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अनिल माधव दवे: एक शख्स जिसका जीवन नर्मदा के नाम रहा

मोहन भागवत ने कहा था, जनता, समाज और सरकार ने असीम इच्छा शक्ति वाला एक सक्षम व्यक्तित्व खो दिया है

Debobrat Ghose

23 जुलाई, 2012, इसी दिन अनिल माधव दवे ने अपना वसीयत लिख दिया था. उनकी इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उन्हें नर्मदा किनारे पंचतत्व में विलीन किया जाए.

अपने हस्ताक्षरित वसीयतनामे में उन्होंने लिखा, 'वैदिक विधि विधान से मेरा अंतिम संस्कार बंद्रभान में नर्मदा के तट पर किया जाए जहां नदी महोत्सव मनाया जाता था. अगर आप मुझे यादों में संजोए रखना चाहते हैं तो पेड़ लगाएं और उनकी रक्षा करें. यही मेरी इच्छा है. इससे मुझे खुशी मिलेगी.'


दवे की वसीयत में क्या था 

यह कोई साधारण वसीयतनामा नहीं था. मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी कही जाने वाली नर्मदा दवे की जिंदगी के केंद्र में था. पर्यावरण राज्य मंत्री अनिल दवे 18 मई को महज 60 साल की उम्र में हमें अलविदा कह गए.

उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार मध्य प्रदेश के बंद्रभान में शुक्रवाह सुबह नौ बजे उनका अंतिम संस्कार किया गया. निधन से महज तीन दिनों पहले ही नर्मदा के उदगम अमरकंटक में एक बड़ा आयोजन किया गया था.

दवे 148 दिनों तक चली नमामि देवी नर्मदा सेवा यात्रा से जरूर प्रसन्न हुए होंगे. इस दौरान अमरकंटक से लेकर नर्मदा के समंदर में समाहित होने तक की 3350 किलोमीटर की यात्रा में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया. ये यात्रा 1100 गांवों से होकर गुजरी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरकंटक में 15 मई को नर्मदा के संरक्षण के लिए एक ब्लूप्रिंट जारी किया. इसी दिन नर्मदा सेवा यात्रा समाप्त हुई थी.

नदी संरक्षण में जिन्हें महारथ थी

दवे हमेशा मध्य प्रदेश सरकार को पवित्र नदी नर्मदा के संरक्षण के बारे में सलाह देते रहे. ये ब्लूप्रिंट भी उन्हीं के सुझावों का नतीजा है. नर्मदा से जुड़ी हर चीज देव के दिल के करीब थी.

नदी संरक्षण न सिर्फ उनका पसंदीदा विषय था बल्कि इसमें उन्हें महारथ हासिल थी. उन्होंने गैर सरकारी संगठन नर्मदा समग्र की स्थापना की जो नर्मदा में प्रदूषण और इसका क्षरण रोकने के लिए काम करता है.

नर्मदा के सात दवे का संबंध सिर्फ बतौर एक्टिविस्ट नहीं था बल्कि इससे कहीं ज्यादा भावनात्मक था. बहुतों को पता भी नहीं होगा कि नर्मदा उनकी आस्था का प्रतीक थी. वो इसकी पूजा करते थे.

वो नर्मदा के उदगम से समागम तक की पदयात्रा कर चुके थे. राफ्टिंग से भी ये दूरी तय कर चुके थे. यही नहीं उन्होंने एक निजी हवाई जहाज से नर्मदा की अनूठी हवाई परिक्रमा भी की थी. इसमें 18 घंटे लगे थे.

नर्मदा के प्रति उनका अनुराग और इसके संरक्षण के प्रति समर्पण को उनकी किताब अमरकंटक से अमरकंटक तक से समझा जा सकता है. नर्मदा के प्रति जनजागरूकता पैदा करने के लिए वो इसके तट के ठीक ऊपर सेसना 173 एयरक्राफ्ट से लगातार 18 घंटे उड़ान भरते रहे.

यही नहीं नर्मदा के 1312 किलोमीटर सफर को उन्होंने राफ्टिंग से तय किया. इसमें उन्हें 19 दिन लग गए. उनका एनजीओ नर्मदा समग्र नदी के पानी को साफ रखने और इसके जलग्रहण क्षेत्रों में कई गतिविधियां में लगा हुआ है.

