भारत के सर्जिकल स्ट्राइक का रुस समर्थन करता है. भारत-रुस के बीच दशकों पुरानी दोस्ती है. लेकिन पाकिस्तान के साथ रुस के सैन्य अभ्यास ने भारत को चिंता में डाल दिया था.
ये पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति को झटका देने जैसा था. अब सर्जिकल स्ट्राइक पर रुस का समर्थन राहत की बात है.
भारत में रुस के राजदूत एलेक्जेण्डर एम कदाकिन ने इस मसले पर सीएनएन नेटवर्क 18 से बात की. रुस का साफ मानना है कि उड़ी हमले के आतंकवादी पाकिस्तानी थे.
भारत को पलटवार करने का पूरा अधिकार है. इसे मानवाधिकार का मसला कहना जायज नहीं है. रुस का मानना है कि सवाल तब उठाए जा सकते थे.
जब कैंप पर हमले के जवाब में भारतीय सेना निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाती. कदाकिन ने कहा है कि हर राष्ट्र को अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है.
रुसी राजदूत ने भारत को आश्वस्त किया है. कहा कि सैन्य अभ्यास पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नहीं हो रहा है. इसलिए भारत को फिक्र नहीं करनी चाहिए.
दरअसल रुस-पाकिस्तान सैन्य अभ्यास पर कई सवाल उठ रहे थे. रुस से हमारी स्वाभाविक दोस्ती रही है. लेकिन हाल के दिनों में अमेरिका से नजदीकी बढ़ी है.
भारत में चर्चा चल पड़ी है. कि इस वजह से रुस अपनी विदेश नीति बदलने पर मजबूर तो नहीं हुआ है ? हालांकि रुस बार-बार सफाई दे रहा है.
मास्को से दैनिक प्रावदा में स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफेसर सर्जी लुनेव की राय है. कि सैन्य अभ्यास रुस और पाकिस्तान की दोस्ती का संकेत नहीं है.
लेकिन ऐसी करीबी भी पहली बार दिखी है. भारत और रुस के बीच हमेशा से बेहतर राजनीतिक और सैन्य संबंध रहे हैं. जिसके चलते रुस अपने आपको पाकिस्तान से अलग करता रहा है.
मोदी-पुतिन मुलाकात पर सबकी नजर
अगले कुछ दिनों में रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन भारत दौरे पर होंगे. सबकी नजरें इस दौरे पर टिकी हैं. देखना होगा कि इस दौरे से क्या निकलकर आता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से प्रधानमंत्री मोदी की कई मुलाकातें हो चुकी हैं. लेकिन, पुतिन के साथ अब तक उनकी सिर्फ दो मुलाकात ही हुई है.
दरअसल इन दिनों भारत-अमेरिकी संबंधों में जैसी गर्माहट आई है. दोनों देशों के सामरिक रिश्ते जितनी तेजी से बढ़े हैं. उसने मास्को को चिंता में डाल दिया है.
प्रधानमंत्री मोदी गोवा में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान पुतिन से अलग जाकर मिलेंगे. उनका ध्यान रुस के साथ संबंधों को सही दिशा में रखने पर केंद्रित होगा.
भारत के लिए रुस हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक देश है. कुल हथियार खरीद का 40 फीसदी रुस से आयात होता है.
रुस के ही सहयोग से कुडनकुलम में परमाणु बिजली संयंत्र लगाने का काम चल रहा है.
सितंबर में भारत-रुस व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर अंतर-सरकारी आयोग (आईआरआईजीसी-टीईसी) की बैठक भी हुई.
नई दिल्ली में हुई इस बैठक में दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण क्षेत्रों मसलन, व्यापार-वाणिज्य, ऊर्जा, अंतरिक्ष और उच्च प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में तेजी लाने पर जोर दिया गया.
ऐसे समझौते से बढ़ेगा सहयोग
सितंबर महीने में गृहमंत्री राजनाथ सिंह की रुस की यात्रा प्रस्तावित थी. जिसमें दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर होने थे.
जिसमें साइबर सुरक्षा और आतंकवाद पर खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान जैसे मसले थे. लेकिन, उड़ी हमले के बाद गृहमंत्री की रुस की यात्रा स्थगित हो गई.
आने वाले दिनों में ऐसे समझौते दोनों देशों के बीच सहयोग को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएगा. अगले साल भारत-रुस कूटनीतिक और सामरिक संबंधों के 70 साल पूरे होने जा रहे हैं.
हाल के वर्षों में भारत ने भले ही अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूती देने पर जोर दिया हो. लेकिन हम अपने सबसे पुराने दोस्त रुस को नजरअंदाज नहीं कर सकते.
मोदी सरकार में सबको साधने की विदेशी कूटनीति कारगर है. लेकिन रुस के साथ पुराने संबंधों को नए आयाम भी देने होंगे.
साथ ही रुस-भारत-चीन फोरम के उस प्रस्ताव पर भी गंभीरता से सोचना चाहिए, जिसे मास्को ने आगे बढाया था.