view all

सवर्णों की नाराजगी के बीच बीजेपी कैसे बचाएगी राजस्थान का 'किला'?

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 11 सितम्बर को जयपुर पहुंच रहे हैं, सुना है वे सबसे पहले मोती डूंगरी गणेश मंदिर दर्शन करने जाएंगें

Vijai Trivedi

राजस्थान में अब मंदिर-मंदिर, ब्राह्मण-ब्राह्मण की राजनीति का दौर आ गया लगता है और इसमें होड़ लग गई है कि कौन बड़ा ब्राह्मण है, कौन जनेऊधारी है, किसके डीएनए में ब्राह्मण है और किसका आधार ही ब्राह्मण- बनिया है. लेकिन इसके साथ यह डर भी है कि पिछड़े और दलित कहीं छूट ना जाएं.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 11 सितम्बर को जयपुर पहुंच रहे हैं, सुना है वे सबसे पहले मोती डूंगरी गणेश मंदिर दर्शन करने जाएंगें. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 13 सितम्बर को देश की जिन पांच संसदीय सीटों के बीजेपी कार्यकर्ताओं से वीडियो कान्फ्रेसिंग के जरिए संवाद करेंगें, इनमें एक जयपुर ग्रामीण सीट भी है. इस सीट से सूचना प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ चुन कर आए हैं.


पिछले दिनों जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जयपुर पहुंचे थे तो उनका भी गणेश मंदिर जाने का कार्यक्रम था, लेकिन वो सुरक्षा कारणों से टल गया, फिर वे गोविन्द देव जी मंदिर के दर्शन करके आ गए. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपनी गौरव यात्रा के दौरान शायद ही कोई प्रमुख मंदिर छोड़ा हो, जिसके दर्शन नहीं किए हों.

खैर, अभी तक शाहबानो मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने को लेकर राजीव गांधी की आलोचना करने वाली बीजेपी ने अब एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेअसर कर दिया है. जरुरी भी था क्योंकि दलित 150 संसदीय सीटों पर असर डालते हैं और फिर 2014 के चुनाव में भी अच्छी संख्या में दलितों ने बीजेपी को वोट दिया था. लेकिन इस बार मुश्किल यह है कि दलित एक्ट पर अदालती फैसले को बेअसर करने से बीजेपी का पारंपरिक वोटर यानी अगड़े नाराज हो गए हैं.

राजीव गांधी ने उस वक्त शाहबानो पर फैसले के तुरंत बाद मंदिर निर्माण में अपनी आहुति देकर हिन्दुओं को खुश कर लिया था. अब बीजेपी को देखना है कि वो दोनों पक्षों को एकसाथ खुश कैसे रख सकती है. बहरहाल बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अगले हफ्ते से अपनी ताकत राजस्थान में लगाने वाले हैं. वे 11 सितम्बर को जयपुर जा रहे हैं, जहां उनके चार कार्यक्रम हैं. इसके बाद वे राज्य भर में 6 अलग-अलग दिन सभी संभागों में रहेंगें. बीजेपी के सम्मेलन जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, अजमेर, कोटा और बीकानेर में होंगे.

राजस्थान पर है बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का पूरा फोकस

अमित शाह का राजस्थान दौरा 11 सितंबर से चार अक्टूबर तक चलेगा. इसके साथ ही वसुंधरा सरकार की भामाशाह योजना के प्रचार पर भी जोर दिया जाएगा. राजस्थान में पिछले चुनाव में लोकसभा की सभी 25 सीटें बीजेपी ने जीती थीं और तीन-चौथाई विधानसभा सीटों के साथ वसुंधरा राजे सीएम हैं. प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस वक्त अगले लोकसभा चुनावों के लिए एक-एक सीट का हिसाब लगाने में व्यस्त हैं.

उसमें राजस्थान की सभी 25 सीटों को बचाए रखना सबसे अहम काम है. सभी 25 सीटें तब ही बच सकती हैं जबकि राज्य में फिर से वसुंधरा राजे की सरकार आए. इसलिए अमित शाह ने अपनी टीम के साथ प्रदेश पर फोकस किया है. शाह इलेक्शन मैनेजमेंट को अपने हाथ में रख कर रणनीति बनाते हैं. मुख्यमंत्री राजे लगातार प्रदेश भर में गौरव यात्रा पर हैं. इसमें भी हाइकोर्ट के फ़ैसले से झटका लगा है क्योंकि अब यात्रा में सरकार के पैसे और सरकारी अमले की मदद नहीं ली जा सकेगी.

मिशन 2019 के लिए जरुरी है कि राजस्थान विधानसभा चुनावों में बीजेपी ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करे. उप-चुनावों में बीजेपी दो लोकसभा सीटें अलवर और अजमेर हार गई थी यानी अब उसके पास 25 के बजाय 23 सीटें रह गई हैं. राजस्थान में बीजेपी के लिए दूसरी मुश्किल एससी-एसटी एक्ट में अदालत के फ़ैसले में बदलाव को लेकर भी हो सकती है क्योंकि उसका परम्परागत वोट बैंक यहां का सवर्ण यानी ब्राह्मण –बनिया और राजपूत हैं, ये तीनों ही समुदाय फिलहाल पार्टी से नाराज हैं.

