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सत्ता के अमृत के लिये अखिलेश-शिवपाल का 'समुद्र-मंथन'

यूपी की सत्ताधारी पार्टी में दोनों पक्ष में सत्ता पर अधिकार की जंग जारी है

Kinshuk Praval

पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन की एक कथा है. समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले तो साथ में विष और अमृत भी.

विष का पान भगवान शिव ने किया तो देवताओं ने अमृतपान किया. यूपी की राजनीति के समुद्र में भी समाजवादी पार्टी समुद्र मंथन की तरह ‘सत्ता मंथन’ में जुटी हुई है. इस ‘सत्ता मंथन’ में पार्टी के कई रत्न समुद्र से बाहर आते हैं तो फिर वापस गोते भी लगाने लगते हैं.


इस मंथन से निकले विष को पीने के लिये कोई तैयार नहीं. बल्कि सब कातर भाव से मुखिया मुलायम सिंह की तरफ ही ताकते नजर आते हैं. मानों वो चाहते हैं कि नेताजी ही  ‘सत्ता-मंथन’ से उपजे विष को पीएं और नीलकंठ बन जाएं यानी पार्टी के मार्गदर्शक.

सत्ता के ‘अमृत पान’ के लिये हो रहे संघर्ष में देव-असुरों को पीछे छोड़ते हुए यहां रिश्ते ही पद-प्रतिष्ठा बदलने में जुटे हुए हैं. कृष्ण ने महाभारत के रण में अर्जुन से कहा था कि इस महाभारत में न कोई भाई है न कोई बंधु और न ही कोई रिश्तेदार. बस वही गीता का संपूर्ण सार समाजवादी पार्टी के संसार में नजर आ रहा है.

इस मंथन में जिसके मौका मिल रहा है वो अपने अपने चहेते रत्नों को सत्ता के समुद्र में डुबा रहा है.

दिलचस्प है ये रस्साकशी 

ये बड़ी दिलचस्प रस्साकशी है. इसमें दोनों विरोधी हारने-थकने पर छोर बदल लेते हैं. कभी सभी एक साथ हो जाते हैं लेकिन जैसे ही अमृत की बात याद आती है तो फिर छोर बदल कर  जुट जाते हैं मंथन में.

जानकारों के लिये ये नूराकुश्ती या शतरंज हो सकती है लेकिन सत्ता की मरीचिका ने एक ऐसा ताना-बाना बुना है कि इस रण में सिर्फ ‘संहार रस’ दिखाई दे रहा है. सत्ता के अमृत का असर देखिये कि जिसे बार बार मारा जाता है वो फिर से जी उठता है.

अखिलेश यादव समाजवादी विचारधारा के नए पोस्टर ब्वॉय बनकर उभरे हैं (पीटीआई इमेज)

रामगोपाल यादव यानी प्रोफेसर साहब. सपा की राजनीतिक पाठशाला के गुरु रामगोपाल पर शिवपाल पूरी ताकत से कई बार प्रहार कर चुके हैं. कई बार उन्हें बाहर कर चुके हैं. वो फिर लौट आते हैं. समाजवाद का आवरण और विचारधारा के मानों वो ब्रांड एम्बेसडर बन गए हैं जो ये बता रहे हैं कि इससे उतर पाना इतना आसान नहीं.

अगर ये क्रिकेट का खेल है तो एक ही खिलाड़ी एक ही मैच में एक ही पारी में एक ही बॉलर की गेंद पर तीन बार आउट हो चुका है. अंपायर मुलायम सिंह यादव तीन बार आउट का इशारा कर चुके हैं लेकिन हर बार अखिलेश कुछ ऐसा दांव चलते हैं कि पवेलियन लौटे प्रोफेसर दोबारा मैदान में बुला लिये जाते हैं.

उसके बाद फिर अखिलेश सीधे चाचा शिवपाल का विकेट उखाड़ देते हैं. उनके दफ्तर से नेमप्लेट उखड़वा देते हैं.

अमर सिंह को बाहरी आदमी यानी बारहवां खिलाड़ी घोषित कर देते हैं और मैच से बाहर कर देते हैं.

फिर से मैच कराने के मूड में नेता जी

नेताजी कभी अंपायर बनते हैं तो कभी खुद ही गेंद थाम लेते हैं और अब मुलायम सिंह ये कह रहे हैं कि गेंद उनके पाले में हैं. यही वजह है कि जब अखिलेश ने उनकी कप्तानी छीन कर खुद को कप्तान घोषित कर दिया तो मुलायम सिंह कह रहे हैं कि जनेश्वर मिश्र मैदान पर 5 जनवरी को फिर से मैच खेला जाएगा . उस मैच का ही नतीजा असली माना जाएगा.

