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दूसरों पर उंगली ना उठाएं अखिलेश, ये आलोचना का नहीं आत्ममंथन का वक्त है...

अभी दूसरों के घरों में झांकने का वक्त नहीं बल्कि अपना घर संवारने का समय है.

Kinshuk Praval

यूपी में बंपर जीत के बाद बीजेपी को मुख्यमंत्री के नाम के चयन में एक सप्ताह का वक्त लगा. आखिरकार आदित्यनाथ योगी के नाम पर मुहर लगी.

19 मार्च को आदित्यनाथ योगी ने यूपी के 21वें सीएम और बीजेपी के चौथे सीएम के रूप में शपथ ली. शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव भी मौजूद थे तो उनके पिता मुलायम सिंह यादव भी. ये मौका अखिलेश को पांच साल पहले के समारोह की यादें ताजा करने जैसा था. बस फर्क ये था कि इस बार सरकार कोई और बना रहा था और वो जनमत के दर्शक थे.


लेकिन एक सप्ताह बाद ही सपा के युवा मुखिया अखिलेश के सब्र का बांध टूटता दिखा. उनके भीतर का विपक्ष जागा. नए सीएम पर उनके तंज फूट पड़े. सात दिनों के भीतर ही अखिलेश ने आदित्यनाथ योगी को रिपोर्ट कार्ड थमा दिया. अखिलेश ने कहा कि आदित्यनाथ योगी भले ही उनसे उम्र में बड़े हैं लेकिन ‘काम में बहुत पीछे' हैं.

सवाल ये है कि सात दिनों के भीतर ही योगी के कौन से काम अखिलेश को कम लग गए ? सवाल ये भी है कि जनता को अखिलेश सरकार के पांच साल के काम क्यों नहीं दिखे?

पुलिसकर्मियों के सस्पेंशन पर अखिलेश की चिंता के मायने 

अखिलेश की राजनीति के अपरिपक्व फैसलों के बाद अब उनके बयानों में भी जल्दबाजी और हताशा साफ देखी जा सकती है. अखिलेश ने योगी सरकार पर आरोप लगाया कि केवल एक विशेष जाति के पुलिसकर्मियों को ही सस्पेंड और ट्रांसफर किया जा रहा है.

लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि खुद राज्यपाल राम नाईक ने भी ये आरोप अखिलेश सरकार पर लगाया था. यूपी में पत्रकारों से बातचीत में राम नाईक ने अखिलेश सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए थे. उन्होंने यूपी में फैली अराजकता और कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा था कि महत्वपूर्ण थानों में यादव तैनात हैं तो सरकारी नौकरियों में भी यादवों की नियुक्तियां की जा रही हैं.

यूपी के राज्यपाल राम नाईक ने भी अखिलेश यादव पर आरोप लगाए हैं

अब यही सवाल अखिलेश से जनता भी पूछना चाहेगी कि पांच साल में सिर्फ एक जाति विशेष के लोगों की ही पुलिस महकमे या फिर मलाईदार डिपार्टमेंट में पोस्टिंग क्यों हुई? मलाईदार इलाकों में सिर्फ सपा के करीबी जाति विशेष के लोगों की तैनाती क्यों की गई?

यूपी में परिवर्तन हुआ है तो जनता ने किया है. ये परिवर्तन सिर्फ सत्ता का नहीं बल्कि सत्ता से जुड़ी हर व्यवस्था पर असर डालेगा.

योगी सरकार के स्वच्छता अभियान पर जोर दिए जाने पर भी अखिलेश के दिल की बात बाहर आई. उन्होंने अपने ही पुराने अधिकारियों पर तंज कसा.  'हमें नहीं पता था कि अधिकारी इतनी अच्छी तरह से झाड़ू लगाते हैं, पता होता तो उनसे बहुत झाड़ू लगवाई जाती.'

अखिलेश का ये बयान उनके और अधिकारियों के बीच के कम्युनिकेशन गैप की तस्दीक करता है. सीएम रहते अखिलेश अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की न तो कैफियत समझ सके और न ये जान सके कि उनके मंत्रियों ने किस ‘स्पेशल प्रोजेक्ट’ में लगा रखा था.

अखिलेश को फिलहाल चिंता अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई को लेकर है. क्योंकि यहां उन्हें फिक्र किसी के रोजगार कटने की नहीं बल्कि उनके शेरों की भूख की है. अखिलेश कह रहे हैं कि उनके शेर बहुत भूखे हैं. दरअसल अखिलेश जब सीएम थे तब उन्होंने इटावा में लायन सफारी बनवाया था. गुजरात के गिर नेशनल पार्क की तर्ज पर लायन सफारी बनाया गया . हालांकि इटावा में लायन सफारी का आइडिया मुलायम सिंह का माना जाता है. जब खुद मुलायम सिंह यूपी के सीएम थे तब उन्होंने ही लायन सफारी बनवाने का ऐलान किया था.