ब्राह्मण- बनिया का कोई बड़ा नेता पार्टी के पास नहीं है. एक जमाने तक ललित किशोर चतुर्वेदी, हरिशंकर भाभड़ा और भंवर लाल शर्मा और रामदास अग्रवाल नेता होते थे. राजपूतों में भैंरोंसिंह शेखावत और जसवंत सिंह नेता थे, अब इनमें से कोई पार्टी के पास नहीं है. वसुंधरा राजे खुद को राजपूत नेता कहती हैं लेकिन गजेन्द्र सिंह को अध्यक्ष नहीं बनाए जाने से नुकसान उठाना पड़ सकता है. अब इसकी भरपाई के लिए शेखावत को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया गया है.

राजस्थान में 2013 के चुनाव में चला था मोदी मंत्र

साल 2014 के चुनावों से पहले दिसम्बर 2013 में राजस्थान में चुनाव होने वाले थे और नरेन्द्र मोदी टीम को समझ आ गया था कि आम चुनावों के लिए राजस्थान में मजबूत बीजेपी सबसे जरूरी है. मोदी और वसुंधरा राजे के बीच समीकरण भी बेहतर थे. दो सौ सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा में उस वक्त कांग्रेस का कब्जा था और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री.

मोदी टीम ने तब 2013 के विधानसभा चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दीं. मोदी टीम ने तब 200 जीपीएस लगी मोबाइल वैन या डिजिटल रथ राजस्थान भेज दिए थे. इनमें 50 इंच की एलईडी वीडियो स्क्रीन्स लगी हुई थीं और उस पर मोदी की 16 मिनट की फ़िल्म और भाषण चलते थे. इससे वहां बीजेपी को माहौल बनाने में मदद मिली. हर एक वैन रोजाना 15-20 गांवों में जाती थी. जीपीएस होने से टीम को हर गतिविधि के बारे में जानकारी रहती थी. जब 8 दिसम्बर,2013 को नतीजे आए तो बीजेपी के लिए ही नहीं, सभी के लिए चौंकाने वाले थे.

बीजेपी को दो सौ में से 162 सीटें मिलीं थी, अब तक की सबसे ज्यादा सीटें. उस वक्त एक प्रादेशिक चैनल पर एक रात पहले यानी सात दिसम्बर को मैंने अपनी टीम की कोशिशों और जोर आजमाइश से संभावित नतीजे बताए थे. स्टूडियो में तब राजस्थान में बीजेपी के प्रभारी और अब त्रिपुरा के राज्यपाल कप्तान सिंह बैठे थे. हमारी टीम ने बीजेपी को 157 सीटें आने की संभावना बताई थी. शायद उनको भी भरोसा नहीं हुआ था, उन्होंने कहा था कि इतना तय है कि बीजेपी स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाएगी यानी 100 प्लस सीटें. सवेरे नतीजे आने लगे और दोपहर तक तो पूरा खेल ही बदल गया. वसुंधरा राजे सरकार बनाने से पहले बांसवाड़ा के त्रिपुर सुंदरी मंदिर के दर्शन के लिए रवाना हो गई थीं.

मोदी टीम बीजेपी सरकार बनने से ज्यादा इस बात से खुश थी कि पार्टी को तीन चौथाई सीटें मिली हैं और इसकी बड़ी वजह मोदी की लोकप्रियता है यानी चार-पांच महीने बाद होने वाले आम चुनावों तक यह लहर बनी रहेगी और मोदी को इसका फायदा मिलेगा. हुआ भी ऐसा ही. राजस्थान में बीजेपी को सभी 25 लोकसभा सीटों पर भारी जीत हासिल हुई, शत प्रतिशत सीटें.

साल 2014 के चुनाव में बीजेपी को उत्तर भारत की या हिन्दी बैल्ट और जिसे आमतौर पर काऊ बैल्ट कहा जाता है, उसी इलाके में सबसे ज्यादा सीटें और वोट मिले. इन इलाकों की कुल 225 सीटों में से बीजेपी ने 190 सीटों पर कब्जा कर लिया और वोट मिले 44 फीसद. हिन्दीभाषी राज्यों राजस्थान,उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड,झारखंड,छत्तीसगढ़, हरियाणा और दिल्ली, एनडीए के सहयोगियों समेत उसे यहां कुल 201 सीटें मिलीं.

इस चुनाव में बीजेपी का विस्तार हुआ, उसने शहरी इलाकों के अलावा कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में भी जीत हासिल की, तो उसे सवर्ण या ऊंची जातियों के अलावा ओबीसी और दलितों का भी वोट मिला, लेकिन सवाल यह है कि क्या वो उस वोट बैंक को अब अपने पास बरकरार रख पाई है. और कांग्रेस के एक मित्र राजनेता ने जयपुर से फोन पर कहा- भाई साहब,आप हमारे नेता राहुल गांधी जी के राजस्थान कार्यक्रम के बारे में भी बताइए, कांग्रेस के लिए भी चुनाव हैं यहां पर... आपको जानकारी हो तो, मुझे बताइएगा.

(लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)