समाजवादी पार्टी के यादवों ने अपना खेल खुद ईजाद किया है और इसके नियम कायदे इन्हीं के बनाए हुए हैं जिसमें कोई नियम कायदा ही नहीं है.

जनता रूपी दर्शक मैच में कभी रोमांच महसूस करता है और अखिलेश के घर के सामने नारे लगाता है तो कभी-कभी ये खुद दंगल बन जाता है.

इस वक्त मुकाबला अपने चरम पर है.अखिलेश के मुताबिक वो पार्टी के नेशनल प्रेसिडेंट हैं. उन्होंने पिता को ही वीआरएस दे दिया. उनकी दलील ये है कि कोई भी नेताजी से कुछ भी लिखवा सकता है और बुलवा सकता है.

नए समीकरणों में ये समझना मुश्किल है कि एसपी अध्यक्ष मुलायम हैं या अखिलेश

यानी अब अखिलेश को अपने पिता पर भी भरोसा नहीं रह गया है. क्योंकि वो देख चुके हैं कि जब भी संगठन से कोई चिट्ठी आती है तो उसमें अखिलेश और रामगोपाल के लिये अच्छी खबर नहीं होती है. इसलिये अब वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते.

उधर शिवपाल यादव को भी स्टेट प्रेसिडेंट से हटा कर नरेश उत्तम को उनकी अध्यक्ष वाली कुर्सी दे दी है.

शिवपाल अपने हाथ से छूटती सत्ता की रस्सी को ऐसे फिसलने देने वालों में से नहीं हैं. ऐसा होता तो ये लड़ाई आज इस मोड़ पर नहीं पहुंचती. शिवपाल के पास मुलायम हैं जिस वजह से वो समझ रहे हैं कि इस रण में वो ‘अमर’ हैं.

फिलहाल ये समझ में नहीं आ रहा है कि असली कुर्सी कौन सी है. वो जिस पर अखिलेश बैठे हैं या वो जिस पर मुलायम सिंह बैठे हैं. इसी तरह असली समाजवादी पार्टी कौन सी है ये बड़ा सवाल भी सुलगते सुलगते अंगारा बन चुका है.

अमर सिंह को पार्टी का बाहरी यानी बारहवां खिलाड़ी घोषित कर ‘चुनाव की सीरीज’ से ही बाहर कर दिया गया.

अमर सिंह लंदन से वापस लखनऊ आ रहे हैं. ये कुछ वैसे ही जैसे इंग्लैंड में नवजोत सिंह सिद्धू सीरीज के बीच से स्वदेश लौटे थे क्योंकि अजहर ने उन्हें बाहर कर दिया था.

अखिलेश को खटक रहे अमर सिंह 

यहां भी आजम खान और प्रोफेसर साहब की गुगली में अमर सिंह हिट विकेट हो गए हैं. सबसे खास बात ये है कि जो अमर सिंह कभी सत्ता के मंथन में समाजवादी पार्टी के लिये कामधेनु और कल्पवृक्ष होते थे वो ही अब बबूल की तरह मायावती के ‘बबुआ’ को खटक रहे हैं. आखिर अमर सिंह से ऐसी नाराजगी की वजह की असलियत कब सामने आ सकेगी?

यूपी के समर में सारी पार्टियां रणभेरी के साथ तैयार हैं. सभी को चुनाव आयोग की घोषणा का इंतजार है. लेकिन ऐसा लग रहा है कि सबकी नजरें चुनाव छोड़ सपा के घमासान पर टिकी हुई है और सब चाहते हैं कि इस रात की सुबह जल्द हो.

इस पूरे विवाद में अमर सिंह खलनायक बनकर उभरे हैं

शक्ति परीक्षण में अपनी ताकत देख कर अखिलेश का सीना 56 इंच का हो गया है. विधायकों की मौजूदगी से सत्ता-मंथन में अखिलेश को यकीन हो चला है कि सत्ता और पार्टी के अमृत पर अब उनका ही एकाधिकार है.

अब देखना ये है कि पांच जनवरी को जनेश्वर मिश्र पार्क में मुलायम सिंह के बुलाए अधिवेशन में क्या होता है?

क्या एक बार फिर परिवार में सुलह हो जाएगी और फिर से सारे फैसले रोल बैक हो जाएंगे ?

दरअसल, यादव परिवार के फैमिली ड्रामे में यूपी की जनता को तारीख पे तारीख मिल रही है. लेकिन इंसाफ न तो अखिलेश को मिल रहा है और न ही शिवपाल यादव को. ऐसे में 5 जनवरी की ये तारीख बहुत मायने रखती है कि शायद इसके बाद अब चुनाव की तारीखों का ही ऐलान हो.