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जेएनयू-डीयू में हार के बाद इलाहाबाद में साख बचा पाएगा एबीवीपी?

14 अक्टूबर को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव होने जा रहे हैं

Ankit Pathak

पिछले दो तीन महीनों में देश के अंदर कई केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव हुए हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय से होते हुए लोकतंत्र का यह पर्व 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' कहे जाने वाले इलाहबाद विश्वविद्यालय आ पहुंचा है.

14 अक्टूबर को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव होने जा रहे हैं. तकरीबन बीस हजार छात्र-छात्राएं अपने वोट के जरिए केंद्रीय पैनल के पांच पदों पर कुल 38 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे.


इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं उसके चार प्रमुख संघटक कॉलेजों में भी मतदान की प्रक्रिया एक साथ हो रही है. नामांकन की प्रक्रिया विगत 6 अक्टूबर को सम्पन्न कराई गई.

नामांकन करने वालों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(अभाविप), समाजवादी छात्र सभा(सछास), भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई), आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन(आइसा), स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया(एसएफआई), ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट ऑर्गेनाईजेशन(एआईडीएसओ), भारतीय विद्यार्थी मोर्चा एवं प्रतियोगी छात्र मोर्चा जैसे छात्र संगठन रहे, जबकि इनके अलावा निर्दलीय प्रत्याशी भी रहे जिन्होंने बिना किसी बैनर तले अपना नामांकन किया.

नामांकन में सभी दलों के प्रत्याशियों ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया. निर्दलीय प्रत्याशी भी किसी से पीछे नहीं रहे. नामांकन के पहले चुनाव अधिकारी प्रो. आर. के. सिंह ने आचार संहिता के उल्लंघन के लिए सात प्रत्याशियों को नोटिस जारी किया था, फिर भी नामांकन के दिन वह सब बेअसर दिखा, प्रत्याशियों ने गाड़ियों के लंबे-लंबे काफिले निकाले और समर्थकों को इकठ्ठा करने में पानी की तरह पैसा बहाया, जबकि लिंगदोह समिति के प्रावधानों के अनुसार एक प्रत्याशी की अधिकतम खर्च सीमा पांच हजार रूपए है.

फिर भी युनिवर्सिटी प्रशासन और जिला प्रशासन पूरी मुस्तैदी के साथ सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को सम्पन्न कराने में जुटा है. यह प्रशासन के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण तब बन गया जब विगत 2 अक्टूबर को देर रात में बसपा नेता राजेश यादव की युनिवर्सिटी के ताराचंद हॉस्टल के पास गोली मारकर ह्त्या कर दी गई. अगले दिन इलाहाबाद शहर में तोड़-फोड़ और हिंसा की घटनाएं हुई थी.

इस संबंध में पुलिस ने कुछ छात्रनेताओं को भी पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया था. ऐसे में युनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो जाए, यह प्रशासन के लिए एक चुनौती बना हुआ है.

11 अक्टूबर को दक्षता भाषण का कार्यक्रम आयोजित किया गया. युनिवर्सिटी छात्रसंघ के दक्षता भाषण की अपनी प्रतिष्ठा है. एक समय में इलाहाबाद शहर के नागरिक अपने अपने घरों से निकलकर दक्षता भाषण सुनने आते थे.

हिंदी विभाग के अध्यापक सूर्य नारायण कहते हैं कि एक जमाने में छात्रसंघ भवन की प्राचीर से संबोधन करने आकर्षण लाल किले की प्राचीर से संबोधन करने से कम नहीं होता था. वे बताते हैं कि किस तरह अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने अपने दक्षता भाषण से पूरे चुनाव का रुख बदल दिया था. एक दिन पहले तक जीते हुए बताए जा रहे प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा था.

इस बार के दक्षता भाषण में अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पद के प्रत्याशियों ने अपनी बातें हजारों छात्रों के सामने रखीं. लेकिन ज्यादातर नेता श्रोताओं पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब नहीं हो पाए. हां ABVP और AISA से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार नेताओं ने अपनी भाषण कला से श्रोताओं को प्रभावित किया.

सभी ने कुछ न कुछ वादे किए. हॉस्टल बनवाने से लेकर, लाइब्रेरी से किताबें निर्गत करने, कैंटीन खुलवाने, महिला छात्रावास में महिला सुरक्षाकर्मी तैनात करने, पेयजल और शौचालय की समुचित व्यवस्था करने, शिक्षकों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति, डेलीगेसी में रहने वाले छात्रों के लिए भत्ता, अस्पताल की सुविधा मुहैया कराने संबंधी वादे किए गए. कुछ प्रत्याशियों ने हॉस्टल वाश आउट और भ्रष्टाचार को लेकर यूनिवर्सिटी के वर्तमान कुलपति को भी आड़े हाथों लिया.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सात वर्षों के लंबे इंतजार के बाद दोबारा छात्रसंघ चुनाव की शुरुआत हुई. ये चुनाव जेएम लिंगदोह समिति की सिफारिशों के आधार पर कराए जाते हैं, इस क्रम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय(इविवि) का यह छठवां छात्रसंघ चुनाव है.

एशिया महाद्वीप के सबसे पुराने छात्रसंघ के रूप में प्रसिद्ध इविवि छात्रसंघ की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई. यह वह समय था जब देश में मात्र कुछ गिने-चुने विश्वविद्यालय हुआ करते थे. आजादी की लड़ाई के दौरान देश के अंदर गठित पहले निर्वाचित छात्रसंघ के अध्यक्ष एस.बी. तिवारी हुए थे.

आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ और उससे जुड़े नेताओं का संघर्ष आज भी यहां का हर छात्र नेता याद करता है. छात्र नेताओं के हैंडबिल पर अनिवार्य रूप से लिखा रहता है- 'शहीद लाल पद्मधर अमर रहें'. दक्षता भाषण के दौरान सभी प्रत्याशी अपने क्रांतिकारी नेता को याद करना नहीं भूलते. हुआ यूं था कि वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जीरो ऑवर के दौरान देश के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे तो इलाहाबाद शहर से आंदोलन का नेतृत्व छात्र नेताओं ने संभाला था. 12 अगस्त, 1942 को जब कचहरी में लाल पद्मधर भाषण दे रहे थे तब अंग्रेजों की गोलीबारी में वे शहीद हुए.

देश में जब भी लोकतांत्रिक मूल्यों पर खतरा मंडराया है उसके खिलाफ आवाज विश्वविद्यालय के भीतर से उठी है. जेपी आंदोलन के अगुवा भले ही जयप्रकाश नारायण रहे हों और लेकिन इस आंदोलन में ऊर्जा और गर्मी लाने का काम युवाओं ने ही किया था.

जयप्रकाश नारायण

उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनावों पर प्रतिबन्ध रहा, लेकिन प्रतिबन्ध के उन पांच-छह सालों में छात्र राजनीति बहुत मजबूत हुई. पुनः जब वर्ष 1979 में यहां छात्रसंघ की वापसी हुई तो जुझारू और संघर्षशील नेता अनुग्रह नारायण सिंह अध्यक्ष बने थे.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अतीत में बहुत कुछ याद करने को है. यह विश्वविद्यालय देश की राजनीति को खुराक देता रहा है. भारत की पहली महिला छात्रसंघ अध्यक्ष कुमारी एस. के. नेहरू (1927-28) इसी विश्वविद्यालय से थीं. हालांकि उसके बाद दूसरी महिला छात्रसंघ अध्यक्ष के लिए यूनिवर्सिटी को 88 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा. यह इंतजार तब खत्म हुआ जब 2015 में ऋचा सिंह इविवि छात्रसंघ की अध्यक्ष बनीं.