लेकिन उनके सपने को अखिलेश ने पूरा किया. बाद में इसी लायन सफारी को लोकसभा चुनाव में पीएम उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने मुद्दा बनाया. उन्होंने यूपी की हालत पर तंज कसते हुए कहा था कि, 'अच्छा होता अखिलेश हमसे बिजली मांग लेते, रोड मांग लेते, लेकिन उन्होंने तो हमसे शेर मांगा और हमने दे दिया.' अब लायन सफारी की दुर्दशा का हाल ये है कि उसका नाम बदल कर इटावा सफारी करना पड़ा है क्योंकि अबतक सफारी में 9 शेरों की मौत हो चुकी है.

पांच दिन में योगी के 50 बड़े फैसले

अखिलेश कह रहे हैं कि योगी सरकार को आलोचना सहने की क्षमता बढ़ानी चाहिए. हालांकि शपथ लेने के बाद पांच दिनों में ही योगी 50 बड़े फैसले ले चुके हैं. लेकिन उनके एक भी फैसले की शिकायत जनता की अदालत से सामने नहीं आई है. खुद सीएम बनने के बाद पहली दफे गोरखपुर पहुंचे योगी ने दावा किया कि दो महीने में उनकी सरकार का काम दिखाई देने लगेगा. योगी ये बखूबी जानते हैं कि यूपी की बंपर जीत के बावजूद उनके लिए 'खुला मैदान' नहीं है. एक बड़ी जिम्मेदारी बड़े लक्ष्य के साथ उन्हें सौंपी गई है.

एक गलत फैसला या चूक योगी ही नहीं पूरी बीजेपी को बैकफुट पर धकेलने के लिए काफी होगी. खासतौर से तब जबकि समूचा विपक्ष और मीडिया योगी के एक एक दिन और एक एक फैसले की बारीक समीक्षा करने में जुटा हुआ है.

ऐसे में अखिलेश के आरोप आदित्यनाथ योगी पर भले ही लग रहे हों लेकिन ये सवाल जनादेश पर भी उठ रहे हैं. शायद अखिलेश अबतक हार को कबूल नहीं कर पा रहे हैं तभी उन्हें जनादेश समझने में दिक्कत हो रही है.

अखिलेश अपने युवा साथी राहुल से सियासत की एक सीख ले सकते हैं. राहुल गांधी हर बार चुनाव के नतीजों के बाद न तो  उन पर सवाल उठाते हैं और न ही जीतने वाली पार्टी में कमियां निकालते हैं.

हार के बावजूद राहुल गांधी ने अपना धैर्य नहीं खोया

राहुल साल 2014 से लगातार जनता के फैसलों का सम्मान करते आए हैं. खास बात ये है कि अखिलेश ने तो सिर्फ यूपी गंवाया है लेकिन राहुल लगातार हारते आए हैं. महाराष्ट्र, हरियाणा, मणिपुर, गोवा, दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड और असम में कांग्रेस की जमीन दरकने के बावजूद राहुल ने धैर्य ही दिखाया है और अपने बयानों में जल्दबाजी नहीं दिखाई.

जबकि अखिलेश नए सीएम के एक सप्ताह होने से पहले ही अपनी बेचैनी से हताशा दिखा रहे हैं. ये वक्त अखिलेश के लिये आत्ममंथन और आत्मअवलोकन का है. अखिलेश के लिये ये वक्त कुनबे की कलह को हमेशा के लिये खत्म कर नए सिरे से सबको जोड़ने का है.

अभी दूसरों के घरों में झांकने का वक्त नहीं बल्कि अपना घर संवारने का समय है. सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुलायम सिंह का न आना और चाचा शिवपाल को न बुलाना साबित करता है कि अखिलेश अभी भी अपनी पुरानी राजनीति की साइकिल पर सवार हैं.

अखिलेश के पास समय कम है चुनौतियां ज्यादा

ये साइकिल उन्हें सीएम हाउस से बाहर ले गई लेकिन वापस लौटा न सकी. अखिलेश को अब मजबूत विपक्ष के तौर पर खड़े होने की जरूरत है ताकि उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं का हौसला बना रह सके. उन्हें अपना आत्मविश्वास बरकरार रखना होगा. उन्होंने कहा भी कि साल 2022 में वो फायरब्रिगेड में गंगा जल भरकर सीएम हाउस की धुलवाई करवाएंगे. इस अतिशयोक्ति को सही साबित करने के लिए अखिलेश अपने नए अवतार के बारे में सोचें क्योंकि अगले चुनाव में सिर्फ मोदी ही नहीं बल्कि अब योगी भी उनके सामने होंगे. ऐसे में अब अखिलेश दूसरों से नाराज न हों क्योंकि ये वक्त अपनों को मनाने का है जो रूठे हुए हैं.