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कपिल मिश्रा के ‘द ग्रेट पॉलिटिकल शो’ से बंद हुए केजरीवाल के यू-टर्न

सवाल उठने लाजिमी हैं कि मंत्री पद छिनने के बाद ही अचानक कपिल मिश्रा के भीतर का ‘केजरीवाल’ कैसे जागा?

Kinshuk Praval

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली बंपर जीत के बाद अरविंद केजरीवाल ने शपथ लेते समय कहा था कि ‘कोई रिश्वत मांगे तो मना मत करना सेटिंग कर लेना. बाद में उसे हम देख लेंगे’. लेकिन पिछले तीन दिन में जिस तरह से सेटिंग को लेकर आम आदमी पार्टी में भूचाल आया है उससे केजरीवाल का फॉर्मूला ही उनके गले की फांस बन गया है.

दो करोड़ की रिश्वत का आरोप लगाने वाले पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर नया आरोप लगाया है कि उन्होंने अपने साढ़ू के लिए 7 एकड़ जमीन की डील की. कपिल मिश्रा ने राजनीति का वही रास्ता अपनाया जिस पर चल कर केजरीवाल शिखर तक पहुंचे.


केजरीवाल ने जब आम आदमी पार्टी बनाई थी तब उन्होंने भी सबसे पहले तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित पर कॉमनवेल्थ गेम्स में घोटाले का आरोप लगाया था. साथ ही लैंड डील को लेकर रॉबर्ट वाड्रा पर संगीन आरोप लगाए थे. लेकिन वक्त का फेर देखिये कि अब उनके ही पूर्व मंत्री ने लैंड डील का आरोप लगाया है.

हालांकि कपिल मिश्रा की टाइमिंग गड़बड़ा गई. आरोप से पहले की सुबह अरविंद केजरीवाल के साढ़ू का निधन हो गया. जिसके बाद लगे आरोपों का जवाब देने खुद डिप्टी सीएम मनीश सिसोदिया बीच पीएसी की बैठक से बाहर निकले और उन्होंने आरोपों पर इंसानियत की दुहाई दी.

डील के दंगल में केजरीवाल को पटखनी देने के लिए दांव कपिल ने खेला तो उसके बाद अब आप के नेता केजरीवाल की ईमानदारी की याद दिला रहे हैं. लेकिन ये मामला इस बार इसलिए गंभीर है क्योंकि कपिल मिश्रा पिछले 12 साल से अरविंद केजरीवाल के साथ रहे हैं.

इंडिया अगेंस्ट करप्शन के संस्थापक सदस्य और अन्ना आंदोलन में टीम अन्ना के महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक कपिल मिश्रा के आरोपों को सिर्फ बीजेपी का एजेंट कह कर खारिज नहीं किया जा सकता है.

केजरीवाल ने क्यों साध रखी है चुप्पी?

अब तक आम आदमी पार्टी के विधायकों-मंत्रियों पर तमाम आरोप लगे थे. लेकिन पहली बार अरविंद केजरीवाल अपने ही चक्रव्यूह में फंस गए हैं. इतने गंभीर आरोप लगने के 24 घंटे बाद भी केजरीवाल की चुप्पी बरकरार है. जबकि उनकी स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स को देखें तो सवाल उठता है कि आरोप लगाने वाले केजरीवाल अपने ऊपर लगे आरोप पर सामने क्यों नहीं आ रहे.

बात सिर्फ आरोपों की ही नहीं बल्कि कपिल मिश्रा ने केजरीवाल की परेशानी यह कह कर बढ़ा दी है कि वो गवाह भी बनने को तैयार हैं.

सवाल उठने लाजिमी हैं कि मंत्री पद छिनने के बाद ही अचानक कपिल मिश्रा के भीतर का ‘केजरीवाल’ कैसे जागा?

शुंगलु कमेटी की रिपोर्ट और विज्ञापन विवाद से साख पर आंच

शुंगलु कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले अगर ये एपिसोड हुआ होता तो इसे राजनीतिक आरोप बता कर खारिज किया जा सकता था.

