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अब तो कांग्रेस और राजनीति को बख्श दें राहुल गांधी!

वक्त आ गया है जब राहुल गांधी को कुर्बानी का मतलब समझना होगा और कुर्बानी देनी होगी.

Sandipan Sharma

दो दिन पहले गोवा में कांग्रेस विधायकों का समर्थन जुटाने के लिए अजीबो-गरीब तर्क दे रही थी. कांग्रेस के नेता विधायकों को समझा रहे थे कि सोनिया गांधी बलिदान की सबसे बड़ी मिसाल हैं. उन्होंने बहुत सी कुर्बानियां दी हैं. वो आपके लिए भी बलिदान करेंगी.

कांग्रेस ये अपील उन विधायकों से कर रही थी, जिनका समर्थन सरकार बनाने के लिए जरूरी था क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था.


सोनिया नहीं, राहुल की कुर्बानी की जरूरत है

कांग्रेस जो बात-बात पर सोनिया गांधी के बलिदान की मिसालें देती है, उसे यही सबक राहुल गांधी को भी याद कराना चाहिए. कांग्रेसियों को चाहिए कि वो राहुल से कहें कि अब उनकी कुर्बानी देने का वक्त आ गया है. उन्हें अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी कुर्बानी अब दे ही देनी चाहिए.

राहुल गांधी को चाहिए कि वो खुलकर ये एलान करें कि कांग्रेस में वो कोई भी पद नहीं लेंगे. वो ये भी एलान करें कि वो कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर दावा नहीं करेंगे.

देश ने और कांग्रेस ने, राहुल गांधी को बहुत मौके दिए हैं. हर मौके पर राहुल गांधी अपनी नेतृत्व क्षमता साबित करने में नाकाम रहे. आज उन्हें हिकारत से देखा जाता है. उनका मजाक बनाया जाता है. वोटर उन्हें तवज्जो नहीं देता. ऐसे हालात में राहुल गांधी को खुद राजनीति को विदा कह देना चाहिए. अपनी खुद की विरासत के लिए राहुल गांधी को कांग्रेस छोड़ देनी चाहिए.

वो जब तक राजनैतिक सीन में रहेंगे, कांग्रेस का भला नहीं हो सकता. पूरी उम्र बीत जाएगी मगर देश राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेगा. भले ही वो राजनीति में इकलौते नेता क्यों न बचें, तब भी वोटर, नोटा (NOTA) बटन दबाना बेहतर समझेंगे.

राहुल को कोई और काम ढूंढ लेना चाहिए

ऐसे में राहुल गांधी को अपने लिए कोई नया काम, नई दिलचस्पी खोज लेनी चाहिए. उन्हें ऐसा काम करना चाहिए, जिसे वो वाकई पसंद करते हों. जिस तरह ब्रिटेन के राजा एडवर्ड अष्टम ने अपनी प्रेमिका वालिस सिंपसन के लिए ताज को तिलांजलि दे दी. उसी तरह राहुल गांधी को भी अपने लिए कोई ऐसा साथी तलाशकर, राजनीति को अलविदा कह देना चाहिए.

राहुल गांधी की तरह एडवर्ड अष्टम भी आलसी और कामचोर माने जाते थे. जिस तरह लोग राहुल के बारे में ये मानते हैं कि उनकी राजनीति में दिलचस्पी नहीं. ठीक उसी तरह बीसवीं सदी में एडवर्ड अष्टम के लिए कहा जाता था कि उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य का अगुवा बनने में कोई दिलचस्पी नहीं.

किसी भी मजबूत लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि उसमें एक ताकतवर विपक्ष हो. मगर राहुल गांधी की जिद की वजह से देश एक मजबूत विपक्ष से महरूम है.

राजनीति को लेकर राहुल के डर, बचकानेपन और पार्ट टाइम पॉलिटिक्स करने से देश पर एक पार्टी का राज होता जा रहा है. उसे चुनौती देने की विपक्ष की ताकत सिर्फ राहुल गांधी की वजह से कमजोर होती जा रही है.

