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नोटबंदी: प्रधानमंत्री मोदी, ईमानदारों की मौत का हिसाब कौन देगा?

यह धन सिर्फ एक रात के भाषण से कबाड़ी में बदल गया.

Sandipan Sharma

नोटबंदी’ की घोषणा के एक दिन बाद जापान में एक समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- ‘घर में शादी है, पैसे नहीं हैं...’

क्या होगा अगर आपके घर में शादी हो और घर में पैसे नहीं हो? अगर आप जी. जनार्दन रेड्डी हैं, आपने हजारों लोगों को निमंत्रित किया है, करोड़ों खर्च कर रहे हैं, आप सबसे सामने अपनी समृद्धि का प्रदर्शन कर रहे हैं और शादी में खिलखिला रहे हैं, तब आपके के लिए घर में पैसे नहीं होने की बात एक मजाक है.


और अगर आप सीकर राजस्थान के 50 साल के जगदीश पवार हैं, तो आप मरेंगे. क्योंकि, घर मैं शादी है पैसे नहीं हैं. पवार की कहानी हमारे समय का लक्षण है. इस तरह की शादी और जनाजे की कहानियों पर गौर करने की जरूरत है.

नोटबंदी का निशाना कौन?

‘नोटबंदी’ का इरादा शादी में करोड़ो खर्च करने वाले रेड्डी जैसे लोगों को निशाना बनाना था (क्योंकि यह माना जा रहा है कि इस तरह का धन पुराने नोटों के रूप में जमा है), पर पवार जैसे इसके संभावित लाभार्थी इसका नुकसान झेल रहे हैं.

पवार की दो बेटियों की शादी 3 दिसंबर को होने वाली थी. बुधवार को सुबह होने से पहले ही वे स्थानीय बैंक में अपने नोटों को बदलवाने के लिए घर से निकले. लेकिन दोपहर तक कतार में खड़े होने बावजूद वे न तो पैसे निकलवा पाए और न बदलवा पाए. घर आकर उन्होंने अपने परिवार वालों से कहा कि वे पैसों का इंतजाम नहीं कर पाए और छाती में दर्द की शिकायत की. इसके कुछ घंटों बाद ही उनकी मौत हो गई.

पवार जैसे पिता सालों पहले से अपनी बच्चों की शादी की तैयारी के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं. वे इस पैसे को या तो बैंक से निकालते हैं या अपने घर में जमा रखते हैं. लेकिन यह धन सिर्फ एक रात के भाषण से कबाड़ी में बदल गया.

दुनिया में हर जगह कुदरती कानून, इंसाफ के इस नियम इस पर चलता है कि ‘भले ही सौ गुनाहगार बच जाएं लेकिन एक भी बेगुनाह को सजा न हो’.

यह रेड्डी के परिवार से कह कर देखिए.

यह पवार की रो रही बेटियों से कहकर देखिए.

यह उन सभी दर्जन भर लोगों से कहिए जिनकी मौत की खबरें आ चुकी हैं, उन हजारों लोगों को कहिए जिनके रोजगार छीन गए या उन लाखों लोगों से कहिए जिनके व्यापार रुके हुए हैं.

क्या नोटबंदी सर्जिकल स्ट्राइक है?

पूरे देशभर में इस बात का बहुत शोर है कि ‘नोटबंदी’ से सरकार ने ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ किया है. यह, बेईमानों, देशद्रोहियों, 2जी घोटाले के लाभार्थियों, आतंकवादियों को पैसा देने वालों, जाली नोटों के गिरोहों और वे जो नोटों के मोटे गद्दे पर सो रहे हैं, को निशाना बनाने के लिए है.

पवार एक चायवाला था.

क्या यह वाकई सर्जिकल स्ट्राइक है और यह पवार जैसे लोगों की हत्या कर रहा है. सचमुच में देशद्रोही कौन है, इसका निशाना कौन है? रेड्डी?

द इंडियन एक्सप्रेस में छपे अपने लेख में प्रताप भानु मेहता यह तर्क देते हैं कि देशभर में एक खास तरह का राष्ट्रवादी प्रोजेक्ट फैलाया जा रहा है, हर तरह के व्यक्तित्व को खांचों में बांटा जा रहा है. वे लिखते हैं- ‘हर नागरिक को या तो देशभक्त या अपराधी के रूप में देखा जा रहा है. उनके व्यक्तिगत जीवन का इतिहास, उनके बैंक खाता कहां है, कितना कैश वे इस्तेमाल करते हैं या वे एटीएम से कितनी दूर रहते हैं, इस पूरी प्रक्रिया में इन सवालों को दरकिनार कर दिया गया है.’

पवार की जिंदगी इस वजह से प्रभावित हुई. वह उस अपराधी की तरह इंतजार करते हुए मर गया, जिसे यह लग रहा था कि शायद सत्ता उसे बेगुनाह के खांचे में रखेगी.

नोटबंदी बना धार्मिक अनुष्ठान

पवार कि तरह लगभग पूरा देश सडकों पर कैश के लिए कतारों में खड़ा है, अपनी कमाई के रुपए-पैसों की बेगुनाही साबित करने के लिए. कुछ यह विश्वास कर रहे हैं कि वे किसी नैतिक-धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा हैं जो उनकी आत्मा को इस कष्ट से शुद्ध करेगा और देश को बेहतर बनाएगा. अन्य, खासकर हिंदू सोचते हैं कि वे किसी मंदिर में पूजा कर रहे हैं, जहां वे अतीत में किए गए पापों के लिए माफी मांग रहे हैं और इससे उनके अतीत का पाप धुल जाएगा.

एक मूर्ख को कहा जाता है कि वह देश, धर्म, खुदा और सबकी भलाई के लिए त्याग कर रहा है. उसे कहा जाता है कि उसे 72 हूरों के साथ जन्नत मिलेगी. वह हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ जाएगा, वह अपने आपको आरडीएक्स से बांधकर उड़ा लेगा या एटीएम के सामने कतार में खड़ा हो जाएगा.

लेकिन तब क्या होगा जब यह बलिदान जन्नत के वादे को पूरा नहीं कर पाए? जब खपत में कमी होने लगे, व्यापार खत्म होने लगे, निजी क्षेत्र से असंगठित मजदूरों की छंटनी होने लगे, अर्थव्यस्था ठहर जाए, 2000 के नोट भ्रष्टाचार की नई करेंसी बन जाए, शादियां रुक जाएं, जनाजे उठने लगें और सभी पर टैक्स रेड का खतरा मंडराने लगे?

जब हर-हर मोदी, घर-घर चोर (ममता बनर्जी की चुटकी) में बदल जाए?

जब घर में शादी हो और पैसे न हों?

जब पवारों की मौत हो और रेड्डी हंसे?