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गांधी को लेकर अनिल विज की मानसिकता क्या है?

दिक्कत यह है कि अनिल विज गांधीजी के बारे में मोदीजी की ताजा रणनीतिक समझ को आत्मसात कर पाने में विफल रहे हैं

Suresh Bafna

हरियाणा की भाजपा सरकार के वरिष्ठ माने-जानेवाले मंत्री अनिल विज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ब्रांड के रूप में तब्दील कर दिया है. विज का कहना है कि नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी से अच्छे ब्रांड हैं. उनका यह भी कहना है कि करेंसी नोट से भी गांधीजी की फोटो हटा दी जाएगी. विज ने यह ज्ञान भी दिया कि करेंसी नोट पर गांधीजी की फोटो होने से उसकी वैल्यू कम हो गई है.

उनका कहना है कि खादी का नाम गांधी से जुड़ने की वजह से खादी की बिक्री कम हो गई है और मोदी का नाम जुड़ने से खादी की बिक्री में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. कुछ माह पूर्व विज ने यह भी कहा था कि जो लोग बीफ के बिना नहीं रह सकते हैं उनको हरियाणा में प्रवेश नहीं करना चाहिए.


विज के बयानों से होनेवाली राजनीतिक परेशानियों का अहसास होने की वजह से भारतीय जनता पार्टी ने तुरंत स्पष्ट किया कि विज ने गांधीजी के संदर्भ में जो टिप्पणियां की हैं, उससे पार्टी सहमत नहीं है. बाद में पार्टी के दबाव में आकर विज ने अपने विवादास्पद बयान को वापस ले लिया.

सहज नहीं रहे गांधी जी के साथ संबंध

यह मामला इतना सीधा नहीं है, जितना भाजपा के नेता व अनिल विज मानकर चल रहे हैं. वास्तविकता यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी का महात्मा गांधी के साथ रिश्ता कभी सहज नहीं रहा है. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि 1947 में भारत के विभाजन के लिए संघ परिवार के लोग गांधी व नेहरू को जिम्मेदार मानते थे.

1970 में  संघ के मुखपत्र ‘आर्गनाइजर’ में संपादक के आर मलकानी ने लिखा था कि ‘नेहरू की पाक-समर्थक नीतियों के पक्ष में उपवास करने के लिए गांधीजी को जनता के गुस्से का शिकार होना पड़ा’. नाथूराम गोडसे द्वारा गांधीजी की हत्या मलकानी के लिए जनता के गुस्से का एक रूप था. 1989 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार करना उचित नहीं है.

जिन वीर सावरकर को भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूज्यनीय मानते हैं, वे गांधीजी की हत्या के मामले में आरोपी थे. यह अलग बात है कि अदालत में उनका दोष सिद्ध नहीं हो पाया था. गांधी की हत्या के बाद 1952 में पुणे की एक सभा में संघ सरचालक गुरु गोलवलकर व वीर सावरकर एक साथ उपस्थित थे.

वाजपेयी सरकार के दौरान संसद के केंद्रीय कक्ष में वीर सावरकर की तस्वीर लगाई गई थी. आजादी के बाद सावरकर चाहते थे कि मुसलमानों को दोयम दर्जे की नागरिकता दी जाए.

संघ की दोहरी सदस्यता के सवाल पर 1980 में जनता पार्टी के बीच हुए विभाजन के बाद जनसंघ घटक के सदस्यों ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया था. दिलचस्प बात यह थी कि इस नई पार्टी ने गांधीवादी समाजवाद को अपनी मुख्य विचारधारा के रूप में स्वीकार किया था.

यह वैचारिक परिवर्तन शायद अटल बिहारी वाजपेयी के प्रभाव में आकर किया गया था. फिर जब 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को दो सीटें ही मिलीं तो वाजपेयीजी की गांधीवादी समाजवाद की लाइन को छोड़ने पर विचार शुरू हुआ.

गांधीवादी समाजवाद को छोड़कर अपनाया एकात्मवाद

1985 में भाजपा ने गांधीवादी समाजवाद को छोड़कर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की एकात्मक मानववाद की विचारधारा को प्रमुखता के साथ अपनाया.

बीजेपी की वेबसाइट से साभार

फिर लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी ने राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को केन्द्र में रखकर भाजपा की राजनीतिक ताकत में कई गुना इजाफा कर दिया. वाजेपयीजी की सरकार बनने के बाद देश के सामने यह स्पष्ट हो गया था कि सत्ता पाने के लिए राम मंदिर के मुद्दे का इस्तेमाल किया गया था.

संघ व भाजपा के नेताअों ने 1937 में गांधी द्वारा लिखे गए किसी लेख का हवाला देते हुए यह सिद्ध करने की कोशिश की थी कि उन्होंने भी राम जन्मभूमि आंदोलन का समर्थन किया था. बाद में ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ में प्रकाशित खबर में स्पष्ट हुआ था कि गांधीजी ने इस आशय का कभी कोई लेख नहीं लिखा था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक इतिहास में गांधीजी की मौजूदगी किसी भी रूप में नहीं रही है. गुजरात के मुख्‍यमंत्री होने के नाते उन्होंने कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की विरासत को अपने साथ जोड़कर दिल्ली की तरफ कूच किया था.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की भारी विजय के बाद देश की जनता को इस बात का अचानक अहसास हुआ कि नरेंद्र मोदी भी गांधीजी के भक्त हैं. उन्होंने गांधीजी को स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड एंबेस्डर बना दिया.

वास्तविकता यह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने गांधीजी के नाम का इस्तेमाल अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने में ही किया है. आज न केवल देश में बल्कि दुनिया में गांधीजी को एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है. मेरा यह अनुमान है कि दुनिया के अधिकतम देशों में अगर किसी व्यक्ति की मूर्तियां स्थापित हैं तो उसमें गांधीजी का नाम सबसे ऊपर हैं.

गांधी के माध्यम से पीएम की एक अन्तर्राष्ट्रीय छवि निर्मित हुई

हमारे ब्रांड-प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीजी की वैचारिक व भावनात्मक ताकत का अहसास सत्ता संभालते ही कर लिया था. कई तरह के आरोपों से घिरे मोदी के लिए गांधी की शरण में जाना एक शुद्धिकरण की प्रक्रिया के रूप में रहा होगा. गांधी के माध्यम से उनकी एक अन्तर्राष्ट्रीय छवि भी निर्मित हुई है, जिसे अब अनिल विज जैसे नेता अनजाने में नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं.

फोटो: पीटीआई

गांधी को लेकर भाजपा के भीतर हमेशा ही एक रणनीतिक समझ रही है. संघ परिवार के कई नेता अभी गांधीजी को भारत की कई समस्याअों के लिए जिम्मेदार मानते हैं.

अनिल विज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिेषद के रास्ते से भाजपा में आए हैं, इसलिए यदि वे इस तरह के विवादास्पद बयान देते हैं तो अस्वाभाविक नहीं है. उनकी दिक्कत यह है कि वे गांधीजी के बारे में मोदीजी की ताजा रणनीतिक समझ को आत्मसात कर पाने में विफल रहे हैं.

तीन दशक तक संघ के सरसंघचालक रहे गुरु एम.एस. गोलवलकर ने लिखा था कि ‘दुनिया की कोई भी ताकत मुसलमानों को भारत में नहीं रख सकती है. यदि मुसलमानों को भारत में रखा गया तो सरकार की जिम्मेदारी होगी, हिन्दुअों की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. महात्मा गांधी हिन्दुअों को और अधिक भ्रमित नहीं कर सकते हैं. हमारे पास इतनी ताकत है कि हम विरोधियों को खामोश कर सकें’.

मोदीजी गांधीजी और गोलवलकर के साथ जादुई तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अनिल विज जैसे नेता ऐसा कर पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.