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ईवीएम में गड़बड़ी की बहानेबाजी नहीं चलेगी केजरीवाल जी!

अगर एमसीडी में अरविंद केजरीवाल की हार होती है तो वे इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन को दोष देंगे

Akshaya Mishra

गणित के क्लास टेस्ट में नंबर कम आए हों तो घर में बच्चे क्या कहते हैं? यही कि ‘कुछ तो गड़बड़ है पापा, मैं कसम से कहता हूं कि मैंने सारे जवाब सही लिखे थे. टीचर ने कुछ बच्चों को अपने सिर पर चढ़ा रखा है, उन्हें हमेशा ज्यादा नंबर आते हैं.’

'क्या सच में ऐसा है?' बच्चे का जवाब सुनकर आपके मुंह से निकलता है. आप सोचते हैं कि ओह, बच्चे ने तो टीवी का सीरियल देख-देखकर ‘गड़बड़’ शब्द कहना सीख लिया. आपके मन में आता है कि बच्चा यह सीरियल देखना छोड़ क्यों नहीं देता.


इसी फिक्र में गुम आप उससे कहते हैं, 'तुम ठीक कह रहे हो बेटा, लेकिन मैथ्स के पिछले टेस्ट में तो तुम्हें अच्छे मार्क्स आए थे. तब तुमने अपने टीचर की एक भी शिकायत नहीं की. क्या टीचर ने पिछली दफे तुम्हें अपने सिर पर चढ़ा रखा था?' आपकी बात सुनकर बच्चा मुंह बिचकाता है और चुप हो जाता है.

केजरीवाल के आरोप बचकाने क्यों?

इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन को लेकर अरविंद केजरीवाल ने गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं और इन आरोपों को सुनकर आपको याद आता है घर में बच्चे कुछ ऐसा ही बहाना बनाते हैं.

दिल्ली विधानसभा के चुनाव में जब अरविंद केजरीवाल को 70 में से 67 सीटें मिली थीं तो उन्हें ईवीएम मशीन में गड़बड़ी क्यों नजर नहीं आई? इससे पहले भी जनता ने एक न एक पार्टी को भारी जनादेश सुनाया है. ऐसे वक्त पर अरविंद केजरीवाल को क्यों नहीं याद आया कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है?

मीडिया से बात करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पंजाब में वोटिंग मशीनों के साथ छेड़छाड़ की गई है. इस वजह से आम आदमी पार्टी को मिलने वाले ढेर सारे वोट अकाली दल-बीजेपी गठबंधन के खाते में ट्रांसफर हो गए.

पढ़िए: तो आप इसलिए ईवीएम की गड़बड़ी का रोना रो रही है!

उनका सवाल था कि कुछ इलाकों में आम आदमी के जितने वॉलंटियर्स थे,  उससे भी कम वोट मिले हैं, ऐसा कैसे हो सकता है? उन्होंने इस बात पर भी अंगुली उठाई कि सारे चुनावी सर्वेक्षणों में कहा गया था कि पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति हो सकती है तो फिर कांग्रेस को इतनी भारी जीत कैसे मिली.

ईवीएम में गड़बड़ी से अन्य राज्यों में बीजेपी को बहुमत क्यों नहीं?

अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की? अगर केजरीवाल को लगता है कि कांग्रेस ने पंजाब में ईवीएम में छेड़छाड़ की तो उन्हें बताना चाहिए कि उसने उत्तरप्रदेश में यही कारनामा क्यों नहीं किया. आखिर उत्तरप्रदेश में भी कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर लगा था.

और इस बात को भी छोड़ दें, अगर ईवीएम में गड़बड़ी हो सकती है तो बीजेपी मणिपुर और गोवा में पूर्ण बहुमत की जीत क्यों नहीं हासिल कर पाई. मशीन में छेड़छाड़ करके इन दोनों राज्यों में भी पूर्ण बहुमत हासिल कर लेती बीजेपी.

