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छत्तीसगढ़ में वोटिंग के अलग-अलग सरकारी आंकड़ों से कांग्रेस की चिंताएं बढ़ीं

हाल में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में ईवीएम से छेड़छाड़ संबंधी आरोप लगने के बाद अब एक नए मामले को लेकर राज्य चुनाव आयोग एक बार फिर से निशाने पर है.

Vandana Agrawal

हाल में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में ईवीएम से छेड़छाड़ संबंधी आरोप लगने के बाद अब एक नए मामले को लेकर राज्य चुनाव आयोग एक बार फिर से निशाने पर है. दरअसल, इस बार मामला 20 नवंबर को हुए आखिरी चरण के चुनाव में मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में एकरूपता नहीं होने से जुड़ा है.

इस संबंध में आंकड़ों को लेकर राज्य चुनाव आयोग और छत्तीसगढ़ सरकार के जन संपर्क निदेशालय (डीपीआर) के बीच बिल्कुल समानता नहीं है. जनसंपर्क निदेशालय से चुनाव के बारे में सूचनाएं प्रसारित करने के लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाती है.


राज्य चुनाव आयोग ने जहां चुनाव के दोनों चरणों को जोड़ते हुए कुल मिलाकर अंतिम वोटिंग प्रतिशत 76.35 फीसदी बताया है, वहीं वोटिंग खत्म होने के 7 दिनों के बाद डीपीआर की वेबसाइट ने मतदान संबंधी यह आंकड़ा 76.60 फीसदी बताया है.

इतना ही नहीं, भरतपुर-सोनहट (अंतिम चरण) जैसी कुछ सीटों पर चुनाव आयोग और डीपीआर के मतदान प्रतिशत संबंधी आंकड़ों में भारी अंतर है. दरअसल, वोटिंग के दिन इन सीटों पर 65.32 फीसदी मतदान होने का ऐलान किया गया था. हालांकि, उसके बाद चुनाव आयोग ने इस आंकड़े को बढ़ाकर 72.88 फीसदी कर दिया, जबकि जनसंपर्क निदेशालय ने आखिरकार यह आंकड़ा 84 फीसदी बताया.

दरअसल, मतदान के आंकड़ों में 0.25 फीसदी (76.60 और 76.35 फीसदी के बीच) के छोटे से अंतर ने राज्य की निवर्तमान विपक्षी पार्टी कांग्रेस की चिंताएं बढ़ा दी हैं. राज्य में 2013 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को काफी कम वोट प्रतिशत के अंतर से भारतीय जनता पार्टी के हाथों का हार का सामना करना पड़ा था. उस वक्त दोनों पार्टियों के बीच वोट प्रतिशत का अंतर महज 0.75 फीसदी था.

चुनाव आयोग और DPR आंकड़ों में मेल नहीं

प्रतीकात्मक

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में चुनाव हुए थे. पहले चरण के तहत 12 नवंबर को मतदाताओं ने नक्सल प्रभावित इलाकों में 18 सीटों पर अपने मतदाधिकार का प्रयोग किया. इसके बाद चुनाव आयोग ने मतदान प्रक्रिया खत्म होने के बाद शुरू में 60.49 फीसदी वोटिंग प्रतिशत रहने का ऐलान किया. इसके बाद अगले दिन इस आंकड़े को संशोधित कर इसे 76.28 फीसदी कर दिया गया.

राज्य की बाकी बची 72 सीटों पर 20 नवंबर को चुनाव हुए थे और वोटिंग खत्म होने के बाद उसी दिन मतदान प्रतिशत के आंकड़े जारी कर दिए गए. 20 नवंबर को चुनाव आयोग की तरफ से मुहैया कराए गए आंकड़े के मुताबिक, शाम 6 बजे तक मतदान का आंकड़ा 66.63 फीसदी था. उस वक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुब्रत साहू ने यह भी बताया था कि राज्य की कई विधानसभा सीटों के पोलिंग बूथ पर मतदान शाम 6 बजे के बाद भी जारी रहा था और मतदान का ठीक-ठीक आंकड़ा रात या अगले दिन सुबह में आएगा.

अगले दिन यानी 21 नवंबर को राज्य चुनाव आयोग ने शाम में मतदान प्रतिशत से जुड़ा संशोधित आंकड़ा जारी किया. संशोधित आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की 72 सीटों पर मतदान का प्रतिशत बढ़कर 76.35 फीसदी हो गया था.

राज्य चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेस में जारी सूचना संबंधी चिट्ठी में बताया था कि 72 सीटों पर चुनाव कराने के लिए तमाम टीमें सुरक्षित लौट गईं और उन्होंने कलेक्शन सेंटरों में अपने पास मौजूद चुनाव सामग्री जमा कर दीं. साथ ही, चुनावों में मौजूद मशीन को सभी राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों की मौजूदगी में सील किया गया था.

हालांकि, चुनाव के 7 दिनों के बाद यानी 27 नवंबर को राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों से संबंधित मतदान प्रतिशत के आंकड़े जनसंपर्क निदेशालय, छत्तीसगढ़ की वेबसाइट पर डाले गए. यहां पर राज्य विधानसभा चुनाव में हुए मतदान का आंकड़ा 76.60 फीसदी बताया गया. हालांकि, चुनाव आयोग और जन संपर्क निदेशालय द्वारा क्रमशः 21 और 27 नवंबर को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से जारी किए गए आंकड़ों में भी काफी ज्यादा अंतर था.

