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लाभ का पद मामला: अदालत ने किनारे किया राष्ट्रपति का फैसला, मगर क्या केजरीवाल को मिलेगा फायदा!

जब भी लगता है केजरीवाल का जोश और जज़्बा खत्म हो गया है, तब बीजेपी अपरोक्ष रूप से उन्हें मदद पहुंचा देती है

Amitabh Tiwari

लाभ का पद मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों को फिलहाल बड़ी राहत मिली है. दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई के बाद चुनाव आयोग के आदेश को दरकिनार करते हुए आप के 20 विधायकों की सदस्यता बहाल कर दी. चुनाव आयोग की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति ने इन 20 विधायकों को अयोग्य ठहराते हुए इनकी सदस्यता रद्द करने का आदेश दिया था. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की थी.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए अपने आदेश के तीन कारणों का हवाला दिया:


  • चुनाव आयोग ने मौखिक सुनवाई के नियमों का ख़्याल नहीं रखा और आम आदमी पार्टी के विधायकों को अपनी बात कहने का मौक़ा नहीं दिया गया.
  • मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत के केस से हटने और फिर सुनवाई में दोबारा शामिल होने की जानकारी आम आदमी पार्टी के आरोपी विधायकों को देने में चुनाव आयोग की नाकामी.
  • प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन
  • हाईकोर्ट ने मामले को चुनाव आयोग के पास वापस भेज दिया है. अब चुनाव आयोग को केस की दोबारा मौखिक सुनवाई शुरू करनी होगी और आखिरी फैसला सुनाना होगा. हाईकोर्ट के इस आदेश से चुनाव आयोग और केंद्र की मौजूदा बीजेपी सरकार की छवि पर गलत असर पड़ा है. हाल ही में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर जमकर हमला बोला था और उसके कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाए थे.

    अब लाभ का पद मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी से विपक्षी दलों और बीजेपी के विरोधियों को एक बार फिर से केंद्र की मोदी सरकार को घेरने का मौका मिल गया है. विपक्षी फिर से यह आरोप लगा सकते हैं सरकार सभी बड़े और महत्वपूर्ण संस्थानों के कामकाज में दखल देकर उन्हें कमज़ोर कर रही है.

     केजरीवाल के लिए संजीवनी

    लाभ का पद मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आम आदमी पार्टी के लिए संजीवनी साबित हो सकता है. इस एक फैसले से एक साथ कई मुसीबतों से घिरी केजरीवाल सरकार का भाग्य बदल सकता है. आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने राज्यसभा के टिकटों को मोटी रकम लेकर बेचा. केजरीवाल पर यह संगीन आरोप कुमार विश्वास के समर्थकों ने लगाए हैं. वहीं केजरीवाल को पार्टी की पंजाब इकाई में भी बगावत का सामना करना पड़ रहा है. पंजाब में आम आदमी पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया से केजरीवाल के माफी मांगने से खफा हैं.

    राज्य के पार्टी अध्यक्ष भगवंत मान ने तो केजरीवाल के माफीनामे से नाराज होकर अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया है. दरअसल केजरीवाल ने मजीठिया पर ड्रग माफिया होने का आरोप लगाया था. जिसके जवाब में मजीठिया ने केजरीवाल पर मानहानि का केस कर दिया था. कानूनी पचड़ों से बचने के लिए केजरीवाल ने पिछले हफ्ते मजीठिया से लिखित माफी मांग ली. लेकिन केजरीवाल का यह कदम उनके कई समर्थकों को रास नहीं आया और वे बागी हो उठे हैं.

    मजीठिया के बाद केजरीवाल ने मानहानि के दूसरे केस में बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से भी माफी मांग ली. जिससे केजरीवाल के कई अनन्य भक्त और समर्थक आग बबूला हो उठे हैं. नाराज़ समर्थकों का कहना है कि केजरीवाल के इस कदम से भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी जंग को तगड़ा झटका लगेगा और वे घूम फिर कर फिर से वहीं पहुंच जाएंगे जहां से चले थे. केजरीवाल की माफी पॉलिटिक्स की सोशल मीडिया पर भी खासी चर्चा हो रही है. लोग केजरीवाल को पल-पल रंग बदलने वाला कहकर जमकर खिंचाई कर रहे हैं. ट्विटर पर तो #केजरीवालमांगेमाफी खासा ट्रेंड कर रहा है.

    हाईकोर्ट के आदेश से दिल्ली में आम आदमी पार्टी को यकीनन बड़ी राहत मिली है. क्योंकि अगर हाईकोर्ट भी चुनाव आयोग के फैसले को सही ठहरा देता और आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द ही रखता तो उन सीटों पर उपचुनाव होते. उस स्थिति में आप को कई सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता था. कम से कम एमसीडी चुनावों के रुझान तो इसी ओर इशारा करते हैं. लेकिन अब हाईकोर्ट के फैसले से आम आदमी पार्टी का प्रचंड बहुमत बरकरार रहेगा. उधर कोर्ट के फैसले से बीजेपी और कांग्रेस की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है.

    दिल्ली में बीजेपी के महज़ 3 विधायक हैं. उपचुनाव होने की स्थिति में बीजेपी नेता पार्टी के विधायकों की संख्या बढ़ने का ख्वाब सजाए बैठे थे. जिस पर कोर्ट के फैसले से पानी फिर गया है. उधर कांग्रेस को भी संभावित उपचुनाव से खासी आस थी. उपचुनाव में कांग्रेस अपना खाता खोलने की फिराक में थी. लेकिन कोर्ट के आदेश से दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन के सपने भी चकनाचूर हो गए हैं. कोर्ट के आदेश से आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से बीजेपी पर हमला बोलने और दिल्ली की केजरीवाल सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाने का मौका मिल गया है. दरअसल आम आदमी पार्टी अरसे से यह आरोप लगाती आ रही है कि कुमार विश्वास और कपिल मिश्रा जैसे पार्टी के बागी नेताओं के सहारे बीजेपी केजरीवाल सरकार को गिराने की साज़िश रच रही है.

