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वाराणसी ग्राउंड रिपोर्ट: 'अब अइहें तब पूछब की पांच साल कहा रहला साहब'

अजगरा विधानसभा की जनता सवाल लिए नेताओं का इंतजार कर रही है

Ranjeet Rai

वाराणसी जिले की आठ विधानसभा सीटों में से एक है अजगरा सुरक्षित सीट. ये विधानसभा क्षेत्र जिले के अंतिम छोर पर पड़ता है. करीब पांच लाख की आबादी वाले इलाके में गोमती नदी वाराणसी और जौनपुर को जोड़ती है.

इस विधानसभा क्षेत्र की पूरी आबादी लगभग ग्रामीण परिवेश की है. इस विधानसभा क्षेत्र में विकास की सच्चाई जानने के लिए मैं वहां पहुंचा.


मेरी यात्रा प्रारंभ हुई कैंट रोडवेज स्टेशन से पांडेपुर के लिए सिटी बस पकड़ने से. बनारस को जानने वाले ये जानते हैं कि यहां सड़कों पर जाम बेहद आम है. जैसे-तैसे जाम को झेलते पांडेपुर पहुंचा फिर यहां से दानगंज के लिए ऑटो लिया जिसमें कुछ युवा और छात्र सफर कर रहे थे.

क्षेत्र के बारे में पूछने पर पता चला कि विकास अब भी यहां के लोगों के लिए सिर्फ सुनने की बात है. अचंभा भी हुआ कि शहर की चकाचौंध की परछाई भी नहीं पड़ी. तभी एक युवा बोला की भैया विकासवादी सोच वाला कोई नेता यहां जीते तब बात बने.

विकास से कोसों दूर है ये इलाका

रास्ते में मुझे जो तस्वीर दिखी, वह शायद वर्तमान विधायक के समर्थकों को नागवार लग सकती है. पर विकास से कोसों दूर टूटी सड़कें, पानी ढोती महिलाएं, लिंक मार्गों का जर्जर हाल, सड़क पर हिचकोले खाते वाहन, ये सारीं तस्वीर साफ-साफ क्षेत्र के दर्द को बयान कर रही थीं.

आखिरकार मैं उस गांव पहुच गया जिसके नाम पर अजगरा विधानसभा का नाम पड़ा हैं. चोलापुर ब्लॉक में स्थित अजगरा गांव आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा गांव है. गांव में जहां-तहां समस्या दिखीं जैसे– विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं की कमी, गिने चुने सरकारी हैंडपंप, वीरान पड़ा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र.

बीएचयू में पढ़ने वाले पंकज कुमार के ही रहने वाले हैं. उन्होंने बताया की पिछले 5 वर्षो में गांव के विकास के लिए विधायक निधि से कोई कार्य नहीं हुआ. गांव के विकास को लगातार अनदेखा किया गया है. फिर यहां से अगले पड़ाव पर मैं भेटौली पहुंचा.

भेटौली की मलिन बस्तियां भारत स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाती हुई दिखीं. यहां दुर्गंध और गंदगी की वजह से हर घर में कोई न कोई बीमार रहता हैं. हैंडपंप लगे जरूर हैं पर साफ पानी की दरकार है. शौच मुक्त गांव मुहिम को ठेंगा दिखाता यह गांव शायद विकासवादी चेहरों को चिढ़ा रहा है.

मैंने लोगों से पूछा की विधायक कौन हैं आपके? इस सवाल के बड़े दिलचस्प जवाब आए. अधिकांश लोगों को अपने विधायक का नाम तक पता नहीं था. वहीं कुछ लोगों ने तो मायावती को अपना विधायक बता दिया.

लोगों ने कहा की ‘साहब अब वोट देवे के मन नाई करेला. वोट देहला से कुछ होई जाए का? कौन जितले पर हमहन के कुछ दे दिहें. बस वोट लेबे के होई तब सब हाथ जोड़िहन, अब अइहें तब पुछब की पांच साल कहा रहला साहब?’

मैंने पूछा वोट किसे देते हैं आप लोग? उन लोगों ने कहा – ‘पता नाहीं, प्रधान जेके कह देहलन…ओही के वोट देहिला. बस इ बतावेलन कि फलां निशान पर बटन दबावे के ह.’

महदा गांव के प्रधान रामजी प्रसाद एवं सिंहपुर गांव के अवधेश यादव ने बताया कि चुनाव जीतने के बाद से अब तक विधायक गांव नहीं आए. गांव में जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है, जिससे पानी की किल्लत हो रही हैं और दूर-दराज से पानी लाना पड़ रहा हैं. डिहवा गांव की लोगों से बात करने पर पता चला की वो लोग आजतक अपने विधायक को देखे ही नहीं हैं तो विकास कार्य कहां से होगा?

क्या कहते हैं विधायक

हरहुआ चौराहा पर चाय की दुकान पर चाय की चुस्की लेते हुए कुछ पढ़े लिखे युवाओं से बात करने के दौरान पता चला की वर्तमान विधायक त्रिभुवन राम ने कुछ कार्य विधायक निधि से कराए आवश्य हैं  पर शिक्षा रोजगार और चिकित्सा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है. बीमारी के इलाज के लिए बीएचयू आना पड़ता है जो जनता के लिए दूर पड़ता हैं. तो वहीं तकनीकी शिक्षा का इस क्षेत्र में कोई केंद्र नहीं हैं, जिससे युवा रोजगार के अवसर नहीं भुना पा रहे हैं.

विधानसभा चुनाव में अजगरा क्षेत्र में बसपा, कांग्रेस-एसपी, बीजेपी-भासपा(भारतीय समाज पार्टी) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. बीएसपी ने त्रिभुवन राम, सपा ने लालजी सोनकर और बीजेपी भासपा ने कैलाशनाथ सोनकर को अपना उम्मीदवार बनाया है. क्षेत्र में एक लाख बीस हजार के करीब अनुसूचित जाति के वोटर हैं जो किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं.