दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल एक बार फिर खामोश हैं. वैसे तो केजरीवाल हर मामले पर अपनी राय देते हैं. लेकिन जिस सरकार और पार्टी का वो नेतृत्व कर रहे हैं उससे जुड़े मौजूदा विवाद को लेकर वो एक शब्द नहीं कह रहे हैं.
दुर्भाग्य से यह चुप्पी उनके और उनकी पार्टी के लिए अच्छी नहीं है. खास कर उन दो मुद्दों को लेकर जिसकी वजह से दिल्ली के अंदर और बाहर लोग कुछ दिनों से विरोध कर रहे हैं.
अव्वल तो ये कि लेफ्टिनेंट गर्वनर अनिल बैजल ने दिल्ली सरकार को आम आदमी पार्टी से नब्बे दिनों के भीतर 97 करोड़ रुपए वसूलने को कहे हैं. ये राशि उन विज्ञापनों के बदले वसूलनी है जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जारी किए गए थे.
दूसरा मामला केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ मानहानि मुकदमा लड़ने में एलजी की अनुमति के बगैर करोड़ों रुपए राम जेठमलानी जैसे वकील को बतौर फीस देने का है.
केजरीवाल इस बार खामोश हैं क्योंकि उनके पास जनता के पैसों से खुद के लिए किए गए मनमाने प्रचार कार्यों के बचाव में कोई तर्क नहीं है. 11 मार्च को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे जब सामने आए तो इससे पहले तक आम आदमी पार्टी पंजाब और गोवा में शानदार प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठी थी. तब तक केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों का दावा भरने वाले तमाम विज्ञापन टीवी चैनलों पर दिखते रहे. यहां तक कि चैनलों पर दिन भर जनता के लिए दिल्ली को जन्नत में बदलने के दावे किए जाते रहे.
लेकिन जैसा कि कहते हैं राजनीति में एक सप्ताह या एक महीने का समय काफी ज्यादा होता है. आप खेमे में संभावित उत्साह पर निराशा अब हावी होती दिख रही है. क्योंकि सुर्खियों में बने रहने की केजरीवाल की चाहत ने उन्हें कई तरह के विवादों में उलझा दिया है. जिसके कई तरह के आर्थिक, कानूनी और राजनीतिक मायने हैं.
हाल में लिए गए उनके निर्णय जिसके तहत आम जनता से वसूले गए टैक्स के पैसे से मशहूर वकील राम जेठमलानी की 3.24 करोड़ रुपए फीस ( 1 दिसंबर 2016 तक ) का भुगतान किया गया. जिसमें केजरीवाल का मुकादमा लड़ने के लिए 1 करोड़ की राशि बतौर रिटेनरशिप और 11 बार मुकदमे के दौरान उपस्थिति के लिए 2.42 करोड़ की राशि जेठमलानी को दी गई. यह जनता के साथ किया गया ये बेहद क्रूर मजाक की तरह है.
उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने एक आधिकारिक नोट के तहत लिखा, 'ये फाइल एलजी के पास उनकी अनुमति के लिए नहीं भेजा जाना है, बल्कि इस फाइल को संबंधित एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट यानी जीएडी ( जेनरल एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट ) के पास भेजा जाना है.' और संबंधित डिपार्टमेंट इसकी अनुमति 'प्राथमिकता के आधार पर एक दिन में' दे.
उपमुख्यमंत्री के लिखे गए इस तरह के नोट का संकेत साफ है कि आप नेतृत्व को ये भरोसा नहीं था कि एलजी इस तरह के प्रस्ताव को पास करेंगे या फिर इसकी अनुमति देंगे. इतना ही नहीं केजरीवाल सरकार को इस बात का डर भी सता रहा था कि अगर ये फाइल कई विभागों से होकर गुजरेगी तो इस प्रक्रिया में ज्यादा वक्त लग जाएगा. और तो और इस फाइल के लीक होने का भी जोखिम बढ़ जाएगा. जिससे तमाम तरह की सियासी दिक्कतें पैदा हो जाएंगी. नतीजतन इस फाइल को विद्युत की गति से मंजूरी दे दी गई जैसा कि सिसोदिया भी चाहते थे.
जाहिर है इसे लेकर जनता में अच्छी प्रतिक्रिया नहीं है. आखिरकार केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ इस बेहद निजी कानूनी लड़ाई के बदले जनता क्यों भुगतान करे?
अब जबकि ये पूरा विवाद आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की छवि को धक्का पहुंचाने लगा है तो राम जेठमलानी कह रहे हैं कि वो दिल्ली के मुख्यमंत्री से बतौर फीस एक पैसा भी नहीं मांगेंगे. हालांकि ये अभी तक साफ नहीं है कि 3.42 करोड़ की फीस की राशि जो उनका बकाया है, क्या वो भी जेठमलानी छोड़ देंगे. बावजूद इसके कि जेठमलानी मुफ्त में उनका मुकदमा लड़ेंगे ये मामला जनता की यादों से इतनी जल्दी मिटने वाला नहीं है.
