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राजनीति के रास्ते आगे बढ़ रही है वाजपेयी की विरासत

अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी के नेता उससे होने वाले फायदों को भी खूब भुना रहे हैं

Amitesh

हरिद्वार में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अस्थि कलश को लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हरकी पैड़ी पहुंचे. इस मौके पर कई और नेता-मंत्री भी मौजूद रहे. उनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी की दत्तक पुत्री नमिता कौल भी परिवार समेत मौजूद थी. अटल जी की अस्थियां मोक्षदायिनी गंगा में विसर्जित कर दी गईं.

इस मौके पर भी बीजेपी के सभी दिग्गजों की मौजूदगी यह बताने के लिए काफी था कि कैसे बीजेपी आलाकमान ने अपने सबसे प्रिय नेता की विरासत को संजोने, संभालने और उसको आगे बढ़ाने के लिए अपने-आप को अटल जी के प्रति समर्पित कर दिया है.


राजनीति के एक युग का अंत

16 अगस्त को अटल बिहारी वाजपेयी ने जब दिल्ली में एम्स में अंतिम सांसे लीं. उस दिन सुबह से लेकर रात तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, मोदी सरकार के सभी मंत्रियों के अलावा बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक सबने एम्स से लेकर बाद में उनके सरकारी आवास तक अपने-आप को सीमित कर दिया. पल-पल उनकी सेहत का समाचार लेने के लिए सभी तत्पर रहे.

अगले दिन सुबह जब उनके पार्थिव शरीर को बीजेपी के केंद्रीय कार्यालय में लाया गया तो वहां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लगातार पार्टी दफ्तर में वहां मौजूद रहे, जहां बीजेपी के सभी नेता और कार्यकर्ताओं के अलावा अटल जी को चाहने वालों का श्रद्धांजलि देने के लिए तांता लगा था. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस मौके पर लगातार मोदी-शाह के साथ बैठे दिखे. इसके बाद अंतिम यात्रा में स्मृति स्थल तक बीजेपी के सभी नेता अंतिम यात्रा में पैदल ही गए.

उनके अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थि यात्रा को विसर्जित करने की बात हो या फिर बीजेपी शासित राज्यों में उनकी विचारों और उनके सिद्धांतों को आगे बढ़ाने की बात हो, बीजेपी की तरफ से प्रयास जारी है.

अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि यूपी रही है. यूपी के बलरामपुर से ही अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 1957 में सांसद चुने गए. बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री रहते लखनऊ का भी प्रतिनिधित्व किया. कानपुर में उन्होंने पढ़ाई की थी. इस लिहाज से यूपी से उनका काफी गहरा नाता रहा है.

कर्मभूमि है यूपी 

अटल जी के पंचतत्व में विलीन होने के बाद अब उनकी यादों को संजोने के लिए यूपी सरकार ने कई बड़े फैसले किए हैं. यूपी में चार स्थलों लखनऊ, कानपुर, बलरामपुर और आगरा में अटल बिहारी वाजपेयी के स्मारक बनाने का फैसला किया गया है जहां से उनकी यादें जुड़ी हुई हैं. इसके अलावा यूपी सरकार ने तय किया है कि प्रदेश की हर छोटी-बड़ी नदियों में अटल अस्थि कलश को विसर्जित किया जाएगा. हालाकि सबसे पहले हरिद्वार में अस्थि कलश यात्रा के बाद उनका अस्थि विसर्जन किया गया है.

यूपी के अलावा बिहार समेत देश के लगभग हर राज्य में उनका अस्थि विसर्जन किया जा रहा है. लेकिन, इस वक्त मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ से अटल जी के सम्मान में नई-नई घोषणाओं का अंबार लग रहा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के सात शहर भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, सागर और सतना को अटल स्मार्ट सिटी का नाम दिया है. ये सभी शहर अब अटल स्मार्ट सिटी कहे जाएंगे.

इसके अलावा उनके नाम पर और भी कई योजनाओं का नामकरण किया जा रहा है. अगले साल से मध्य प्रदेश के स्कूलों में अटल जी की जीवनी भी पढ़ाई जाएगी. भोपाल में बन रहे विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन का नाम भी अटल जी के नाम पर करने का फैसला किया गया है.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्यप्रदेश में ही हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा भी उनकी वहीं हुई थी. यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने प्रदेश की मिट्टी मैं पैदा हुए इस महान शख्स की यादों को अनंत काल के लिए यादगार बनाने में लगे हैं.

वाजपेयी, शिवराज और विधानसभा चुनाव

दरअसल, मध्यप्रदेश में इसी साल के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं. पिछले पंद्रह साल से प्रदेश की सत्ता में बीजेपी है. इस वक्त राज्य भर में अलग-अलग जगहों पर दौरा करके शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार बनाने की कवायद कर रहे हैं. लिहाजा वह पार्टी के भीष्म पितामह के नाम और काम के दम पर लोगों को जोड़ने में जुटे हैं.

बात अटल जी के सम्मान की कही जा रही है. लेकिन, उनकी जिंदगी से जुड़े हर उस स्थल को विकसित करने, उनके नाम पर सात स्मार्ट शहर का नाम रखने और उनके नाम पर हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलने जैसी तमाम कोशिशों से लगता है कि मुख्यमंत्री चौहान  विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता, उनके चाहने वालों का प्यार और उनके प्रति समर्पण को अपने लिए भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें कुछ गलत भी नहीं है, क्योंकि अटल जी बीजेपी के सबसे बड़े और कद्दावर नेता थे.

दरअसल बीजेपी अटल जी के नाम और उनके काम का फायदा आगे भी लेना चाह रही है. उनके आदर्शों और उनके विचारों की पोटली को अपना विरासत बनाकर उसे सहेजने की उसकी कोशिश से इस बात की झलक मिल रही है कि पार्टी उनकी विरासत को लेकर कितनी सजग है.

यूपी भी पीछे नहीं

मध्यप्रदेश भले ही अटल जी की जन्मभूमि रही हो, लेकिन, उनकी कर्मभूमि यूपी को ही माना जाता है. उनकी कर्मभूमि यूपी में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उनकी यादों को संजोने-संवारने के प्रति दिखाया गया उत्साह, इतिहास में शामिल हो चुके इस अजातशत्रु के सम्मान में स्मारक का निर्माण कराना और सर्वजन के लोकप्रिय अपनी मधुर वाणी से सबको मंत्रमुग्ध करने वाले जननेता की अस्थियों को पूरे प्रदेश की नदियों में प्रवाहित करना यह दिखाता है कि योगी भी अटल जी के प्रति सम्मान के साथ-साथ उनके प्रति अपने समर्पण और लगाव को दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

भले ही मध्यप्रदेश में अभी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. लेकिन, आने वाले दिनों में यूपी के भीतर भी अटल जी के नाम, काम और उनके सपने को साकार करने को लेकर योगी सरकार अपनी वचनबद्धता और प्रतिबद्धता दिखा रही है. उनके नाम का सियासी फायदा लेने से बीजेपी यूपी में भी नहीं हिचकेगी.

बीजेपी की तरफ से देश भर में अटल बिहारी वाजपेयी के काम को लेकर जिस तरह से दिखाने और आगे बढ़ाने की कोशिश हो रही है, उससे साफ है कि वो अटल जी की विरासत पर पूरी तरह से अपना हक जता रही है. अटल जी की उदार छवि के नाम पर उन्हें नेहरुवादी बताने वालों के लिए पार्टी कोई स्पेस नहीं छोड़ना चाहती.