एक ओर जहां ज्यादातर सीटों पर ऊंचे मतदान प्रतिशत का आंकड़ा दिखाया जा रहा था, वहीं इनमें से कुछ सीटों मसलन प्रेमनगर में मतदान में 2 फीसदी की गिरावट को दिखाया गया.

पिछले चुनाव में काफी कम अंतर से ही हुई थी हार-जीत

अगर हम छत्तीसगढ़ के पिछले चुनावों को ध्यान में रखें तो यह बात पूरी तरह से साफ है कि मतदान प्रतिशत में छोटे से अंतर ने कई उम्मीदवारों के परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित किया था.

मिसाल के तौर पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार टी.एस. सिंह देव ने 2008 का चुनाव महज 900 वोटों के अंतर से जीता था. 2013 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राजू छत्री ने तख्तपुर से 608 वोटों से जीत हासिल की थी, जबकि मोहल्ला-मानपुर सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी तेजकुंवर 956 वोटों से विजयी हुई थे.

डोंगरगांव में कांग्रेस के दलेश्वर साहू 1,698 वोटों से जीतने में कामयाब रहे थे, जबकि रायपुर ग्रामीण में सत्यनारायण शर्मा की जीत 1,861 वोटों से हुई थी. 2013 के राज्य विधानसभा चुनाव में कुल 11 उम्मीदवारों की जीत या हार महज 2,000-3,000 वोटों के अंतर से हुई थी.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस प्रवक्ता शैलेश नितिन त्रिवेदी ने बताया कि 2013 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था, जब उस दौरान कांग्रेस और बीजेपी को मिले वोटों का अंतर महज 0.75 फीसदी था. राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी साहू ने यह कहते हुए मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में अंतर का बचाव किया कि पहले जो आंकड़े जारी किए गए थे, वे तात्कालिक थे.

उन्होंने 21 नवंबर को जारी आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि यह फाइनल आंकड़ा है. उनका कहना था, 'कई जगहों की बात करें को दूर-दराज के क्षेत्रों में चुनाव हुए, कहीं पर अधिकारियों को हेलिकॉप्टर के जरिए आना पड़ा. इसमें वक्त लगा, इसलिए यह कहना गलत है कि मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई. मतदान संबंधी सभी आंकड़ों का मिलान करने के बाद आंकड़ों का आकलन किया गया.'

हालांकि, छत्तीसगढ़ में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के संयोजक ने इस संबंध में चेतावनी जारी करते हुए राज्य के जन संपर्क निदेशालय की तरफ से 27 नवंबर को जारी आंकड़ों की तरफ इशारा किया. उन्होंने कहा, 'अब पुराना दौर नहीं रह गया है. अगर चुनाव का आंकड़ा मतदान के 7 दिनों के बाद आता है तो यह चिंताजनक है. चुनाव आयोग को इस संबंध में हुए काम की समीक्षा करनी चाहिए.'

मॉक पोल डेटा को लेकर भी है समस्या

छत्तीसगढ़ में मामला सिर्फ मतदान प्रतिशत का नहीं है. यह पाया गया है कि ईवीएम से मॉक पोल डेटा को डिलीट नहीं किया गया था, जैसा कि नियम है. इसे बिना हटाए चुनाव का फाइनल डेटा तैयार कर लिया गया.

मतदान से एक घंटा पहले मॉक पोल किया जाता है और इसके तहत पोलिंग एजेंट्स की मौजूदगी में किसी बूथ पर एक ईवीएम में कम से कम 50 वोट डाले जाने चाहिए. नियमों के तहत वास्तविक मतदान शुरू होने से पहले मॉक पोल के नतीजों को फॉर्म 17सी में डालना और इसे ईवीएम से हटाना अनिर्वाय है.

छत्तीसगढ़ में मॉक पोल संबंधी कई गड़बड़ियां सामने आईं और कई जगहों पर मॉक पोल के वोट डिलीट नहीं किए गए और इस तरह से ये फाइनल वोट सूची में जुड़ गए.

यहां तक कि राज्य निर्वाचन आयोग ने इस बड़ी चूक को स्वीकार भी किया है और अब उसे इस सिलसिले में भारतीय निर्वाचन आयोग से निर्देशों का इंतजार है. विपक्षी पार्टियों द्वारा ईवीएम में गड़बड़ी किए जाने के आरोपों व दावों के बीच निर्वाचन आयोग ने बूथ के हिसाब से मतदान के आंकड़े जारी नहीं करने का आदेश दिया है. मॉक पोल के वोट डिलीट नहीं किए जाने को लेकर छत्तीसगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष धर्मलाल कौशिक का कहना था, 'इस मामले पर चुनाव आयोग फैसला करेगा. इस सिलसिले में अगर किसी तर का शक-सुबहा है तो इसकी जांच किए जाने की जरूरत है.'

अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के राज्य प्रवक्ता सुब्रत डे का कहना था कि चुनाव आयोग को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और इस पूरे मामले की निष्पक्ष तरीके से जांच होनी चाहिए. उनकी यह भी मांग थी कि इस पूरे मामले में कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि चुनावी प्रक्रिया पर वोटरों का भरोसा पूरी तरह से कायम रहे. मध्य प्रदेश में भी चुनाव आचार संहिता के पालन में गड़बड़ी और धांधली की खबरें आई हैं. इस राज्य में 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव हुए थे.