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5 राज्यों के चुनावी नतीजे 2019 का सेमीफाइनल नहीं हैं, जानिए क्यों...

कई राजनीतिक एक्सपर्ट्स इन विधानसभा चुनावों को 2019 का सेमीफाइनल बता रहे हैं लेकिन इस दावे में कितनी सच्चाई है

FP Staff

अब जब कि पांच राज्यों के चुनावी रण की तस्वीर साफ होने में एक दिन का समय भी नहीं बचा है तो हमें राजनीतिक पंडितों से कई तरह के स्टेटमेंट सुनने को मिल रहे हैं. जिनमें इन चुनावी नतीजों को 2019 का सेमीफाइनल करार दिया जाना सबसे आम है.

लेकिन इन चुनावों को 2019 का सेमीफाइनल मानना ठीक नहीं है. इस तर्क के पीछे वजह ये दी जा रही है कि जिस पैटर्न पर वोट विधानसभा चुनाव में पड़े हैं उसी पैटर्न पर वोट 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पड़ेंगे. इस समय जो राजनीतिक टिप्णियां आ रही हैं उसमें एक कॉमन बात यही है कि ये चुनाव 2019 की बड़ी लड़ाई का मंच तैयार करेंगे. या ये भी तर्क है कि ये चुनाव 2019 के पहले मतदाताओं का मूड बता देंगे. लेकिन ये तर्क कमजोर हैं. इन चुनावों से ये दोनों ही बातें स्पष्ट नहीं होने वाली हैं.


15 करोड़ लोग नही बता सकते 85 करोड़ मतदाताओं का मूड

पहली बात तो ये है कि करीब 15 करोड़ मतादाताओं के रुझान के जरिए ये बताना कि चार महीने बाद बाकी के 85 करोड़ वोटर कैसे वोट करेंगे, अवैज्ञानिक, गलत और सनसनी पैदा करने वाला दृष्टिकोण है. जब हम 29 में से सिर्फ 5 राज्यों के वोटिंग पैटर्न के आधार पर पूरे देश का माहौल बताने की कोशिश करते हैं तो हम अपने देश के ही लोकतंत्र का मजाक बना रहे होते हैं.

इस तरह के तर्क देते हुए हम ये भी भूल जाते हैं कि 2019 के नतीजे भी कोई एक नतीजा नहीं हैं बल्कि 29 राज्यों के अलग-अलग नतीजे होंगे. इसका कारण ये है कि भारत के 29 राज्यों में मतदाताओं के भिन्न रुझान और राजनीतिक मिजाज होते हैं. हर राज्य के अपने अलग मुद्दे हैं. वास्तविकता में किसी भी विधानसभा चुनाव को 2019 के सेमीफाइनल के तौर पर नहीं माना जा सकता है. अगर हम ऐसा कर भी रहे हैं तो ये समझ लीजिए कि एक कठिन प्रक्रिया को बेहद हल्के तरीके से ले रहे हैं.

सामान्य तौर पर सेमीफाइनल शब्द का इस्तेमाल खेलों में किया जाता है. इसका मतलब होता है कि किसी सेमीफाइनल मैच में खेल रहे दोनों प्रतिभागियों में से जो भी जीतेगा, वो फाइनल खेलेगा. साथ ही सेमीफाइनल में दोनों ही टीमें पीछे अपने से कमजोर टीमों को हराकर वहां पहुंचती हैं. लेकिन अब जरा 2019 के लोकसभा चुनाव के बारे में सोचिए क्या ऐसा यहां होगा? क्या ये ऐसा फाइनल होगा जहां पर सिर्फ सेमीफाइनल के विजेताओं के बीच ही 'युद्ध' होगा.

विशेषतौर पर चुनावों की बात की जाए तो क्या 2019 में ऐसा ही होगा? ये सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होगा. यहां के कई राजनीतिक विशेषज्ञ तो क्षेत्रीय नेताओं को इतना बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं जैसा प्रदर्शन उन्होंने पूर्व में कभी नहीं किया.

विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद भी मोदी हैं पहली पसंद

इन चुनावों का असर 2019 के लोकसभा चुनावों पर उतनी मजबूती से नहीं पड़ेगा इस बात की तस्दीक 2018 अगस्त में छपा एक सर्वे भी करता है. इस सर्वे में कहा गया था कि भले ही एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में कांग्रेस की जीत हो जाए लेकिन पीएम के तौर पर जनता नरेंद्र मोदी को ही पसंद करेगी. अगर वसुंधरा राजे और रमन सिंह अपने राज्यों में एंटी इंकंबेंसी से लड़ पाने में नाकामयाब भी रहेंगे तो भी ये नरेंद्र मोदी के लिए कोई खतरे वाली बात नहीं है.

वैसे भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच में अंतर करने वाले राजनीतिक जानकारों का मत है कि इन दोनों चुनावों के मुद्दों में काफी अंतर होता है. राज्य के चुनावों में जनता क्षेत्रीय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देती है वहीं लोकसभा के चुनावों में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित होता है.

( फ़र्स्टपोस्ट पर अनन्या श्रीवास्तव की स्टोरी से इनपुट के साथ.)