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जिस केजरीवाल ने अन्ना हजारे को उखाड़ फेंका, वो विश्वास को मनाने क्यों गए?

सवाल यह उठता है कि आखिर केजरीवाल ने अपमान का घूंट पी कर भी कुमार विश्वास को क्यों मनाया

s. pandey

आखिरकार केजरीवाल ने कुमार विश्वास को मना ही लिया. मनाने की कोशिशों में उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ा दी गई. कुमार विश्वास को राजस्थान की मनसबदारी सौंपी गई है.

अब विश्वास राजस्थान में पार्टी प्रभारी होंगे. पर सवाल यह उठता है कि आखिर केजरीवाल ने अपमान का घूंट पी कर भी कुमार विश्वास को क्यों मनाया?


विश्वास के साथ नरमी क्यों?

पार्टी छोड़ कर जाने वालों की लंबी फेहरिस्त है. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे लोगों को केजरीवाल ने खुद ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था. फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि विश्वास को मनाने केजरीवाल को उनके दरवाजे पर सर रगड़ना पड़ा.

एमसीडी में मिली करारी हार से आम आदमी पार्टी अभी उबरी भी नहीं थी कि कुमार विश्वास ने बम फोड़ दिया. 28 अप्रैल को ईवीएम मसले पर कुमार विश्वास ने पार्टी की घोषित लाइन से अलग लाइन पकड़ ली.

इसके उलट दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एमसीडी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा था. जाहिर है पार्टी में नाराजगी तो थी ही. कुछ ना कुछ तो किया जाना था. पर एक नहीं कई कदम आगे जा कर आप विधायक अमानतुल्लाह खान ने कुमार विश्वास को बीजेपी और आरएसएस का एजेंट बता दिया. और यहीं बात बिगड़ गई.

कहीं साइडलाइन का असर तो नहीं?

कुमार पहले ही खुद को साइड लाइन किए जाने से नाराज थे. लाख मनाने के बावजूद कुमार विश्वास ने मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस कर आलाकमान यानी केजरीवाल एंड कंपनी से नाराजगी जता दी.

हमला इतना तीखा था कि विश्वास इशारों में अमानतुल्लाह को केजरीवाल का मुखौटा तक कह बैठे. यानी जबान अमानतुल्लाह कि और शब्द केजरीवाल के. हवा उड़ी की आम आदमी के कुछ विधायक कुमार विश्वास के संपर्क में हैं. पार्टी के दो फाड़ होने की अटकलें भी लगनें लगी.

हालांकि यह दूर की कौड़ी लग रही थी पर राजनीति में  सब संभव है. दूसरी और इस बात की अटकलें भी लगाई जाने लगीं कि ‘लाभ का पद’ मामले में अगले कुछ दिनों में चुनाव आयोग 21 आम आदमी विधायकों की सदस्यता पर फैसला ले सकता है.

ऊपर से गोवा और मणिपुर में जोड़-तोड़ की सरकारें बनावा कर अमित शाह अपना खौफ पहले ही स्थापित कर चुके थे.

किस खौफ में हैं केजरीवाल?

केजरीवाल इंजीनियर हैं और सत्ता की इंजिनयरिंग कैसे की जाती है उन्हें खूब पता है. जिसने अन्ना हजारे, संतोष हेगड़े जैसे दिग्गजों का पत्ता काट दिया हो. उनके लिए कुमार विश्वास चीज ही क्या हैं? पर केजरीवाल जानते हैं कि वक्त ठीक नही चल रहा.

पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता रद्द होने की दशा में सीधा कोई असर उनकी सरकार पर ना भी पड़े. पर कुमार विश्वास की नाराजगी उन पर भारी पड़ सकती है.

हिसाब सीधा है कि 21 विधायकों की सदस्यता रद्द हुई तो दिल्ली में एक मिनी इलेक्शन कराना होगा. जिसमें उनके जीतने की हाल फिलहाल तो संभावना क्षीण है. और ऊपर से अगर विश्वास के चक्कर में कुछ और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. तो सरकार चलाने के लाले पड़े सकते हैं.

बस फिर क्या था शाम गहराते गहराते केजरीवाल अपने साथियों के साथ कुमार विश्वास को मनाने उनके घर जा पहुंचे. केजरीवाल ने उनका हाथ पकड़ कर कार में बिठाया.

आखिर इस वक्त केजरीवाल के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वहीं हैं. उनके मान-मनौव्वल में कोई कमी नही छोड़ी गई. उनकी सभी शर्तों सर माथे पर रखी गईं. केजरीवाल सत्ता का खेल खूब समझते हैं.

कब किसे महत्व देना है और कब किस का पत्ता काटना है उन्हें बखूबी पता है. पर उम्मीद है सत्ता की राजनीति से दूर केजरीवाल एमसीडी चुनावों से सच्चा सबक लेंगे और दिल्ली में जोरदार सरकार चला कर दिखाएंगे.