राहुल गांधी अनचाहे ब्रांड हैं

एक और चुनावी हार के बाद कांग्रेस का ये कहना कि हार-जीत तो लोकतंत्र का हिस्सा है, सिरे से खारिज करने लायक है. चुनाव दर चुनाव, कांग्रेस न सिर्फ हार रही है, बल्कि ये खंड-खंड होती जा रही है. यही हाल रहा तो कांग्रेस जल्द ही गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में एक मजबूत पार्टी का दावा भी गंवा देगी.

इनमें से कई राज्यों के लोग बीजेपी से नाराज हैं. फिर भी बीजेपी के सत्ता में वापसी करने में कामयाब होने की उम्मीद है क्योंकि लोगों को लगता है कि अनजाने-अनदेखे देवता से बेहतर, जाना समझा दैत्य है.

कांग्रेस जिस तरह बार-बार हार रही है, उससे ये कहा जा सकता है कि जनता बार-बार राहुल गांधी को नकार रही है. आज राहुल गांधी ऐसा ब्रांड बन गए हैं जिसके साथ कोई भी नहीं जुड़ना चाहता.

राहुल गांधी ठीक उसी तरह अप्रासंगिक हो गए हैं, जिस तरह कभी पेजर लॉन्च होने से पहले ही नाकाम हो गए थे. उनकी गलत पसंद, राजनैतिक समझ की कमी और नाज-नखरों ने वोटरों को नाखुश कर दिया है. कांग्रेसी भी राहुल से असंतुष्ट हैं.

जनता को चाहिए कोई भरोसेमंद नेता

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की हर उम्मीद खत्म हो चुकी है. पंजाब के नतीजों ने जताया है कि मतदाताओं का एक तबका खामोशी से कांग्रेस के ऐसे नेता का इंतजार कर रहा है, जिस पर वो ऐतबार कर सके. वो शख्स गांधी परिवार से नहीं हो सकता और राहुल गांधी तो कतई नहीं हो सकते.

अगर राहुल गांधी को सामने रखे बिना चुनाव लड़े, तो कांग्रेस, बीजेपी और उसके सहयोगियों को कड़ी टक्कर दे सकती है. अगर कांग्रेस ये सबक याद कर ले, तो, उसके राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतने की उम्मीद बढ़ सकती है. वो गुजरात और मध्य प्रदेश में बीजेपी को कड़ी टक्कर भी दे सकती है.

मगर जीत के लिए जरूरी है कि कांग्रेस मशहूर ब्रिटिश राजनेता एडमंड बर्क की कही बात को याद रखे: साधारण लोगों की जीत के लिए सिर्फ एक शर्त है, कि, असाधारण काबिलियत वाले लोग खामोश बैठे रहें.

कांग्रेसियों को खुद करनी होगी पहल

कांग्रेस के नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं को खुलकर राहुल गांधी से कह देना चाहिए कि भगवान के लिए अब वो कांग्रेस को बख्श दें. चले जाएं. राजनीति से विदा ले लें.

कांग्रेसियों को एकजुट होकर इस बात पर माथापच्ची करनी चाहिए कि पार्टी की कमान किसी और के हाथ में जाए. भले ही इसके लिए कुछ वक्त तक अंदरूनी कलह हो. और अगर कोई और रणनीति काम न आए, तो कांग्रेस को तमाम राज्य इकाइयों का गठजोड़ समझकर ही कुछ दिनों तक चलाया जाए.

ठीक उसी तरह जैसे लखनऊ के नवाब और हैदराबाद के निजाम बहादुर शाह जफर के साथ करते थे. वो अपना राज अपने तरीके से चलाते थे. और सिर्फ नाम के लिए मुगल बादशाह के आगे सलाम बजाते थे. ऐसे ही कांग्रेस की राज्य इकाइयों को अपनी लड़ाई अपने तरीके से लड़ते हुए, केंद्रीय नेतृत्व को सिर्फ नाम के लिए सलामी ठोकनी चाहिए.

इसकी शुरुआत, राहुल गांधी के कुर्बानी का मतलब समझने और कुर्बानी देने से ही होगी. अगर वो खुद ऐसा नहीं करते, तो जबरदस्ती उनकी कुर्बानी लेनी होगी.