    बहरहाल दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वह लाभ का पद मामले में आरोपी आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों का पक्ष भी सुने. यानी अब चुनाव आयोग इस मामले की दोबारा मौखिक सुनवाई करेगा. चुनाव आयोग की जांच प्रक्रिया और सुनवाई में कम से कम 3 साल तक का वक्त लग सकता है. जिसका साफ मतलब यह है कि अब आम आदमी पार्टी के सभी विधायक अपना कार्यकाल आराम से पूरा करेंगे.

    विक्टिम कार्ड में माहिर केजरीवाल

    केजरीवाल का उदय टकराव की राजनीति से हुआ है और उसी से वह चमके है. वह विक्टम कार्ड खेलने में माहिर हैं. यानी खुद को पीड़ित बताकर लोगों की सहानुभूमि बटोरने में केजरीवाल का कोई सानी नहीं है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के विधायकों की गिरफ्तारी, उपराज्यपाल से केजरीवाल सरकार का लगातार टकराव, लाभ का पद मामला, केजरीवाल सरकार के खिलाफ बीजेपी की लगातार कार्रवाइयों से केजरीवाल को अपनी राजनीति खेलने के लिए मनमाफिक मैदान मिल जाता है.

    वैसे यह किसी से ढंका-छिपा नहीं है कि मोदी-शाह की जोड़ी दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की अपमानजनक हार को भूल नहीं पाई है. यानी दिल्ली में बीजेपी का विजय रथ रोकने की वजह से मोदी-शाह ने केजरीवाल को माफ़ नहीं किया है.

    बीजेपी की तरफ से दिल्ली विधानसभा पर कब्ज़े की हर संभव कोशिश हो रही है, लेकिन हर बार संभावनाएं उसके हाथ से फिसल जाती हैं. हालांकि बीजेपी की इस ज़िद और हताशा से दिल्ली में उसका खास भला नहीं होने वाला है. इससे तो बीजेपी को सिर्फ बदनामी ही मिलेगी. लिहाज़ा बीजेपी को चाहिए कि वह फिलहाल केजरीवाल सरकार को उसके हाल पर छोड़ दे.

    हर बार जब ऐसा लगता है कि केजरीवाल का जोश और जज़्बा खत्म हो गया है, तब बीजेपी अपरोक्ष रूप से उन्हें मदद पहुंचा देती है. यानी बीजेपी का हर गलत कदम केजरीवाल को मज़बूत बना देता है. फिलहाल लाभ का पद मामले में हाईकोर्ट के आदेश से केजरीवाल को नया हौसला मिल गया है. अब वह चीख-चीखकर बीजेपी पर अपनी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाएंगे.

    इसके अलावा आम आदमी पार्टी लाभ का पद मामले को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाने से भी नहीं चूकेगी ताकि जनता की सहानुभूति हासिल की जा सके. आम आदमी पार्टी पूछेगी कि बीजेपी शासित कुछ राज्यों में विधायकों को कैसे बतौर संसदीय सचिव नियुक्त किया गया जबकि दिल्ली में उन्हें ऐसा क्यों नहीं करने दिया गया?

    आम आदमी पार्टी शीला दीक्षित सरकार के दौरान भी दिल्ली में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के औचित्य पर सवाल उठाएगी. इस मुद्दे को गर्माकर आम आदमी पार्टी को फिर से बीजेपी और कांग्रेस पर हमला बोलने का सुनहरा मौका मिल गया है. आम आदमी पार्टी अब फिर से दिल्ली के लोगों को यह समझाने का प्रयास करेगी कि बीजेपी और कांग्रेस आपस में मिले हुए हैं और जनादेश का अपमान कर रहे हैं. इस एक मुद्दे के ज़रिए केजरीवाल दिल्ली की जनता की सहानुभूति पाने में सफल हो सकते हैं और आगामी लोकसभा चुनाव में दिल्ली की कुछ सीटों पर जीत हासिल कर सकते हैं.

    यकीनन, हाईकोर्ट का आदेश आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के लिए बड़ा वरदान है. लेकिन उन्हें दिल्ली को मॉडल राज्य बनाने और जनता के लिए काम करने पर फोकस करना होगा. ऐसा करके आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपनी खोई हुई ज़मीन और प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने में कामयाब हो सकती है. आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को अब 2019 के लोकसभा चुनावों पर ध्यान देना चाहिए. इसके लिए वे कृषि संकट या बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को घेर सकते हैं.

    बेरोजगारी से परेशान युवाओं और किसानों को अपने साथ मिलाकर आम आदमी पार्टी खासी बढ़त ले सकती है. फिलहाल किसानों और युवाओं की आवाज़ सुनने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की कमी है. लिहाज़ा केजरीवाल आगे बढ़कर इस कमी को पूरा कर सकते हैं और देश के दो बड़े समूहों का नेतृत्व हासिल कर सकते हैं. बहरहाल केजरीवाल फिलहाल बेहद खुश होंगे और मुस्कुरा रहे होंगे. क्योंकि लाभ का पद मामले में हाईकोर्ट के आदेश से लोगों का ध्यान अब उनकी माफी से हट गया है. ऐसे में केजरीवाल के लिए यह 'आम आदमी' की शान फिर से पाने का आखिरी मौका है. लेकिन क्या वह इस सुनहरे मौके को भुना पाएंगे?