घूमर राजस्थान का मशहूर डांस है जिसमें डांसर पहले घड़ी की दिशा में (clock wise) और फिर घड़ी की उल्टी दिशा में (Anti clock wise) घूमती है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के राजस्थान दौरे को भी वसुंधरा राजे सरकार के लिए घड़ी की उल्टी दिशा में घुमाव के तौर पर माना जा रहा था.
आशंका जताई जा रही थी कि शाह शीर्ष स्तर पर बड़े बदलाव की घोषणा कर सकते हैं. इस आशंका के पुराने और नए, कई कारण थे. पार्टी में पुराने अंदरूनी असंतोष के अलावा आनंदपाल एनकाउंटर से उपजे हालात के बाद नेतृत्व एकाएक बैकफुट पर आ गया था. कुछ दिन से किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा भी गरम था. शाह के दौरे के दौरान ही 22 जुलाई को इस मुद्दे पर राज्यव्यापी बन्द का आह्वान भी किया गया था.
इससे भी बढ़कर राजनीतिक जानकार नए प्रवक्ताओं की घोषणा को अपने पांव कुल्हाड़ी मारने की संज्ञा दे रहे थे. दरअसल, शाह के दौरे से एक दिन पहले ही मंत्रियों, राज्य वित्त आयोग की अध्यक्ष और जयपुर के मेयर तक को पार्टी प्रवक्ता घोषित कर दिया गया था. ये पार्टी संविधान का स्पष्ट उल्लंघन था.
हालांकि इस गलती को समय रहते सुधार लिया गया. राजस्थान बंद को भी 'संकट मोचकों' ने 30 जुलाई तक खिसकाने में कामयाबी हासिल कर ली. इसके बावजूद सत्ता-संगठन का डर बना हुआ था.
वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी के मुताबिक दौरा ऐसे समय में आयोजित हुआ जब मोदी-शाह की जोड़ी का वसुंधरा राजे में विश्वास कम होता नजर आ रहा था. परिवर्तन के इस डर की बानगी ऊर्जा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी को दी बधाई से समझी जा सकती है. खींवसर ने चतुर्वेदी को कहा, 'धन्यवाद! जो आपने बचा लिया वरना आज तो काम तमाम था.'
दरअसल, शुक्रवार को मंत्रियों के साथ चर्चा के दौरान शाह बूथ प्रबंधन और विस्तारक योजना का फीडबैक ले रहे थे. सबसे पहले उन्होंने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी से पूछा लेकिन वे ठीक से जवाब नहीं दे पाए. अगली बारी कुशल प्रबंधनकर्ता के तौर पर पहचान रखने वाले चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ की थी. लेकिन वे भी शाह को संतुष्ट नहीं कर सके.
दो 'चावल' देखकर ही बीजेपी अध्यक्ष शाह ने पूरी बोरी का अंदाजा लगा लिया और फिर किसी और मंत्री से इस बारे में नहीं पूछा. पूरे मंत्रिमंडल ने इसी से राहत की बड़ी सांस ली.
तो क्या बच गया राजे का राज?
अमित शाह के दौरे के पहले दो दिन का विश्लेषण तो यही दिखाता है कि फिलहाल वसुंधरा राजे की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है. तमाम कयासों के बावजूद शाह ने राजे सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि वर्तमान नेतृत्व ने भ्रूण हत्या रोकने और स्त्री सशक्तिकरण की भामाशाह योजना लागू करने जैसे कदमों से व्यापक विकास का खाका तैयार किया है. शाह ने राजस्थान को बीमारू राज्यों की श्रेणी से बाहर निकालने के लिए भी बीजेपी सरकार को सराहा.
शाह ने ये भी साफ कर दिया कि सरकार के कामकाज की मॉनिटरिंग अलग लोगों का काम है और वे खुद अभी सिर्फ संगठन पर ही फोकस कर रहे हैं. इसके बाद कई चेहरों पर मुस्कुराहटों भरे इशारे साफ देखे गए.
क्या कहते हैं शाह के इशारे?
राजे सरकार पर शाह का ये बयान कई इशारे भी दे रहा है. पहला ये कि अगर शाह संगठन को कमजोर मान रहे हैं तो इसमें भी सरकार की ही कमी मानी जाएगी क्योंकि वर्तमान पार्टी अध्यक्ष अशोक परनामी राजे गुट के वैसे ही नेता हैं, जैसे सोनिया के लिए मनमोहन सिंह थे.
दूसरा ये कि जल्द ही राज्य में संगठन और सरकार में अदलाबदली की वैसी योजना से इनकार नहीं किया जा सकता जैसी कि कांग्रेस में कामराज ने दी थी.
शाह का ये दौरा अगले चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति के कई इशारे भी दे रहा है. विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने शाह को धारा 370 हटाने, 'अल्पसंख्यकवाद' को हटाने की दिशा में आगे बढ़ने और गौरक्षा को प्रमुख मुद्दा बनाने की सलाह दी. इस पर शाह ने उन्हें दिल्ली आकर अलग से चर्चा का न्योता दे डाला.
दौरे के दूसरे दिन शनिवार को शाह ने साधु संतों से भी मुलाकात की है. संतों ने भी हिंदुत्व, मंदिर, गौरक्षा जैसे मुद्दों को प्राथमिकता में रखने की बात कही है.
तो क्या इससे ये समझें कि फर्जी गौ सेवकों को बख्शे न जाने की प्रधानमंत्री की चेतावनी के बावजूद ये मुद्दा चुनाव तक जीवित रखा जाने वाला है. बड़ा सवाल ये भी कि क्या राजे सरकार की कम होती लोकप्रियता के बावजूद 2018 विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व के सहारे जीत हासिल की जा सकेगी?