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कांग्रेस-AAP गठबंधन पर अजय माकन-'विपक्षी मोर्चे में अवसरवादियों के लिए जगह नहीं'

अजय माकन वामपंथी-उदारवादी बुद्धिजीवियों और आम आदमी पार्टी द्वारा गढ़ी जा रही अपनी खराब छवि से बेहद आहत और दुखी हैं

Sanjay Singh

अजय माकन को साल 2014 तक कांग्रेस के सबसे होनहार और उभरते हुए युवा नेताओं में शुमार किया जाता था. 54 साल के माकन तीन बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं. वह महज 29 साल की उम्र में दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष बने थे. यानी देश में सबसे कम उम्र के विधानसभा अध्यक्ष होने का रिकॉर्ड माकन के नाम है. इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों में बतौर राज्य मंत्री काम करने के बाद वह यूपीए 2 सरकार में सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री भी बने. यूपीए 2 में अजय माकन के पास आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय था.

अजय माकन पहले की तरह ही आज भी कांग्रेस में खासी अहमियत रखते हैं. फिलहाल वह कांग्रेस की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष हैं. हालांकि यह बात अलग है कि मौजूदा वक्त में दिल्ली में कांग्रेस की हालत बेहद पतली है. बीते कुछ सालों में राजधानी में पार्टी की लोकप्रियता और जनाधार काफी घट चुका है. संसद में दिल्ली से कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि नहीं है. दिल्ली विधानसभा में भी कांग्रेस के विधायकों की संख्या शून्य है. वहीं दिल्ली की तीनों नगर पालिकाओं में कांग्रेसी पार्षद मामूली तादाद में हैं. ऐसी परिस्थितियों में बाहरी लोगों के साथ-साथ खुद कांग्रेस के ज्यादातर नेता माकन के विचारों और सियासी पैंतरों से शायद ही सहमत होंगे.


लिहाजा पार्टी को पुनर्जीवित करने, उसमें नई जान फूंकने के लिए माकन के सामने कठिन चुनौती मुंह बाए खड़ी है. कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने और पार्टी को गुटबाजी से बचाए रखने के लिए भी माकन को कड़ी मशक्कत की दरकार है. लेकिन माकन एक फाइटर हैं. वह चुनौतियों से निपटना बखूबी जानते हैं. चुनौतियों को चित करने की कला माकन ने 80 के दशक में छात्र राजनीति के दौरान सीखी थी. तब उन्होंने एनएसयूआई के उम्मीदवार के तौर पर दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में शानदार जीत दर्ज की थी.

क्या कहता है माकन का सर्वे?

हाल ही में, माकन ने कांग्रेस के प्रति जनता के मूड और राय को समझने के लिए एक सर्वे कराया था. जैसी कि सबको उम्मीद थी, वैसा ही हुआ. कांग्रेस के ताजा इन हाउस सर्वे ने माकन को निराश नहीं किया. इस सर्वे के नतीजे बताते हैं कि, अगर अभी आम चुनाव आयोजित करा दिए जाएं, तो दिल्ली की कुल सात लोकसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस जीत सकती है. जबकि बीजेपी और आम आदमी पार्टी को महज एक-एक सीट पर ही संतोष करना पड़ेगा. सर्वे के मुताबिक, अगर माकन अपनी पुरानी सीट यानी नई दिल्ली सीट से लोकसभा चुनाव लड़ें तो वह रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल कर सकते हैं.

कांग्रेस के सर्वे का एक अन्य निष्कर्ष यह भी है कि दिल्ली में बड़ी तादाद में मतदाता (39.8 फीसदी) राहुल गांधी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. जबकि राहुल की तुलना में नरेंद्र मोदी को सिर्फ 35.3 फीसदी लोग ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहने की कामना कर रहे हैं. हालांकि, सर्वे से यह भी सामने आया है कि, 25 साल से कम उम्र के लोगों के बीच मोदी सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं. दिल्ली के इस नवयुवा वर्ग के 49.1 फीसदी लोग मोदी को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. जबकि मोदी के बनिस्बत राहुल गांधी को सिर्फ 28.4 फीसदी नवयुवा ही प्रधानमंत्री बनते देखने की तमन्ना रखते हैं.

