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अखिलेश के पास पार्टी नहीं है, बीजेपी के पास नेता नहीं है

एक दूसरे के कट्टर विरोधी होने के बावजूद मौजूदा परिदृश्य में अखिलेश और बीजेपी की हालत एक जैसी हो गई है

Manish Kumar

समाजवाद के पुरोधा मुलायम सिंह ने आखिरकार पुत्रमोह छोड़कर अपने बेटे अखिलेश यादव को निकाल बाहर किया. अखिलेश के अलावा उन्होंने अपने चचेरे भाई रामगोपाल यादव को भी 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया.

अखिलेश में ‘अपनों’ से टकराने की हिम्मत पिछले कुछ महीनों से ही आई है. पहले चाचा और अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव से मनभेद हुआ. फिर अपने पिता और संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ हो गए.


चुनाव में जबकि महीने भर से थोड़ा ही ज्यादा समय है. ऐसे में अखिलेश ने अपनों के खिलाफ जाने का रिस्क क्यों लिया. इसे समझने की जरुरत है. साढ़े चार साल से सरकार चला रहे अखिलेश मानते हैं कि चुनाव में जनता विकास को मत देगी.

भले ही मुलायम ने साइकिल चलाकर पार्टी खड़ी की हो. लेकिन समाजवाद के दंगल में अखिलेश के योद्धा बनकर उभरने से सबको ये मैसेज गया कि, उन्होंने जनता के हितों और विकास के लिए अपनी सरकार और अपने रिश्ते को दांव पर लगा दिया. अपनी गढ़ी इस ईमेज ने अखिलेश को हिम्मत और हौसला दिया है.

समाजवादी पार्टी के थिंकटैंक माने जाने वाले रामगोपाल यादव शुरु से अखिलेश के साथ चट्टान की तरह खड़े हैं. अखिलेश को युवा नेताओं और कार्यकर्ताओं का भरपूर साथ मिल रहा है.

चुनौतियों की शुरुआत

अखिलेश जानते हैं कि आने वाला वक्त कठिनाईयों से भरा होगा. चुनौतियों की शुरुआत हो चुकी है.. पार्टी सिंबल के लिए लड़ाई लड़ने से लेकर, कार्यकर्ताओं में उत्साह बनाए रखने और अपने सियासी विरोधियों से फ्रंट पर आकर उन्हें लोहा लेना होगा.

विधानसभा चुनाव में अगर वो विजयी बनकर उभरते हैं. तो देश में एक नए युवा नेता का उदय होगा जो पहले वालों से अलग होगा. वहीं, हार और नाकामी उनके राजनीतिक भविष्य को चौपट कर देगी. क्योंकि तब वो न घर के रहेंगे और न घाट के.

यूपी में अखिलेश के पास पार्टी नहीं है तो, बीजेपी के पास कोई नेता नहीं है. कहने को तो यहां पार्टी में नेताओं की भरमार है. केशव प्रसाद मौर्य, लालजी टंडन, आदित्य नाथ, कलराज मिश्रा, विनय कटियार हैं. लेकिन किसी में बीजेपी को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने की ताकत नहीं.

यूपी में बीजेपी के अंतिम कद्दावर नेता कल्याण सिंह थे. जो अब पार्टी के लिए काम के नहीं रहे. ऐसे में बीजेपी के पास अपने सबसे बड़े चेहरे नरेंद्र मोदी का सहारा लेने के सिवा कोई विकल्प नहीं. समाजवादी पार्टी के अंदर मचे घमासान से बीजेपी खुश तो है लेकिन यूपी में अपना कोई नेता नहीं होने से असमंजस की स्थिति में है.

कहा जा सकता है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी होने के बावजूद अखिलेश और बीजेपी की हालत एक जैसी हो गई है.

शुक्रवार को लखनऊ में दिन भर चले हाई वोल्टेज ड्रामा के बाद अखिलेश को एक ही गाना याद आ रहा होगा... ‘बापू, सेहत के लिए तू तो हानिकारक है’.