जेपी आंदोलन से राजनीति में झुकाव

मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रवक्ता हितेश वाजपेयी उनके साथ बिताए पलों को याद करते हैं. संघ के कई कार्यक्रमों में वो और दवे साथ रहे.

दवे ने इंदौर के गुजराती कॉलेज से कॉमर्स में मास्टर डिग्री हासिल की.

ग्रामीण विकास और प्रबंधन में उनकी विशेषज्ञता थी. राजनीति में उनका झुकाव जेपी आंदोलन के समय हुआ. वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए. हालांकि नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए वो लगातार काम करते रहे.

हर दो साल पर होशंगाबाद के बंद्रभान में होने वाला नदी महोत्सव उन्हीं की देन है. ये पूरे एशिया में अपनी तरह का अनूठा आयोजन है. ये धीरे धीरे ग्लोबल ब्रांड बन गया. इसमें जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और नदी संरक्षण पर चर्चा होती है.

दवे नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल के कामकाज की आलोचना करने में भी नहीं हिचकते थे.

सच्चे राष्ट्रवादी थे हितेश वाजपेयी

हितेश वाजपेयी कहते हैं, 'वो सच्चे राष्ट्रवादी थे. नदियों को लेकर उनकी चिंता और पर्यावरण पर उनकी सोच इतनी गहरी थी कि उन्होंने होशंगाबाद के पास नर्मदा किनारे एक छोटा आश्रम ही बना लिया. जब भी वो अकेले पर मंथन करना चाहते तो इस आश्रम का रूख करते या जंगल में बने रिसॉर्ट में रहते.'

'मैं खुद डॉक्टर हूं लेकिन दवे जी हमेशा प्राकृतिक इलाज में भरोसा रखते जबकि खुद मधुमेह पीड़ित थे. वो हमेशा एलोपैथी दवा लेने से परहेज करते थे. वो फर्श पर ही सोना पसंद करते और एयर कंडीशनर से परहेज करते थे.'

कई किताबों के लेखक भी थे

नर्मदा से खास लगाव के साथ-साथ समग्र पर्यावरण पर उनकी व्यापक सोच रही. उन्होंने इस विषय पर हिंदी और अंग्रेजी में कई किताबें भी लिखीं. अनिल दवे ने छत्रपति शिवाजी पर भी एक किताब लिखी जो खूब पसंद की गई.

इसलिए जब पिछले साल उन्हें पर्यावरण राज्य मंत्री बनाया गया तो नीतिकारों को खास आश्चर्य नहीं हुआ. संघ चाहता था कि मोदी इनकी क्षमताओं का इस्तेमाल सही दिशा में करें. अगर वो जीवित होते तो आज न कल कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलना तय था.

वो गंगा और दूसरी नदियों के बारे में भी पढ़ते रहते थे. ऐसे संकेत मिल रहे थे कि सरकार आने वाले दिनों में उनके लिए बड़ी भूमिका तय करने वाली थी.

भोपाल स्थित पत्रकार राकेश अग्निहोत्री कहते हैं कि अपने मधुर स्वभाव के कारण अनिल दवे जी का आदर न सिर्फ भाजपा में बल्कि विरोधियों के बीच भी था.

चतुर राजनीतिक और रणनीतिकार भी थे दवे

इन सबके इतर दवे एक चतुर राजनीतिक रणनीतिकार भी थे. 2003 में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ भाजपा की रणनीति की अगुआई की और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. तब से आज तक बीजेपी मध्य प्रदेश में जीतती आई है.

राजनीतिक टीकाकारों के मुताबिक 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवराज के उत्तराधिकारी के तौर पर उनके नाम की भी चर्चा जोरों पर थी.

एक जननेता की छवि उनकी नहीं थी जो सीट जितवा सके या खुद के लिए भी सीट सुरक्षित बना ले जाए लेकिन शानदार संगठनकर्ता और रणनीतिकार के तौर पर उन्हें याद किया जाएगा.

एक्टिविस्ट, बीजेपी के नेता या मंत्री हर रूप में दवे के कामकाज में संघ की छाप नजर आती थी.

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने शोक संदेश में कहा, 'जब अनिल माधव दवे जी भोपाल में विभाग प्रचारक थे तभी से मेरी उनसे दोस्ती थी. उनका जाना मेरी निजी क्षति है. जनता, समाज और सरकार ने असीम इच्छा शक्ति वाला एक सक्षम व्यक्तित्व खो दिया है.'