अजय माकन ने की फ़र्स्टपोस्ट से खास बातचीत

कांग्रेस के इन हाउस सर्वे के नतीजे, राहुल गांधी के मुकाबले युवाओं के बीच मोदी की दोगुनी लोकप्रियता, पार्टी की चुनौतियां और विपक्षी दलों के गठबंधन को लेकर फ़र्स्टपोस्ट ने अजय माकन के सामने कई अहम सवाल उठाए. जिनके उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट के कार्यक्रम 'लेट्स टॉक' में सिलसिलेवार तरीके से जवाब दिए. माकन ने कहा: 'देखिए, 25 साल से कम उम्र के युवाओं के बीच मोदी की सबसे ज्यादा लोकप्रियता हम लोगों के लिए चिंता का विषय है. लेकिन सर्वे के निष्कर्षों के आधार पर हम अपनी रणनीति बनाएंगे, जनता तक पहुंच बनाने के लिए कार्यक्रम तैयार करेंगे. और फिर उसी के मुताबिक मुद्दों को चुनेंगे. 25 साल से कम उम्र के लोगों ने अबतक सिर्फ एक या दो बार ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया होगा. इनमें से ज्यादातर लोग छात्र हैं. ऐसा मुमकिन है कि वे मोदी में अपना भविष्य देख रहे हों, जो गलत है. दिल्ली के इस नवयुवा वर्ग को हमें मनाना और समझाना पड़ेगा. लेकिन अच्छी बात यह है कि 25 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का हमें भारी समर्थन मिला है.'

दिल्ली के अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत को लेकर माकन पूरी तरह से आशावादी हैं. माकन का यह भी मानना है कि दिल्ली में कांग्रेस के कमबैक के बाद 80 साल की शीला दीक्षित फिर से मुख्यमंत्री बन सकती हैं. ध्यान रखने वाली बात यह है कि, साल 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के वक्त शीला दीक्षित की उम्र 82 साल हो जाएगी. साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने शीला का नाम पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उछाला था, लेकिन बाद में उसे वापस ले लिया गया था.

वामपंथी-उदारवादी बुद्धिजीवियों और आम आदमी पार्टी से दुखी

फिलहाल अजय माकन वामपंथी-उदारवादी बुद्धिजीवियों और आम आदमी पार्टी द्वारा गढ़ी जा रही अपनी खराब छवि से बेहद आहत और दुखी हैं. माकन को लगता है कि AAP के ज्यादातर नेता और कई वामपंथी-उदारवादी बुद्धिजीवी उन्हें विपक्षी गठबंधन (दिल्ली में कांग्रेस-AAP का गठजोड़) के रास्ते की बाधा के तौर पर पेश कर रहे हैं.

माकन का कहना है कि: 'मैं वामपंथी उदारवादियों से एक सवाल पूछना चाहता हूं कि पिछले चार में आम आदमी पार्टी ने मोदी सरकार के खिलाफ आवाज कब बुलंद की? कब उन्होंने सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया? दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सिर्फ उपराज्यपाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए, लेकिन किसी भी अन्य मुद्दे पर उसने बीजेपी के खिलाफ आवाज नहीं उठाई. AAP ने नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे पर अपनी जुबान बंद रखी, राफेल डील, अमित शाह के बेटे के संपत्ति में रातों-रात हुए भारी इजाफे, पीयूष गोयल के गोलमाल समेत भष्टाचार के कई मामलों में भी आंदोलन नहीं किया. दलितों पर हो रहे अत्याचार पर भी AAP मोदी सरकार के खिलाफ सड़कों पर नहीं उतरी. पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में लगातार हो रहे इजाफे पर भी AAP चुप्पी साधे रही. ऐसे में उसपर कैसे विश्वास किया जा सकता है?

माकन ने कहा, 'मैं वामपंथी उदारवादियों को समझाना चाहता हूं कि आप लोग धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकसाथ लाना चाहते हैं, लिहाजा अवसरवादियों से दूर रहें. क्या आप उन लोगों को सेक्युलर कहते हैं जिन्होंने बाबा रामदेव को गले लगाया, जिन्होंने आरएसएस के साथ मिलकर कांग्रेस को बदनाम किया और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने में मदद की. AAP ने गोवा और पंजाब में कांग्रेस को हरवाने के लिए अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. कर्नाटक और गुजरात में भी AAP ने अपने उम्मीदवार उतारकर कांग्रेस के वोट काटे. ऐसी पार्टी सेक्युलर नहीं हो सकती है. आम आदमी पार्टी की कथनी और करनी के फर्क को दिल्ली में हर कोई जानता है. AAP के नेता दूसरों को तो उपदेश देते हैं जबकि खुद मनमानी करते हैं. मुझे विश्वास है कि 99 फीसदी नहीं बल्कि 100 फीसदी कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी के साथ किसी भी तरह के समझौते या गठजोड़ के खिलाफ हैं. मरे हुए सांप को हम अपने गले नही लटकाना चाहते.'