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राहुल गांधी के गुजरात दौरे से क्यों खिसिया रही है बीजेपी

पिछले कुछ दिनों से चल रहे 'विकास पागल हो गया है' जैसे जुमले बीजेपी की परेशानी का सबब हैं

Darshan Desai

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी आम तौर पर बहुत सोच-समझकर और मर्यादा में बोलते हैं. लेकिन, हाल ही में उन्होंने राहुल गांधी को लेकर अपना आपा खो दिया. उन्होंने राहुल गांधी को गंगू तेली और नशे में झूमता चमगादड़ यानी चमाचिड़ियो कह दिया. रुपानी, असल में राहुल गांधी के तीन दिनों के गुजरात दौरे पर खीझ उठे थे. उनकी बयानबाजी से साफ लगा कि राहुल के गुजरात दौरे से बीजेपी मुश्किल महसूस कर रही है.

विजय रुपानी के खिसियाने की वजह भी है


राहुल गांधी के तीन दिन के गुजरात दौरे से राज्य की कांग्रेस इकाई में नई जान फूंक दी है. कांग्रेस उपाध्यक्ष के दौरे को लेकर जनता में भी दिलचस्पी देखी गई. गुजरात में काफी लोग सियासी बदलाव का मन बनाते दिख रहे हैं.

लोगों की राहुल गांधी को लेकर दिलचस्पी इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने खुद को एकदम अलग नेता के तौर पर पेश किया. व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया पर अक्सर पप्पू कहकर राहुल गांधी का मजाक उड़ाया जाता है. मगर इस बार गुजरात दौरे में राहुल गांधी बिल्कुल अलग नजर आए. ये बात नहीं है कि उन्होंने खुद को मोदी की बराबरी का लोकप्रिय नेता बना लिया. लेकिन, जनता उनको सुनने को राजी दिखी.

राहुल गांधी की सभाओं में लोग जमा नहीं किए गए. जनता उन्हें देखने-सुनने को खुद से जुटी. इनमें से कई लोग बीजेपी से निराश दिखे. राहुल गांधी की सरलता के मुकाबले बीजेपी के वादों की भरमार देखें, तो जनता की दिलचस्पी की वजह खुद से साफ हो जाती है.

जामनगर के सराया गांव में राहुल की एक रैली में आए राजेश तापूभाई पटेल ने कहा कि, 'नर्मदा में पानी कहां है? क्या हमें फसल सूख जाने के बाद पानी मिलेगा? वो बड़े-बड़े वादे करते हैं, पर हमें मिलता कुछ नहीं'.

उनके साथ खड़े नाथालाल पटेल ने कहा कि, 'मैंने उन्हें बार-बार चेताया था कि कीचड़ में मत जाओ. लेकिन किसी ने मेरी सुनी ही नहीं अब शिकायत कर रहे हैं'.

एक और ग्रामीण नानजी भाई पटेल ने कहा, 'ठीक है, अब क्या करें? हमें अपनी गलती का अब एहसास हो गया है'. नानजी भाई की बातें सुनकर पास खड़े लोग मुस्कुराने लगे. नानजी भाई ने कहा कि हम वादों से परेशान हो गए हैं. हमें कभी भी आठ घंटे की बिजली सप्लाई नहीं मिलती. लेकिन वादे बड़े-बड़े किए जाते हैं.

दिलचस्प बात ये कि रैली में आया कोई भी शख्स, सवाल पूछे जाने का इंतजार नहीं कर रहा था. वो बस अपनी बात कहना चाहते थे. अशोक भाई नरसिंह भाई ने कहा कि, 'सरकार ने हम से वादा किया ता कि दीवाली के पांच दिन बाद यानी लाभ पंचम को वो 900 रुपए प्रति 20 किलो की दर से मूंगफली खरीदेंगे. मगर इतनी मूंगफली पैदा करने की लागत करीब 800 रुपए आती है. ऐसे में हमारा क्या खाक फायदा होगा? सरकार तो किसानों से मजाक कर रही है.'

तभी, पास में खड़े एक शख्स राजेश पटेल ने मजाक किया कि, 'हमें अब दो लड़के पैदा करने होंगे. इनमें से एक का काम होगा मोदी सरकार के बताए काम करना. जैसे वहां मुहर लगवा लो, इस कागज पर दस्तखत करा लाओ. इस बात का प्रमाणपत्र बनवाओ. एक लड़का तो इसी काम में लग जाएगा'. राजेश पटेल का निशाना जीएसटी और आधार को लेकर सरकार के निर्देश थे. उनकी बात सुनकर पास खड़े लोग हंसने लगे.

बाबूभाई जीवाभाई ने कहा कि, 'हम सब ने झोली भर-भर के बीजेपी को वोट दिया. उन पर भरोसा किया. लेकिन किसी भी चीज की अति नुकसानदेह होती है'.

गांव के लोगों की शिकायतों का कोई अंत नहीं था. ऐसे माहौल में राहुल गांधी का गुजरात दौरा हवा के ताजे झोंके जैसा लग रहा था. हालांकि वो कोई करिश्माई नेता नहीं हैं. लेकिन उनकी सादगी ही लोगों को अच्छी लगी.

क्या सौराष्ट्र से कांग्रेस की वापसी हो सकती है?

सौराष्ट्र के लोगों को तो यही बात बहुत अच्छी लगी कि देश का एक बड़ा नेता उनके बीच आया. उन लोगों से उनकी परेशानियों के बारे में बात की. उन्हें इसी से अपनी चुनौतियां खत्म होने की उम्मीद जागी. कम से कम कोई नेता तो ऐसा आया जो उनकी बात ध्यान से सुन रहा था. उन्हें भाषण और प्रवचन नहीं पिला रहा था. जब जनता का मूड सरकार के खिलाफ हो, तो खुद से आए लोगों के लिए यही बात बहुत बड़ी हो जाती है.

राहुल गांधी के गुजरात दौरे की योजना बहुत सोच-समझकर बनाई गई थी. उनके लिए बड़ी-बड़ी रैलियों का प्लान नहीं था. क्योंकि वो भाषण देने के उस्ताद तो हैं नहीं. इसके बजाय छोटी-छोटी बैठकों के जरिए राहुल गांधी ने जनता से जुड़ने की कोशिश की. जहां पर उनकी जनसभाएं हुई भीं, वो छोटी रखी गई थीं.

राहुल गांधी ने गुजरात दौरे की शुरुआत द्वारकाधीश मंदिर से की. वो पहाड़ी पर स्थित चामुंडा माता के मंदिर भी गए. जब वो मंदिर की 900 सीढ़ियां चढ़ रहे थे, तो नीचे खड़े लोग आपस में इस बात की अटकलें लगा रहे थे कि वो एक सांस में ये सीढ़ियां चढ़ पाएंगे या नहीं? इसके अलावा वो राजकोट के कागवाड़ में खोडलधाम मंदिर भी गए, जो पाटीदारों के लिए पवित्र जगह है. गुजरात के मशहूर मंदिरों में जाने की राहुल गांधी की योजना काफी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगी.

गुजरात की राजनीति में सौराष्ट्र का वही रोल है, जो देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश का है. राज्य के 182 विधायकों में से सबसे ज्यादा 52 विधायक सौराष्ट्र से आते हैं. यहां पर भी जातिगत राजनीति का बोलबाला है.

सौराष्ट्र, बीजेपी का मजबूत किला रहा है. 2012 के चुनाव में बीजेपी ने यहां की 30 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस सिर्फ 15 पर जीत सकी थी. दो सीटें केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी ने जीती थी. बाद में इसका बीजेपी में विलय हो गया था.

शायद यही वजह है कि विजय रुपानी, अपनी जुबान पर लगाम नहीं लगा सके. जो आम तौर पर होता नहीं. गुजरात में बीजेपी पिछले 22 साल से राज कर रही है, मगर इस बार हालात बदले हुए नजर आते हैं.

खुद मुख्यमंत्री विजय रुपानी सौराष्ट्र के राजकोट से ताल्लुक रखते हैं. वो यहां से जीतते आए हैं. राहुल गांधी के पूरे दौरे के दौरान, बीजेपी नेता यही कहते रहे कि राहुल गांधी जहां भी जाते हैं, वहां कांग्रेस हारती है.

जब राहुल गांधी गुजरात के दौरे पर थे, तब अमित शाह भी गुजरात में ही थे. लेकिन वो पार्टी नेताओं के साथ मिलकर चुनावी रणनीति बनाने में व्यस्त थे. उन्होंने पार्टी के तमाम पदाधिकारियों की इस बात के लिए खिंचाई भी की कि वो पूरी ताकत से चुनाव की तैयारी नहीं कर रहे हैं. उन्होंने पार्टी नेताओं को 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की याद दिलाई. तब बीजेपी ने राज्य की सभी 26 लोकसभा सीटें जीत ली थीं.

बीजेपी गुजरात में दोहरी मार झेल रही है. उसके पास नरेंद्र मोदी जैसे करिश्माई नेता की कमी है. लेकिन जनता तो खुद मोदी के वादों पर ही सवाल उठा रही है.

विजय रुपानी की सरकार के पास गिनाने के लिए उपलब्धियों के नाम पर कुछ है नहीं. राहुल गांधी भी यही कहते हैं कि गुजरात की सरकार तो दिल्ली से रिमोट से चल रही है. बीजेपी का भविष्य पूरी तरह मोदी के करिश्मे पर निर्भर है. भले ही इसमें कमी आई हो, मगर मोदी का जादू अभी भी गुजरातियों पर चलता है.

राज्य के बीजेपी नेता मानते हैं कि चुनाव करीब आने पर मोदी उसी तरह प्रचार के लिए आएंगे, जैसे उन्होंने यूपी में किया था. बीजेपी नेता मानते हैं कि इस बार भी वो मोदी के करिश्मे की मदद से जीत हासिल करने में कामयाब होंगे.

गांधी बनाम मोदी

इस वक्त तो खैर राहुल गांधी, मोदी सरकार को गुजरात में सीधी चुनौती दे रहे हैं. भले ही वो राज्य के चुनाव के लिए प्रचार कर रहे हैं. लेकिन, वो केंद्र सरकार की नाकामियां ही गिना रहे हैं. ठीक उसी तरह, जैसे राज्यों के चुनाव में बीजेपी केंद्र की अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाती रही है.

अपने भाषण में राहुल गांधी नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी, किसानों की परेशानी, महंगाई और गुजरात के पाटीदारों की दिक्कतों का जिक्र करते हैं.

जीएसटी लागू करने में सरकार की हड़बड़ी पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने कहा कि, 'एक दिन मोदी जी को 500-1000 के नोट अच्छे नहीं लगे, बस उन्होंने नोटबंदी का एलान कर दिया'. राहुल की बात सुनकर लोगों ने जोर का ठहाका लगाया.

फिर राहुल ने कहा कि, 'वैसे ही इतनी जल्दी क्या थी जीएसटी की? हमने कहा कि धीरे से लाइए. लेकिन नहीं, किसी की सुनते नहीं वो'. राहुल ने कहा कि कांग्रेस जीएसटी की इतनी ऊंची दरों के खिलाफ थी. वो मौजूदा रूप में जीएसटी लाने का विरोध कर रही थी. इससे आम आदमी और छोटे कारोबारी बहुत मुश्किलें झेल रहे हैं.

जब राहुल गांधी ने लोगों से पूछा कि गुजरात के विकास को क्या हुआ, तो लोगों ने कहा कि वो पागल हो गया है. सोशल मीडिया पर ये जुमला खूब चला. गुजरात में बीजेपी को इसकी वजह से काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी. राहुल गांधी ने कहा कि मोदी, जनता को हमेशा ही मूर्ख बनाते हैं.

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि, 'मोदी जी ने कहा था कि वो हर साल 2 करोड़ नौकरियां देंगे. वो सारा काला धन वापस लाएंगे. हर नागरिक के खाते में 15 लाख आने का वादा भी उन्होंने किया. लेकिन उन्होंने कोई भी वादा पूरा नहीं किया'.

राहुल ने मोदी के मेक इन इंडिया अभियान का भी मखौल उड़ाया और कहा कि गुजरात में सरदार पटेल की जो मूर्ति बन रही है, वो भी मेड इन इंडिया नहीं मेड इन चाइना होगी.

कांग्रेस की चुनौती: भाई-भतीजावाद

राहुल गांधी के दौरे से गुजरात में कांग्रेसी भले उत्साहित हो रहे हों, मगर इससे जीत की कोई गारंटी नहीं है. कांग्रेस अक्सर चुनावी मौकों को भुनाने में नाकाम रही है. शंकरसिंह वाघेला के पार्टी छोड़ने के बाद, कांग्रेस के पास राज्य में कोई कद्दावर नेता नहीं बचा है.

कांग्रेस में इस वक्त चार बड़े क्षेत्रीय नेता हैं. प्रदेश अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी, दो पूर्व अध्यक्ष, अर्जुन मोढवाडिया और सिद्धार्थ पटेल. राष्ट्रीय प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल भी बड़े नेता है. लेकिन इनमें से कोई भी पिछले चुनाव में अपनी सीट नहीं जीत सका था. हालांकि बाद में हुए उप चुनाव में शक्तिसिंह गोहिल भावनगर में अपनी सीट जीत गए थे.

वहीं, भारत सिंह सोलंकी अपनी आणंद की लोकसभा सीट नहीं बचा सके थे. जबकि उनके पिता माधवसिंह सोलंकी ने कई साल इस सीट पर जीत हासिल की थी. भारतसिंह सोलंकी के बर्ताव की कार्यकर्ता अक्सर शिकायत करते रहे हैं. इसी वजह से कांग्रेस आलाकमा ने उनके पर भी कतरे थे. उनके साथ काम करने के लिए चार कार्यकारी अध्यक्ष इसीलिए बनाए गए थे.

तीन दिन के दौरे के बाद राहुल गांधी दिल्ली लौटे तो रणनीतिकारों ने उन्हें इन चुनौतियों के प्रति आगाह किया. सूत्रों ने दावा किया कि बहुत सी सीटें पिछली बार टिकट बंटवारे की खामियों के चलते हाथ से निकल गई थीं.

हालांकि फिलहाल तो पार्टी के कार्यकर्ता, राहुल गांधी के अगले गुजरात दौरे का इंतज़ार कर रहे हैं, जो 9 अक्टूबर से शुरू होगा.