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अखिलेश के ‘वनमैन शो’ में क्या किरदार निभाएंगे परिवार के साथी कलाकार

अखिलेश यादव के वनमैन शो में परिवार के साथी कलाकारों की भूमिका क्या होगी.

Vivek Anand

अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिंहा की जोड़ी ने बॉम्बे टू गोवा, नसीब, काला पत्थर और दोस्ताना जैसी कई यादगार फिल्में दीं.

दोस्ताना में इनदोनों की दोस्ती के भावुक करने वाले अभिनय ने दर्शकों की आंखों में आंसू ला दिए.


लेकिन दोनों सार्वजनिक जीवन में कभी अच्छे दोस्त नहीं रहे. कमाल यही है कि दोनों अपनी व्यक्तिगत खटास के बावजूद पर्दे पर गलबहियां डाले दिखे.

सोचिए कि एक्टिंग करना कितना मुश्किल होता है. फिर चाहे वो सिनेमाई पर्दे पर करना पड़े या राजनीति में.

यूपी की सियासत में समाजवाद का सिक्का फिर से जमाने निकले चाचा-भतीजे के सामने यही मुश्किल आन पड़ी है.

अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की अभिनय क्षमता पर आलोचकों की नजर है. और आज के दिन की रेटिंग ठीकठाक जान पड़ती है.

भारी उठापटक के बावजूद रथयात्रा पर निकले अखिलेश को चाचा शिवपाल का आशीर्वाद मिला है. गड़बड़ उनके समर्थकों ने कर दी. जो उनके अभिनय को ताड़ न पाए. और रैली शुरु होने से पहले ही पुराने झगड़े को याद करके एकदूसरे से उलझ पड़े.

पहले तो यही सस्पेंस बना हुआ था कि अखिलेश की रथयात्रा में शिवपाल आते हैं या नहीं. लेकिन जैसे शत्रुघ्न सिंहा और अमिताभ बच्चन की मजबूरी रही होगी कि उन्हें राज खोसला के इशारे पर नाचना ही होगा. वैसे अखिलेश–शिवपाल की मजबूरी है कि मुलायम के इशारे की लाज रखनी ही होगी. वर्ना हालत तो यूं है कि हम तो डूबेंगे ही सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे.

सवाल है कि जिस तरह से अखिलेश यादव वनमैन शो करने निकल पड़े हैं. उसमें परिवार के साथी कलाकारों की भूमिका क्या होगी. रैली के शुरु होने से पहले ही अखिलेश बोल पड़े-ये सरकार दोबारा लाने का समय है.

लोगों ने साजिश की, हम थोड़ा डगमगाए हैं. लेकिन मुझे खुशी है कि नौजवानों पर. ऐसे युवा आए हैं जो समाजवादी विचारधारा को आगे ले के जाएंगे. लेकिन इस शानदार डायलॉग डिलीवरी को उनके ही समर्थक भांप नहीं पाए. शिवपाल चाचा के समर्थकों से जा भिड़े.— अखिलेश यादव

ये कोई आज ही होना था ऐसा भी नहीं है. राजनीति में अभिनय की गूढ़ बातों को न समझने वाले मूढ़ ऐसी गलतियां आगे भी कर सकते हैं.

जिन्हें रोकने की संजीदा कोशिश न अखिलेश कर पाएंगे न शिवपाल. चुनावों तक इनदोनों की खामोशी का मर्म, समर्थक समझ ही जाएंगे इसे मानना मुश्किल है.

शिवपाल यादव ने रथयात्रा में हिस्सा ले लिया है. अब अखिलेश की बारी है. 5 नवंबर को समाजवादी पार्टी की स्थापना दिवस के मौके पर भारी जलसा हो रहा है. कमान शिवपाल के हाथ में है. अगली बार शिवपाल बोलेंगे और अखिलेश को सुनना होगा.

झगड़े को ढांपने की तमाम कोशिशों पर पलीता लगता रहेगा. अखिलेश की बस एक किलोमीटर जाकर ही टें बोल गई. क्या पता रथ के पहिए में कील किसी अपने ने ही चुभोई हो. पिछले एक महीने से यही सब तो चल रहा है.

मुलायम सिंह यादव ने रथयात्रा को हरी झंडी दिखाई. अखिलेश ने कहा कि नेताजी के साथ प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के कार्यक्रम में आने की मुझे बेहद खुशी है.

उन्होंने कहा कि कल तक लोग बेवजह हवा उड़ा रहे थे कि शिवपाल सिंह यादव ने कार्यक्रम में आने से मना कर दिया है. यानी कल तक भी समाजवादी पार्टी में कुछ ठीक नहीं हुआ था. और जो कल हुआ था वो कल नहीं होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है.

अखिलेश यादव ने 5 नवंबर को समाजवादी पार्टी की स्थापना दिवस में शामिल होने पर रजामंदी जाहिर कर दी है. उस दिन शायद शिवपाल कहें कि उन्हें अखिलेश के आने की खुशी है, नहीं तो हवा तो कुछ और ही उड़ी थी.

इस तरह की खुशी से जनता भी खुश हो जाए, इसकी संभावना कम है. रमेश सिप्पी की फिल्मों की तरह एक्शन से भरपूर, रिश्तों के पेंचोखम वाली इस कहानी का क्लाईमेक्स चुनावों के नतीजों से जाहिर होगा. अगर सीटें न झटक पाए तो कितनी झूमाझटकी होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है.