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AIADMK विलय: पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी में कैसे हुआ समझौता

दोनों धड़ों में विलय हो चुका है, पन्नीरसेल्वम एआईएडीएमके के संयोजक और पलानीस्वामी के सह-संयोजक बनाए गए है

Pratima Sharma

तमिलनाडु में एआईएडीएमके के दोनों धड़ों का आखिरकार विलय हो गया. जयललिता की मौत के बाद जब पार्टी टूटी थी तो यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि यह पार्टी दोबारा एक कब होगी. ऐसा क्या हुआ कि ओ पन्नीरसेल्वम और ई पलानीस्वामी को यह लगने लगा कि उनके अलग-अलग होने से बात नहीं बनेगी.

वरिष्ठ पत्रकार शेखर अय्यर का कहना है, 'पार्टी के विलय की तीन अहम वजहें हैं. पहला यह कि चुनाव आयोग ने एआईएडीएमके का चुनाव चिन्ह (दो पत्तों) को जब्त कर लिया था. इसके साथ ही अप्रैल 2017 से ही पार्टी के कई नेताओं पर सीबीआई के छापे पड़े, जिसकी वजह से उनकी मुश्किलें बढ़ गईं थीं.'


एआईएडीएमके के नेता और रेत कारोबारी शेखर रेड्डी की गिरफ्तारी के बाद पार्टी के एमएलए में अफरातफरी मच गई. छापों और गिरफ्तारी से बचने के लिए मंत्रियों का दल कई बार दिल्ली आया और केंद्र सरकार से मिला. एआईएडीएमके ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में भी केंद्र सरकार का समर्थन किया था.

दूसरी वजह यह है कि जयललिता और नरेंद्र मोदी के रिश्ते काफी अच्छे थे. एक समय जब केंद्र की कांग्रेस सरकार मोदी को परेशान कर रही थी, उस वक्त जयललिता और नरेंद्र मोदी के रिश्ते काफी अच्छे थे. पन्नीरसेल्वम और पलानीस्वामी धड़ों के एमएलए कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. पीएम ने दोनों धड़ों को समझाया कि जनता ने उन्हें पांच साल के लिए वोट दिया था. ऐसे में उनकी गलती से वक्त से पहले चुनाव हो सकता है और इसका फायदा डीएमके उठा सकती है. डीएमके हमेशा कांग्रेस की करीबी रही है. हाल ही में सोनिया गांधी ने डीएमके प्रमुख एम के स्टैलिन के जन्मदिन पर गई थीं.

पन्नीरसेल्वम और पलानीस्वामी की तीसरी सबसे बड़ी दिक्कत दिनाकरन है. दिनाकरन मनी पावर से विधायकों को अपने पाले में रखता है. दिनाकरन का दावा था कि उनके साथ 30 विधायक हैं. कुछ दिनों पहले ही चुनाव आयोग ने दिनाकरन के खिलाफ जांच शुरू की थी लेकिन चार्जशीट में उनका नाम नहीं आया. दिनाकरन को आसानी से बेल मिल गई.

पीएम के समझाने के बाद दोनों धड़ों के बीच विलय की बातचीत शुरू हुई. लेकिन बातचीत इस फॉर्मूले पर अटक रही थी कि विलय के बाद किसको क्या मिलेगा. हालांकि अब दोनों धड़ों में विलय हो चुका है. पन्नीरसेल्वम एआईएडीएमके के संयोजक और पलानीस्वामी के सह-संयोजक बनाए गए है. पन्नीरसेल्वम ने डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ लिया है. पलानीस्वामी सीएम बने हुए है. इसके अलावा भी कई फॉर्मूले पर चर्चा हुई लेकिन बात नहीं बन पाई.

किन मुद्दों पर था मतभेद 

विलय से पहले पन्नीनसेल्वम ने मांग रखी थी कि जयललिता की मौत की सीबीआई जांच कराई जाए. पलानीस्वामी ने यह मांग मान ली. अब एक रिटायर्ड जज इस मामले की जांच कर रहे हैं.

पन्नीरसेल्वम की दूसरी मांग थी कि जयललिता के पोएस गार्डन वाले घर को मेमोरियल बनाया जाए. पलानीस्वामी ने यह मांग भी मान ली. 19 अगस्त को दोनों जयललिता के स्मारक पर विलय का ऐलान करने वाले थे, लेकिन तब उन्होंने यह फैसला नहीं लिया.

पन्नीरसेल्वम के समर्थक भी अब साथ छोड़ रहे थे. इनके कई एमएलए पलानीस्वामी के साथ आ गए थे. दूसरी तरफ दिनाकरन का खतरा बढ़ रहा था. मनी पावर की वजह से ज्यादातर एमएलए उसके पाले में थे. इसलिए दोनों धड़ों के पास तुरंत विलय करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

केंद्र सरकार को फायदा

राज्यसभा में एनडीए के नंबर कम हैं. लिहाजा केंद्र सरकार चाहती है कि एआईएडीएमके के दोनों धड़े एकजुट होकर रहें और इनके मतभेदों का फायदा डीएमके और कांग्रेस न हो. राज्यसभा में एआईएडीएमके के 9 सदस्य हैं. किसी अहम फैसला लेने के दौरान राज्य सभा के नंबर की बहुत अहमियत होती है.