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यूपी उपचुनाव के नतीजों के बाद अखिलेश-माया की मुलाकात, जानें क्या होगी आगे की रणनीति

उपचुनाव के नतीजे सामने आने के बाद अखिलेश यादव सबसे पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती को धन्यवाद देने पहुंचे, यह मुलाकात 1 घंटे से भी ज्यादा चली

FP Staff

उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद समाजवादी पार्टी (एसपी) के मुखिया अखिलेश यादव ने सबसे पहले बहुजन समाजवादी पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की और उन्हें धन्यवाद दिया. बुधवार को आए इन नतीजों में बीएसपी की मदद से एसपी के उम्मीदवारों ने गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीटें बीजेपी को हराकर अपने नाम कर ली.

इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश इस खास मौके को साधने के लिए मायावती के पास जरूर जाएंगे और हुआ भी यही. गोरखपुर और फूलपुर में बीएसपी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे और एसपी को अपना समर्थन दिया था.


नतीजों के तुरंत बाद अखिलेश ने मायावती को धन्यवाद देने के लिए नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी को मायावती के पास भेजा था. इसके बाद उन्होंने पार्टी विधायक दल के साथ बैठक की और आगे की रणनीति को लेकर चर्चा किया.

एक घंटे से ज्यादा चली मुलाकात

अखिलेश बुधवार को शाम 7.25 बजे राज्यसभा सांसद संजय सेठ के साथ मायावती के आवास पहुंचे. दोनों के बीच का यह मुलाकात लगभग एक घंटे से भी ज्यादा चला. इस दौरान मायावती के साथ सतीश चंद्र मिश्र भी मौजूद थे.

दोनों नेताओं के बीच 2019 लोकसभा चुनाव में गठबंधन से लेकर आने वाले राज्यसभा चुनावों को लेकर भी चर्चा हुई. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से राज्यसभा चुनाव के लिए अपने नौवें उम्मीदवार को उतार दिया है. इससे सबसे ज्यादा खतरा मायावती को है. ऐसे में दोनों नेताओं ने बीजेपी द्वारा जोड़-तोड़ की कोशिश को रोकने पर भी चर्चा की है.

इस मुलाकात के बारे में अखिलेश ने मीडिया से कोई बात तो नहीं कि लेकिन जानकार बता रहे हैं कि यह सिर्फ धन्यवाद देने भर की मुलाकात नहीं थी. यह आगे की रणनीति और कार्य योजनाओं पर बात करने का सबसे सही समय था.

अखिलेश की मायावती से हाल के महीनों में यह दूसरी मुलाकात थी. इससे पहले अखिलेश दिल्ली में भी बीएसपी सुप्रीमो से मुलाकात कर चुके थे.

दोनों पार्टियों का साथ दूरगामी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा

उपचुनावों में एसपी और बीएसपी का साथ आना एक दूरगामी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था. विपक्षियों के साथ-साथ दोनों पार्टियां भी इस मेल का असर देखने के इंतजार में थी. नतीजों के आने के बाद यह बिल्कुल साफ हो गया कि यह साथ कारगर है और इसे आगे बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है.

हालांकि, दोनों पार्टियों के तरफ से गठबंधन के सवालों पर कोई ठोस जवाब नहीं आया है, लेकिन अटकलें गर्म है कि दोनों पार्टियां एक ही रास्ते चल कर मंजिल तक पहुंचना चाहती हैं. ठीक 25 साल पहले 1993 में दोनों पार्टियां एक साथ आईं थीं. मुलायम और कांशीराम जब साथ मिले थे तो बीजेपी की हार हुई थी.