरसिंह राव सरकार द्वारा उनके खिलाफ राजनैतिक द्वेष की उपज कहती आई है. यह इसलिए भी बड़ी बात है क्योंकि 1984 में लोकसभा की सिर्फ 2 सीटें पाने वाली बीजेपी के 1989 में 85 सीटें, 1991 में 120 और 1996 में (13 दिन की सरकार बनाते हुए) 187 सीटें पाने और 1998 में आखिरकार गठबंधन वाली सरकार बनाने का श्रेय तो आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रामरथ यात्रा दिया जाता है.


राम रथ यात्रा के दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक भाषणों में छद्म धर्मनिरपेक्षता, मुस्लिम तुष्टीकरण जैसी शब्दावलियों की रचना की. बीजेपी के नेता लंबे समय से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को अपने लिए आस्था के विषय के रूप में उठाते रहे हैं. उन्होंने बाबरी मस्जिद को विवादित ढांचा कहा है और इस बात को कभी भी स्वीकार नहीं किया कि यह मुस्लिम समुदाय का आराधना स्थल है.

तस्वीर: पीटीआई

अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आडवाणी बीजेपी के संस्थापक रहे हैं. बीजेपी की नींव में उनकी भूमिका निश्चित ही रूप से बहुत बड़ी रही है, क्योंकि बीजेपी की स्थापना के बाद देश भर में पार्टी के विकास में उन्होंने प्रमुख शिल्पकार के रूप में अपनी भूमिका निभायी है. यही कारण है कि अब भी पार्टी के सभी कार्यों के मंच पर उन्हें प्रमुख स्थान दिया जाता है.

लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि आडवाणी, जोशी, उमा भारती और संघ परिवार के अन्य बड़े नेताओं पर सीबीआई द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उस समय गंभीर आपराधिक आरोप लगाये गए हैं, जब केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है.

न्यूज़18 के मुताबिक इन नेताओं पर आईपीसी की इन धाराओं के तहत आरोप लगाये गए हैं: 120बी (आपराधिक साजिश रचना), धारा 153 (दंगा के इरादे से भीड़ को भड़काना), 153ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना और सामुदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ना), धारा 295 (धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा की जगह को अशुद्ध कर देना), धारा 295ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सांप्रदायिक सौहार्द्र में बाधा डालना) और धारा 505 (सार्वजनिक संकट पैदा करने के लिए उत्तेजक बयान देना).

आरोप तय, अब क्या होगा

संयोग से, पिछले 25 वर्षों में यह दूसरी बार है कि आडवाणी, जोशी और उमा पर एक ही अपराध के तहत आरोप लगाए गए हैं. लेकिन उन्हें इन आरोपों से रायबरेली अदालत ने पहले बरी कर दिया था, लेकिन पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने फिर से उन्हें आरोपी की श्रेणी में ला दिया.

लखनऊ में सीबीआई अदालत में मंगलवार के घटनाक्रम से उठने वाले प्रमुख प्रश्न दो हैं - सबसे पहला सवाल तो यह है कि जब उमा भारती पर आरोप तय हो गया है, तो क्या वह सरकार में मंत्रीपद से इस्तीफा देंगी और दूसरा कि इस मामले का राजनीतिक नतीजा क्या होगा?

उमा भारती के नजदीकी भाजपाई सूत्र सरकार से उनके इस्तीफे को खारिज करते हैं. इससे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ऐसे किसी भी अटकलों को खारिज कर दिया था. उन्होंने कांग्रेस की मांग को खारिज करते हुए कहा था कि अगर चार्जशीट ही कार्रवाई किये जाने के लिए पर्याप्त आधार होता है, तो इससे कांग्रेस के कई मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को परेशानी होगी.

बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सीएनएन-न्यूज18 को बताया कि एक अलग तरह का चार्जशीट है, जो किसी भी भ्रष्टाचार के मामले से संबंधित नहीं है और मंत्री के रूप में बनाए गए पोर्टफोलियो के साथ उन आरोपों के कारण किसी भी तरह के हितों की कोई टकराहट नहीं है. इससे भी बड़ी बात कि इस मामले में उनके लिए कोई अपराध नहीं था, क्योंकि उस विवादित ढांचे पर कोई मस्जिद थी ही नहीं, जिसे कारसेवकों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था.

