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मुलायम-शिवपाल को अखिलेश में ‘रब’ दिखता है !

मुलायम से मिलने उनके घर पहुंचे अखिलेश अपनी दोनों बेटियों को भी साथ ले गए

Kinshuk Praval

साइकिल पर छिड़ी जंग की रफ्तार कम होने के आसार नहीं लग रहे. मुलायम सिंह के निवास पर अखिलेश यादव आखिरी कोशिश के भरोसे पहुंचे.

डेढ़ घंटे से ज्यादा देर तक दोनों की मुलाकात हुई . लेकिन किसी ठोस नतीजे पर न पहुंचने की वजह से न कोई ऐलान हुआ और न ही शिकायतों का ‘एक्शन रीप्ले’.


अखिलेश चुपचाप मुलायम निवास से निकल भी गए और अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दे गए कि जल्द ही चुनावी सभाओं में मुलाकात होगी.

पारिवारिक कलह से उठा विवाद पार्टी के गलियारे से गुजरता हुआ देश के दरवाजे पर दस्तक दे गया.

माहौल को कुछ हल्का करने के लिये मुलायम के घर अखिलेश अपनी दोनों बेटियों को भी साथ ले गए. शायद दादा जी पोतियों को देखकर नरम पड़ जाएं. मुलायम नरम जरुर पड़े  भी लेकिन अखिलेश को लेकर ही जबकि रामगोपाल पर उनका क्रोध ठंडा नहीं पड़ सका है.

वहीं अखिलेश भी रामगोपाल पर कोई कार्रवाई न होने का आश्वासन हासिल नहीं कर सके. इन सबके बीच मुलायम ने ऐलान किया कि यूपी में चुनाव जीतने पर अखिलेश ही दोबारा सीएम बनेंगे.

सपा के टूटने का कोई सवाल ही नहीं है: मुलायम सिंह यादव

साथ ही मुलायम का दावा है कि सपा के टूटने का कोई सवाल ही नहीं है. तो क्या माना जाए कि इतनी नूराकुश्ती और रस्साकशी के बाद अब समाजवादी पार्टी की ‘सियासी हांडी’ में नया क्या पक रहा है ?

क्या एक बार फिर रामगोपाल ही पार्टी और परिवार से बाहर होंगे या फिर अखिलेश अपनी साइकिल पर उन्हें बिठा कर यूपी प्रचार में जुट जाएंगे ?

हालांकि मुलायम के अखिलेश को लेकर सीएम वाले बयान को सुलह का संकेत माना जा रहा है. लेकिन सुलह का फॉर्मूला इस बार क्या तय हुआ ये सस्पेंस अभी भी बाकी है.

हालांकि जो इशारे दिखाई दे रहे हैं उनसे साफ है कि मुलायम खेमे की तरफ से अखिलेश पर सिंबल का दावा वापस लेने का दबाव है.साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मुलायम के बने रहने की शर्त भी. इसके ऐवज में अखिलेश के लिये सीएम की गद्दी सामने रखी गई है. लेकिन रामगोपाल की माफी को लेकर कोई संकेत नहीं हैं.

फिलहाल चुनाव आयोग के दफ्तर में 25 साल पुरानी साइकिल खड़ी हुई है जिस पर अखिलेश-मुलायम दावा ठोंक रहे हैं. 13 जनवरी को चुनाव आयोग में दोनों गुटों की पेशी है.

साइकिल के सिंबल पर दावेदारी के लिये शिवपाल और अमर सिंह के साथ मुलायम सिंह चुनाव आयोग जा पहुंचे हैं. सोमवार रात को मीडिया से बातचीत में मुलायम ये जरुर बोले कि चुनाव के बाद अखिलेश ही देश के अगले सीएम होंगे और इसमें कन्फ्यूजन नहीं है.

इससे ये एकबारगी लगा कि अखिलेश और रामगोपाल के डेढ़ लाख दस्तावजों के भार को देखकर मुलायम वर्तमान हालात की हैसियत का अंदाजा लगा चुके हैं और इसलिये उन्होंने सपा की टूट को खारिज करते हुए अखिलेश तक नया संदेश पहुंचाया.

लेकिन मंगलवार की मुलाकात पर भी पुरानी ही शर्तों का पहरा दिखा.मुलायम के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहने, इलेक्शन कमीशन से सिंबल की दावेदारी वापस लेने और रामगोपाल- अमर सिंह को पार्टी से बाहर करने पर सहमति नहीं बन सकी

सपा को बिखरता देख बदले शिवपाल के सुर.

टूट की कगार पर फिसलती पार्टी को देखते हुए अब चाचा शिवपाल के भी सुर बदले. शिवपाल भी कह रहे हैं कि अखिलेश ही सपा के मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि नेताजी ही  राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे और जो नेताजी चाहेंगे वही पार्टी में होगा.

लेकिन राजनीति में ऊंट की करवट ऊंट भी नहीं जानता है. अगर समाजवादी पार्टी में दो फाड़ हो जाते हैं तो ऐसी भी अटकलें तेज हैं कि मुलायम सिंह की सपा के लिये आजम खान को सीएम उम्मीदवार बनाया जा सकता है.

मुलायम ये बखूबी जानते हैं कि पुराने यादव आज भी उनके नाम की वजह से उनकी ही पार्टी का साथ देंगे लेकिन अगर समाजवादी पार्टी टूटती है तो मुस्लिम वोट बैंक छिटक कर बीएसपी और कांग्रेस की तरफ न चला जाए इसके लिये आजम खान उनके ट्रंप कार्ड हो सकते हैं. आजम खान अभी हाल ही में पिता-पुत्र के बीच सुलह कराने की वजह से सुर्खियों में आए हुए हैं.

आजम खान को सपा के भीतर अमर सिंह का खुला और घोर विरोधी माना जाता है. इसके बावजूद आजम खान के नाम को लेकर राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है. लेकिन फिलहाल सबको चुनाव आयोग के फैसले का भी इंतजार है. क्योंकि एक पहलू ये भी है कि कहीं साइकिल के पहियों पर परमानेंट ब्रेक न लग जाए.

दरअसल यदि चुनाव आयोग यह तय नहीं कर पाता है कि संगठन में किस पक्ष के पास बहुमत है तो समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल पर विधानसभा चुनाव से पहले रोक लग सकती है. जिस पक्ष के पास सांसदों, विधायकों, पार्षदों और प्रतिनिधियों का 50 प्रतिशत बहुमत होगा उसे फायदा मिल सकता है.

हालांकि अखिलेश का दावा है कि उनके पास विधायकों का 90 प्रतिशत बहुमत है. शायद यही शक्तिपरीक्षण ही कभी पहलावन रहे नेताजी को सियासी अखाड़े में आर-पार की लड़ाई के लिये लंगोट बांधने से रोक रहा है.

क्योंकि सामने कोई और नहीं अपना ही अखिलेश है और अब उसी अखिलेश में मुलायम और शिवपाल को यूपी का सीएम दिखाई दे रहा है.