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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018: जोगी के लिए पहली चुनौती अपनी ही सीट है जहां पर जीत दूर तक जाएगी

मरवाही की सीट जीत लेने भर से क्या छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की वो महत्वाकांक्षा पूरी हो जाएगी जिसकी वजह से उन्होंने ‘पंजे’ से ‘हाथ’ छुड़ाया?

Kinshuk Praval

छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण में 72 सीटों पर मतदान हुआ. इसमें एक सीट ऐसी भी है जिस पर खुद राज्य के सीएम डॉ रमन सिंह की भी नजर है. ये सीट है मरवाही. इस सीट के हाईप्रोफाइल होने की वजह है अजित जोगी एंड फैमिली. मरवाही सीट को जोगी का गढ़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि पिछले 18 साल से अजित जोगी 'मरवाही के महाराज' हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से अजित जोगी के बेटे अमित जोगी चुनाव जीते थे. लेकिन इस बार अजित जोगी खुद ही इस सीट से चुनाव मैदान में हैं. बेटे अमित जोगी के मौजूदा विधायक होने के बावजूद अजित जोगी के पारंपरिक सीट चुनने के पीछे वजह भी साफ है. इस बार कांग्रेस के किले से जोगी बाहर निकल आए हैं. जोगी अपनी नई पार्टी जनता छत्तीसगढ़ कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में हैं. जोगी खुद मरवाही सीट से खड़े हुए तो अपनी पत्नी रेणुका जोगी को पड़ौस की कोटा सीट से उम्मीदवार बना दिया ताकि मामला दूरी की वजह से फंस न जाए.


सवाल ये है कि मरवाही की सीट जीत लेने भर से क्या छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की वो महत्वाकांक्षा पूरी हो जाएगी जिसकी वजह से उन्होंने ‘पंजे’ से ‘हाथ’ छुड़ाया?

अजित जोगी जब छत्तीसगढ़ बनने के बाद राज्य के पहले सीएम बने तो उन्होंने मरवाही सीट से ही साल 2001 में उपचुनाव जीता था. इस सीट से अजित जोगी हैट्रिक लगा चुके हैं. उन्होंने साल 2003 और फिर 2008 में भी मरवाही सीट से चुनाव जीता. लेकिन साल 2013 में अपनी बजाए बेटे अमित जोगी को यहां से उम्मीदवार बनाया.

जोगी मरवाही सीट से 75 हजार से ज्यादा वोटों से जीतते आए हैं. जीत के मार्जिन से जोगी की लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है. साथ ही ये सवाल भी उठाया जा सकता है कि पिछले 18 साल में अजित जोगी ने अपनी इस पारिवारिक सीट में विकास के क्या क्या काम कराए? दरअसल, जोगी विकास के तीर चलाएंगे रमन सरकार पर और मरवाही सीट से वो आदिवासियों से अपने रिश्तों की दुहाई देकर वोट मांगेंगे.

मरवाही सीट पर अबतक विधानसभा के 11 चुनाव हो चुके हैं. साल 1972 में पहली दफे मरवाही सीट वजूद में आई थी. मरवाही से छत्तीसगढ़ की कमान संभालने के लिए सियासी पारी शुरू करने वाले जोगी को आदिवासी समुदाय के वोटों का आसरा है. जोगी की आदिवासी इलाकों में गहरी पैठ रही है. हालांकि इस बार वो अपनी पार्टी के नए चुनाव चिन्ह के साथ जनता के सामने होंगे. ऐसे में उन्हें कांग्रेस के हाथ के पंजे से पारंपरिक वोटरों को छुड़ाना इतना आसान नहीं होगा. जोगी इस चुनौती को जानते हैं और ये भी जानते हैं कि 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में 39 सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं. तभी उन्होंने छत्तीसगढ़ की 90 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की बजाए बीएसपी का हाथ थामा और ये गठजोड़ निर्णायक साबित हो सकता है.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पहले चरण में नक्सल प्रभावित इलाकों की 18 सीटो पर वोटिंग हुई. ये माना जाता रहा है कि इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने वाली पार्टी ही सत्ता के सिंहासन पर पहुंचती है. लेकिन साल 2013 के विधानसभा चुनाव में 18 में से 12 सीटें जीतने वाली कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी. जबकि माओ प्रभावित इलाके में औसत प्रदर्शन के बावजूद बीजेपी ने दूसरी 72 में से 43 सीटों पर जोरदार वापसी करते हुए सरकार बनाई.

बीजेपी ने आरक्षित एसटी सीटों पर कांग्रेस की तरह कमाल नहीं किया और न ही माओवादी प्रभावित सीटों पर करिश्मा दिखाया. ऐसे में मायावती-जोगी की जुगलबंदी से कांग्रेस को ही सूबे की 39 आरक्षित सीटों पर नुकसान हो सकता है. लेकिन वोटर बंटेंगे तो उनका असर बीजेपी के उम्मीदवारों पर भी पड़ेगा तो नतीजों पर भी. ऐसे में अगर 11 दिसंबर की काउंटिंग के बाद छत्तीसगढ़ में त्रिशंकु विधानसभा बनती है तो छत्तीसगढ़ की राजनीति में उसे जोगी की जोरदार दस्तक माना जाएगा. लेकिन उससे पहले अजित जोगी का मरवाही की सीट को भी जीतना जरूरी है क्योंकि परिवार की 18 साल कब्जे में रहने वाली सुरक्षित सीट अब सम्मान का भी प्रतीक बन चुकी है.