उमा का मामला अलग!

उमा अपनी तरफ़ से दावा करती हैं कि अयोध्या आंदोलन में 6 दिसंबर, 1929 को कारसेवकों के हुजूम के जरिए विवादित ढांचे को ‘खुल्लमखुल्ला’ ध्वस्त कर  दिया था. ऐसे में किसी तरह की साजिश के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी.

एनडीए में जब वाजपेयी सरकार सत्ता में थी, तो उन्होंने एक छोटे सहयोगी, बूटा सिंह को सरकार से इस्तीफा देने के लिए कहा था, क्योंकि पहले के किसी संबंधित भ्रष्टाचार के मामले में उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था. सिंह का पोर्टफोलियो तब संचार मंत्रालय का था. यह एक अलग मामला है कि बूटा सिंह फिर मनमोहन सिंह सरकार के समय बिहार के गवर्नर बनाये गए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें फिर से इस्तीफा देना पड़ा था (वह पहले ऐसे गवर्नर बने, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफ़ा देना पड़ा).

बीजेपी नेताओं का तर्क है कि उमा भारती का मामला अलग है और बूटा सिंह के लिए वाजपेयी सरकार द्वारा निर्धारित मानक उमा भारती पर लागू नहीं होते. इससे भी बड़ी बात तो यह है कि जब उमा भारती को आडवाणी और जोशी के साथ वाजपेयी सरकार में मंत्री बनाया गया था, तो वह बाबरी मामले में बनाये गये आरोपियों में से एक थीं.

मामले की कानूनी वैधता तो अब कोर्ट तय करेगा, लेकिन इसके कई राजनीतिक नतीजे हो सकते हैं. यह देखना सबसे दिलचस्प होगा कि सीबीआई इन आला बीजेपी नेताओं के मामले के खिलाफ कितना नरम या कठोर रुख अपनाती है.

इस पर गौर किया जाना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई अदालत को आदेश दिया है कि सभी गवाहों की जांच, बहस, सुनवाई पूरी करे और दो साल की समयसीमा के भीतर फैसला दे.

अगर ट्रायल कोर्ट वास्तव में उस समय सीमा का पालन करने में सक्षम है, तो 201 9 की गर्मियों में उस समय बाबरी या अयोध्या के फैसले की घोषणा की जाएगी, जब अगले संसदीय चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर होगी. इस बात का कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता कि फैसले का प्रभाव क्या होगा. शीर्ष भगवा नेताओं को बरी करने या या फिर उन्हें सजा सुनाने का जनभावना पर क्या असर होगा?

योगी का रुख साफ

बीजेपी के वरिष्ठ नेता भले इस इस विषय पर बोलने से बच रहे हों, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. जब आडवाणी लखनऊ एयरपोर्ट पर उतरे और और वहां से वीवीआईपी गेस्ट हाउस पहुंचे, तो योगी आदित्यनाथ राजधानी में उनका स्वागत करने के लिए वहां मौजूद थे और इस विषय पर उनके साथ उन्होंने बंद कमरे में गहन चर्चा की.

योगी आदित्यनाथ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के कट्टर समर्थक रहे हैं. वह बुधवार को अयोध्या भी गए. उन्होंने हनुमान गढ़ी के अलावा अस्थायी मंदिर में रामलाला के दर्शन किए, फिर राम की पैड़ी, सरयू नदी, दिगंबर अखाड़ा गए. शाम तक कुछ अन्य सरकारी कार्यक्रमों में भाग लेंगे. फिर अगले दिन सूर्योदय से पहले लखनऊ वापस हो जाएंगे.

मंगलवार को आडवाणी, जोशी, उमा और 9 अन्य के खिलाफ सीबीआई कोर्ट द्वारा आरोप तय किये गए थे और बुधवार को योगी के अयोध्या में होने से राम मंदिर का मुद्दा एक बार फिर सार्वजनिक बहस के दायरे में आ जाएगा.

साफ है कि राजनीति की हांडी चढ़ गई है और अब बस इसके उबाल पर नजर रखिए.