ये मुद्दा केजरीवाल की सियासी महत्वाकांक्षाओं के रास्ते में रोड़ा साबित होने वाला है, क्योंकि केजरीवाल ने राजनीति में सियासत की धारा को बदलने का दावा कर एंट्री की थी. उनकी सियासत की ताकत पारदर्शिता और बेहतर छवि है. लेकिन अफसोस यह है कि केजरीवाल ने जिन उच्च नैतिक आदर्शों को अपनी सियासत का आधार बनाया था वो अब उन्हीं सिद्धांतों को लांघने में लगे हैं.
केजरीवाल अब किसी सामान्य राजनीतिज्ञ की तरह ही हैं जिनके चेहरे से आदर्श और सिद्धांतों को वो मुखौटा उतर चुका है जो उन्होंने अपनी सियासत चमकाने के लिए पहले पहन रखी थी.
जहां तक बात दिल्ली सरकार की है तो उसका डीडीसीए या फिर क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन से कोई लेना-देना नहीं है. यहां तक कि इस मामले की जांच को भी जरूरी मंजूरी नहीं मिली हुई थी. इतना ही नहीं केजरीवाल सरकार ने जिस जांच कमेटी की घोषणा की थी वो भी बनाई नहीं जा सकी.
केजरीवाल भले खामोश हों, लेकिन उनके बदले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अब मुखर हैं. आम आदमी का पैसा जेठमलानी जैसे वकील को बतौर फीस क्यों दिया जाना चाहिए इसके लिए सिसोदिया का तर्क कहीं से जायज नहीं है.
सिसोदिया का तर्क है कि केजरीवाल ने क्रिकेट को बचाने, क्रिकेट और डीडीसीए में भ्रष्टाचार खत्म करने के मकसद से जांच को मंजूरी दी थी. लेकिन जिन लोगों के खिलाफ इस मामले में आरोप था उन लोगों ने केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया. और यही वजह है कि दिल्ली सरकार को जेठमलानी जैसे मशहूर वकील की फीस को अदा करना चाहिए. क्योंकि ये मुकदमा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल न कि निजी तौर पर अरविंद केजरीवाल या आम आदमी पार्टी के लिए लड़ा गया था.
उनका यहां तक कहना है कि केजरीवाल के खिलाफ मानहानि मुकदमा मामले में हुए खर्च को वहन करने के दिल्ली की जनता बाध्य है, क्योंकि वो दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं.
उनका दूसरा तर्क यह है कि इस विवाद को अभी इसलिए हवा दिया जा रहा है क्योंकि बीजेपी ईवीएम घोटाले में बुरी तरह फंस चुकी है. पार्टी बिना जनादेश के ही तिकड़मों के सहारे यूपी चुनाव में जीत हासिल की है. लिहाजा पार्टी लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है. ये काफी हैरान करने वाला है जो आप के तर्क को खारिज करता है. खास कर जिस तरीके से जनता ने पंजाब में आप को नकारा और पार्टी को खुद के गिरेबां में झांकने को मजबूर किया है.
केजरीवाल, सिसोदिया और उनकी पार्टी के दूसरे नेता ये बात आसानी से भूल गए कि फरवरी 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में इसी ईवीएम की बदौलत दिल्ली में उनकी पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली थीं. तब मोदी सरकार ही सत्ता में थी. लेकिन पंजाब में बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस ने चुनाव जीता. मायावती जिन्होंने चुनाव में करारी हार का ठीकरा ईवीएम में गड़बड़ी पर फोड़ा उसी तर्क को केजरीवाल ने लपक लिया. लेकिन केजरीवाल भूल रहे हैं कि हार के लिए ऐसे बहाने बनाने और तर्कहीन आरोप लगाने से उनकी और पार्टी की छवि को करारा धक्का लगेगा.
विज्ञापन मुद्दे पर एलजी का दिल्ली के मुख्य सचिव को आम आदमी पार्टी से 97 करोड़ की राशि की उगाही के लिए कहने का मुद्दा केजरीवाल को आने वाले दिनों में परेशान करते रहेगा.
लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब आम आदमी पार्टी - जिसके मुखिया वो खुद हैं – उससे ही 100 करोड़ वसूलने की प्रक्रिया की शुरुआत करेंगे. ऐसा करके पहली नजर में केजरीवाल बतौर मुख्यमंत्री जनता के साथ गंभीर अपराध करेंगे. जिस टैक्स के पैसे को वो जनता के कल्याण के लिए खर्च कर सकते थे उस पैसे को उन्होंने अपनी सियासी पार्टी के एजेंडे के प्रचार प्रसार में खर्च कर दिया. ऐसे वक्त में केजरीवाल और पार्टी में उनके सहयोगियों को ये याद दिलाने की जरूरत है कि गर्वनेंस काफी गंभीर मसला है.