अगर 97 करोड़ के विज्ञापन विवाद का मामला नहीं होता तो कपिल के आरोपों पर इतना शोर नहीं होता. क्योंकि आम आदमी पार्टी में साफ सुथरी छवि वाले लोगों ने पार्टी से बाहर जाने के बाद ही आप पर भ्रष्टाचार और हिटलरशाही के आरोप लगाए हैं.

कपिल मिश्रा भी उसी कतार में खड़े दिखाई देते. लेकिन यहां कहानी दूसरी हुई. आरोप लगाने के बाद ही कपिल मिश्रा को आप की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित किया गया है.

सत्ता की अंदरूनी कलह का ही नतीजा रहा कि कपिल मिश्रा बलि का बकरा बने. लेकिन वो जिस विश्वास के साथ कुमार विश्वास के साथ थे वही टूटने के बाद उनकी असहज स्थिति उन्हें ‘घायल शेर’ बना गई.

कपिल मिश्रा जानते हैं कि उनके पास यहां से खोने के लिए कुछ नहीं है. अगर वो हिटविकेट नहीं हुए तो बीजेपी और कांग्रेस के दरवाजे उनके लिए खुले हैं. लेकिन उन्होंने जो जोर का झटका जोर से आम आदमी पार्टी को दिया उससे पार्टी के भीतर भूचाल अब संभाले नहीं संभलेगा.

जो बोया था अब वही काटने का वक्त

अब अरविंद केजरीवाल का पार्टी के भीतर हर उस चेहरे पर शक गहराएगा जिसे वो संदिग्ध नजरों से देखा करते थे. हर सदस्य,नेता, विधायक और मंत्री में केजरीवाल को कपिल मिश्रा का अक्स दिखाई दे सकता है. इसकी वजह खुद केजरीवाल ही हैं.

उन्होंने पार्टी की जीत के लिए खुद को क्रेडिट दिया और एकतरफा फैसलों से अपने शुरूआती साथियों को बारी बारी से बाहर करते चले गए.

प्रशांत भूषण,योगेंद्र यादव और शाजिया इल्मी को जिस तरह पार्टी से बाहर निकाला गया उसी दिन से ही पतन का काउन्टडाऊन शुरू हो चुका था.

कहते हैं कि लोहा लोहे को काटता है. जिस करप्शन के खिलाफ जंग ने केजरीवाल को दिल्ली का नायक बनाया. आज केजरीवाल उसी करप्शन की आंच में झुलसे दिखाई दे रहे हैं.

केजरीवाल नहीं देंगे इस्तीफा

केजरीवाल के शब्द मौन हैं और पार्टी की भाषा भटकी हुई दिखाई दे रही है. केजरीवाल की ईमानदारी पर सवाल उठने का मतलब ही आम आदमी पार्टी की साख पर बट्टा है. अब खुद अन्ना हजारे कह रहे हैं कि केजरीवाल को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.

लेकिन केजरीवाल इस्तीफा नहीं देंगे. वो राजनीति के सारे दांव-पेंच सीख चुके हैं. वो जानते हैं कि आरोपों के जवाब कैसे दिए जाते हैं क्योंकि उन्हें भी उनके आरोपों के जवाब अलग अलग अंदाज में मिले हैं.

केजरीवाल भष्टाचार के खिलाफ बनी अपनी इमेज को भुनाने के लिए कोई भी स्टंट कर सकते हैं. लेकिन अब जिस तरह से वो घिर चुके हैं उससे आम आदमी का भरोसा उनकी बातों पर शायद ही हो.

केजरीवाल इस मंथन में होंगे कि या तो वो इस्तीफा दे कर सारे आरोपों की बयारों को पलट दें क्योंकि इससे बेहतरीन पलटवार नहीं हो सकता. या फिर वो ये सोचेंगे कि पद पर रह कर ही इस तूफान का सामना करें क्योंकि पद छोड़ने से पार्टी पर उनकी पकड़ कहीं ढीली न हो जाए.

लेकिन असली दिक्कत तब शुरू होगी जब एंटी करप्शन ब्यूरो और सीबीआई के दायरे में जांच आएगी क्योंकि वहां कपिल मिश्रा नाम का एक गवाह केजरीवाल का इंतजार कर रहा होगा.