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राहुल गांधी की राजनीतिक नर्सरी में पैदा हुआ 'हिंदुत्व' होगा 2019 में कांग्रेस का असली एजेंडा

लोगों को पूरी उम्मीद करनी चाहिए कि 2019 के चुनाव में एक बदली हुई कांग्रेस लोगों के बीच होगी. जिसका मुखिया मंदिरों में दर्शन की अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी के साथ पोस्ट कर रहा होगा.

Arun Tiwari

महात्मा गांधी की आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग  दुनियाभर में सबसे सच्ची आत्मकथा के तौर पर पहचानी जाती है. ऐसा माना जाता है कि महात्मा गांधी ने जिस तरह से अपने जीवन के बारे में खुलकर लिखा वैसा साहस शायद ही दुनिया का कोई लेखक कर पाए. गांधी के ज्यादातर विरोधियों को तर्क उनकी आत्मकथा से ही मिलते हैं. गांधी उन नेताओं में से थे जिनकी वजह से आजादी के पहले की कांग्रेस लोगों में रची-बसी थी. कह सकते हैं आजादी के पहले गांधी ही कांग्रेस के मूल थे.

आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री भी बने और कांग्रेस  के अध्यक्ष भी. जवाहर लाल नेहरू ने भी अपने जीवन में कई प्रयोग किए. उन प्रयोगों को पूरा देश दशकों से जीता आ रहा है और उन प्रयोगों को हम नेहरू की विरासत के नाम से भी जानते हैं. भारतीय समाज के लिए नेहरू के सबसे बड़े प्रयोग के रूप में हम धर्मनिरपेक्ष राजनीति को जानते हैं और पूरा देश इस पर गौरवांवित महसूस करता है. देश की इन दोनों विभूतियों ने अपने जीवन के इन प्रयोगों को कुछ इस रूप में लोगों को सामने रखा कि ये आगे चलकर आदर्श बन गए. इन दोनों नेताओं के हाथों में कांग्रेस वर्षों तक रही. इन दोनों नेताओं के अपने जीवन के साथ किए गए प्रयोगों का असर भी पार्टी पर दिखाई देता रहा.


महात्मा गांधी की मौत के लगभग 69 साल बाद और नेहरू की मृत्यु के लगभग 53 साल बाद कांग्रेस पार्टी के एक और अध्यक्ष बने हैं जिन्होंने एक नए तरह का प्रयोग शुरू किया है. वो नेता हैं राहुल गांधी और उनका प्रयोग धर्म के साथ है. और इस प्रयोग की शुरुआत राहुल गांधी ने 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान शुरू की थी. दिलचस्प ये है कि महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के जीवन में किए प्रयोग स्वत:स्फूर्त थे तो वहीं राहुल गांधी के धर्म के साथ प्रयोग भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू किए गए.

2014 के चुनाव में बीजेपी के हाथों राजनीतिक धोबीपाट खाने के बाद कांग्रेस पर मुस्लिमपरस्त होने का आरोप लगा था. इसके बाद राज्य दर राज्य सत्ता गंवाते राहुल गांधी से जब इंतजार न हुआ तो उन्होंने धर्म के साथ अपने प्रयोग शुरू किए, फिर वो ब्राह्मण, जनेऊधारी, शिवभक्त, रामभक्त राहुल गांधी के रूप में बाहर आए.   

अगर आप राहुल गांधी के इस नए प्रयोग को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं तो एक बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस का घोषणा पत्र जरूर पढ़िएगा. आपको बेहद इंटरटेनिंग टॉपिक पढ़ने को मिलेंगे जैसे राज्य की हर पंचायत में गोशाला का निर्माण कराना, राम गमन पथ का निर्माण करवाने जैसे कई दिलचस्प वादे जो सुनने में भले ही भाजपाई लगते हों लेकिन उन्हें जगह राहुल की अगुवाई वाली कांग्रेस पार्टी ने दी है. सबसे दिलचस्प तो ये है कि पार्टी ने राज्य में गोमूत्र के व्यावसायिक उत्पादन का वचन भी जनता को अपने घोषणा पत्र में दिया है.

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी धर्म के साथ एक और प्रयोग किया. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपनी गोत्र बताई. गोत्र बताने में राहुल ने धर्म के साथ एक नया प्रयोग किया. सामान्य तौर हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की गोत्र उसके पैतृक पक्ष के आधार पर बताई जाती है लेकिन राहुल गांधी ने अपनी दादी यानी इंदिरा गांधी के पिता जवाहर लाल नेहरू के पक्ष से अपनी गोत्र बताई. चुनाव के बीच इस मुद्दे पर खूब चर्चा हुई.

