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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव: अमित शाह की रणनीति, सीमा पर तैनात किए क्षत्रप

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए मध्यप्रदेश के विधानसभा के चुनाव के साथ ही वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं.

Dinesh Gupta

मध्यप्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव की घोषणा के लिए कुछ दिन ही बचे हैं. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 6 अक्टूबर से मध्यप्रदेश में अपना चुनावी अभियान शुरू कर देंगे. अमित शाह के आने से पहले पड़ोसी राज्यों के सौ से अधिक दिग्गज नेता नेता मध्यप्रदेश में अपनी आमद दे चुके हैं. अमित शाह ने इन नेताओं की तैनाती राज्य की सीमाओं पर की है. जिलों के प्रभार भी नेताओं को दिए गए हैं. इन नेताओं के जरिए बीजेपी, कांग्रेस के प्रभाव वाली राज्य की पचास से अधिक सीटों को सुरक्षित करना चाहती है.

पहली बार उतारे गए हैं दूसरे राज्यों के कद्दावर नेता


पिछले पंद्रह साल से राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. शिवराज सिंह चौहान पिछले तेरह साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं. भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व इस चुनाव में सरकार विरोधी माहौल को किसी भी तरह से उभरने देना नहीं चाहता है.

राज्य की सत्ता के साथ-साथ संगठन पर शिवराज सिंह चौहान का ही प्रभाव है. इस प्रभाव में पार्टी किसी भी तरह का हस्तक्षेप कर नए विवाद खड़े नहीं करना चाहती है. राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल लगातार मध्यप्रदेश के हालातों की क्षेत्रवार समीक्षा भी कर रहे हैं. इसके बाद भी मैदानी स्तर से आने वाले फीडबैक की विश्वसनीयता पर संदेह बना रहता है. पार्टी ने चार पड़ोसी राज्यों के बड़े नेताओं को तैनात कर चुनावी रणनीति को अपने हाथ में ले लिया है.

इन नेताओं में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, सांसद जगदंबिका पाल, दिल्ली बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष सतीश उपाध्याय जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हैं. प्रदेश बीजेपी के उच्च स्तरीय सूत्रों ने बताया कि मैदानी स्तर पर तैनात किए गए, ये नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को सीधे स्थिति के बारे में जानकारी देंगे.

राज्य के हर फैसले में राष्ट्रीय नेतृत्व का दखल भी बढ़ जाएगा. मध्यप्रदेश की सीमाएं उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ राज्य से मिलती हैं. छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मध्यप्रदेश के साथ ही विधानसभा के आम चुनाव होना है. अमित शाह ने इन दोनों राज्यों के किसी भी नेता को मध्यप्रदेश के चुनाव में नहीं लगाया है. चुनाव में गुजरात, महाराष्ट्र दिल्ली और उत्तरप्रदेश के नेताओं का उपयोग किया जा रहा है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को राज्य के चुनाव का प्रभारी बनाया गया है. धर्मेंद्र प्रधान पूरे चुनाव में समन्वय की महत्वपूर्ण की भूमिका भी निभाएंगे.

भाषा और सामाजिक समीकरण के आधार पर की गई है तैनाती

राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. बीजेपी ने इन सीटों पर दूसरे राज्यों के नेताओं की तैनाती से पहले बोली और सामाजिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखा है. राज्य की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि एक रणनीति पूरे राज्य के लिए कारगर नहीं हो पाती है. बुंदेलखंड का मिजाज मालवा-निमाड से बिल्कुल भिन्न है. इसी तरह महाकौशल और विंध्य में भी रीति-नीति, बोली और सामाजिक व्यवस्था अलग-अलग है. संगठन महामंत्री रामलाल ने दूसरे राज्यों के नेताओं को फील्ड में उतारने से पहले भोपाल में अलग-अलग क्षेत्रों के मिजाज को भी संक्षेप में बताया.

मध्यप्रदेश के दस जिलों की सीमाएं उत्तरप्रदेश से मिलती हैं. ये जिले हैं सागर, सिंगरौली, गुना, दतिया, शिवपुरी, रीवा, सीधी, सतना, पन्ना और भिंड हैं. इसके अलावा राजस्थान 10, छत्तीसगढ़ 7 और गुजरात की सीमा से दो जिले लगते हैं. बिहार राज्य की सीमा से लगा हुआ जिला सिंगरोली है.

उत्तरप्रदेश की सीमाओं से लगे हुए राज्यों में ही बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का असर है. कांग्रेस और बीएसपी के बीच समझौते को लेकर उभरी टकराव के बाद क्षेत्र में सवर्ण वोटर की भूमिका काफी निर्णायक मानी जा रही है. पार्टी ने नेताओं को जिले आवंटित करते वक्त सवर्ण फैक्टर को भी ध्यान में रखा है.

भोपाल संभाग की कमान उप्र के मेरठ से सांसद राजेंद्र अग्रवाल और विधायक सुभाष त्रिपाठी को सौंपी गई है. चंबल-ग्वालियर की बागडोर यूपी से सांसद जगदंबिका पाल को सौंपी गई है. इसी तरह दिल्ली प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष सतीश उपाध्याय को आईटी विभाग का काम दिया गया है.

अमित शाह की रणनीति: सिंधिया-कमलनाथ को घर में घेरो

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए मध्यप्रदेश के विधानसभा के चुनाव के साथ ही वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं. उनकी रणनीति राज्य के बड़े नेताओं को उनके ही क्षेत्रों में घेरने की है. निशाने पर मुख्यत: प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं.

सिंधिया का असर ग्वालियर-चंबल संभाग की 34 सीटों के अलावा मालवा-मध्य भारत की आधा दर्जन सीटों पर है. कमलनाथ महाकौशल में असर रखते हैं. दोनों ही नेता अपने-अपने समर्थकों को जिताने के लिए पूरा दम लगा देते हैं. सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में सवर्ण आंदोलन ज्यादा मुखर दिखाई दे रहा है. क्षेत्र में बीजेपी को लगातार सवर्णों का साथ मिलता रहा है.

उत्तरप्रदेश के सांसद जगदंबिका पाल ने कहा कि सपाक्स के लोग पहले भी बीजेपी के साथ थे और चुनाव में भी वे साथ ही दिखाई देंगे. पाल का अनुमान है कि बीएसपी-कांग्रेस का गठबंधन नहीं होने से बीजेपी लाभ में रहेगी. पार्टी ने अपने तेजतर्रार प्रवक्ता संबित पात्रा को भी मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी है. सांसद सिंधिया के क्षेत्र में उत्तरप्रदेश के मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को लगाया गया है. इसके साथ ही वे छिंदवाड़ा और झाबुआ के भी प्रभारी हैं. छिंदवाड़ा कमलनाथ और झाबुआ से कांतिलाल भूरिया सांसद हैं. कांग्रेस पार्टी सिर्फ सिंधिया और कमलनाथ के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ रही है.