बेशक अरविंद केजरीवाल की यह बात ठीक है कि वोटिंग मशीनों में गड़बड़-घोटाला किया जा सकता है और पश्चिम के कुछ मुल्कों ने मशीन के कामकाज में परेशानी के मद्देनजर इसका इस्तेमाल करना बंद कर दिया है.

लेकिन इससे यह बात कहां साफ होती है कि बीजेपी के लिए चुनाव-परिणाम अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मिजाज के क्यों रहे. ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल ने चुनाव सर्वेक्षण और चुनाव विश्लेषकों की राय को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया.

लेकिन चुनाव सर्वेक्षण और चुनाव विश्लेषकों के अनुमान अक्सर गलत साबित होते हैं. कोई चुनाव-परिणामों का विश्लेषण सड़क चलते आदमी की नजर से करे तब भी उसे यह बात दिख जायेगी.

मिसाल के लिए कोई भी चुनाव सर्वेक्षण यह अनुमान नहीं लगा सका कि बीजेपी को 2014 के चुनावों में बहुत बड़ी जीत हासिल होने वाली है या फिर यह कि दिल्ली और बिहार के चुनावों में पार्टी एकदम धराशायी हो जाएगी. ठीक इसी तरह अभी यूपी के चुनावों के बारे में भी कोई सर्वेक्षण बीजेपी की भारी जीत के अनुमान नहीं लगा पाया.

एमसीडी चुनाव में हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ेंगे केजरीवाल 

अब केजरीवाल चाहते हैं कि चुनाव आयोग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने वाले नगरनिगम के चुनावों में मतदान के उस पुराने ढर्रे पर चले जिसमें कागजी मतपत्रों का इस्तेमाल होता था.

जाहिर है, अगर अरविंद केजरीवाल की हार होती है तो वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को दोष देंगे. काश, उन्होंने बीते दो सालों में दिल्ली में प्रशासन चलाने पर ध्यान दिया होता और कामकाज के इन दिनों में ज्यादातर वक्त गुमशुदा मुख्यमंत्री बने नजर नहीं आते. तब बहाना बनाने की जरुरत नहीं पड़ती. बहरहाल, चुनाव आयोग ने उनकी मांग को ठुकरा दिया है.

एमसीडी में हार खत्म कर देगी केजरीवाल का राजनीतिक कैरियर 

क्या पंजाब और गोवा में पार्टी का प्रदर्शन देखकर अरविंद केजरीवाल को चिंता सता रही है? हां, लगता तो यही है. पूरे देश में पार्टी का विस्तार करने की उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर अभी लगाम लग गया है.

और अगर दिल्ली में उनकी हार होती है तो फिर एक राजनेता के रूप में उनका करियर तकरीबन खत्म होने के कगार पर आ जायेगा. दिल्ली नगरनिगम की 272 सीटों पर होने वाले चुनाव केजरीवाल के लिए अग्निपरीक्षा की तरह हैं.

अगर वे ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल करते हैं तो माना जायेगा कि उनकी लोकप्रियता बरकरार है और उनकी पार्टी ने दिल्ली में अपने पैर मजबूती से जमा लिए हैं.

अगर एमसीडी की ज्यादातर सीटों पर उनकी हार होती है तो इसका मतलब होगा कि राजनीति में घुसने के उनके इरादों के लिए रास्ता अब बंद होने जा रहा है. उनकी सरकार अगले तीन सालों तक कायम रहेगी लेकिन उसकी वैधता शक के घेरे में रहेगी.

बेहतर यही होगा कि केजरीवाल दिल्ली के प्रशासन पर ध्यान दें और अपना वक्त बहाना बनाने में न गंवाएं. जब वे बहाना बनाते हैं तो घर के बच्चों जैसा जान पड़ते हैं जो बहाना बनाता है कि ‘कुछ तो गड़बड़ है’. लेकिन खोट खुद में हो तो आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?