खैर, राहुल गांधी अपने रास्ते अडिग रहे. वे कभी राजस्थान में किसी मंदिर में दिखाई देते तो कभी मध्यप्रदेश में किसी मंदिर में माथा टेकते दिखाई देते. चुनाव प्रचार से कुछ ही समय पहले वो हिंदु धर्म के सबसे पवित्र तीर्थों में से एक मानसरोवर की यात्रा पर भी गए. वहां से उन्होंने अपनी तस्वीरें भी पोस्ट कीं, जिससे लोगों के बीच तैयार की जा रही धार्मिक छवि को और मजबूत किया जा सके.

गुजरात विधानसभा चुनावों से बीजेपी को पटखनी देने के लिए शुरू हुई राहुल गांधी की मंदिर दौड़ एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव के दौरा खूब जमकर चली. गुजरात चुनाव में इस मंदिर दौड़ के प्रयोग के फायदे देखकर आए राहुल गांधी एक और प्रैक्टिकल करके देखना चाहते थे कि क्या ये प्रयोग अन्य जगह भी लागू होगा?

एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी ने न सिर्फ इस प्रयोग पर जमकर काम किया बल्कि पार्टी का मेनीफेस्टो भी ऐसा तैयार करवाया जिसमें धार्मिकता की तरफ झुकाव शामिल हो. राहुल अपने धार्मिक प्रयोग की पूरी पुष्टि करके देख लेना चाहते थे. इसी वजह से न सिर्फ धार्मिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया बल्कि लिखित में गोशाला और राम गमन पथ बनवाने का वादा भी किया. अब जबकि चुनाव नतीजे सामने आ चुके हैं राहुल गांधी धर्म के साथ अपने प्रयोग पर जरूर गौरवांवित महसूस कर रहे होंगे.

ये चुनाव पंडित राहुल गांधी की राजनीति पर मुहर की तरह साबित हुए हैं. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार के भ्रष्टाचार के साथ राहुल गांधी ने लोगों के बीच अपनी धार्मिक छवि तैयार करने का काम किया उसका फायदा तो कांग्रेस होता दिख ही रहा है. राहुल भाषण घोटालों पर देते थे और उसके बाद फिर किसी मंदिर दर्शन करने पहुंच जाते थे. उसके मीडिया से अगर बात होती थी तो अपनी सेकुलरिजम की राजनीति पर व्याख्यान भी दे देते थे.

मंगलवार को जो चुनावी नतीजे सामने आए उसके बाद अब राहुल गांधी के पास राजनीतिक लड़ाई का एक पक्का हथियार तैयार हो चुका है. जल्द ही इन राज्यों में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के नामों की घोषणाएं भी हो जाएंगी. संभव है जल्दी ही कुछ हिंदुवादी योजनाओं पर कांग्रेस की तरफ से तेजी काम भी शुरू कर दिया जाए जिससे लोगों की बीच तैयार की गई पार्टी की धार्मिक इमेज को बनाए रखा जा सके.

मजेदार ये है कि बीजेपी राहुल गांधी की इस धार्मिक इमेज से बैकफुट पर आ जाती है और उन पर प्रहार करना शुरू कर देती है. और जैसे ही राहुल की धार्मिक वायदों या फिर धार्मिक क्रियाकलापों पर चर्चा शुरू होती है, वो अपने ध्येय में कामयाब होते हुए दिखाई देते हैं.

सप्ताह भर से ज्यादा का समय नहीं लगेगा जब विधानसभा चुनावों की खुमारी उतर चुकी होगी. एकाध महीने में लोकसभा चुनावों की गर्मी छाने लगेगी. बहुत उम्मीद की जा रही है कि इस बार कांग्रेस का पीएम फेस राहुल गांधी ही होंगे. अब राहुल गांधी के पास दो जगहों पर धार्मिक छवि और धर्म के चुनाव में प्रयोग का पॉजिटिव अनुभव भी है. बीजेपी इस मसले पर गुस्साती भी है.

लोगों को पूरी उम्मीद करनी चाहिए कि 2019 के चुनाव में एक बदली हुई कांग्रेस लोगों के बीच होगी. जिसका मुखिया मंदिरों में दर्शन की अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी के साथ पोस्ट कर रहा होगा. संभव है कि वो चुनावों के दौरान अल्पसंख्यकों के मुद्दे से कन्नी भी काट जाए ( गुजरात चुनाव की तरह ). लेकिन एक बात तय है इस बार भगवाई जनता पार्टी का मुकाबला भगवाई कांग्रेस से होने वाला है.