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नोटबंदी: मनमोहन एक चतुर राजनेता

मनमोहन नोटबंदी के तात्‍कालिक और दीर्घकालिक परिणामों का विश्‍लेषण कर सकते थे.

Devparna Acharya

संसद में गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दिए जोरदार भाषण ने न केवल तमाम किस्‍म के लोगों का दिल जीत लिया, बल्कि उनके आलोचकों को बचकानी दलीलें अपनाने पर मजबूर कर दिया.

यह संबोधन अब तक गुजरे संसद के शीतकालीन सत्र में सबसे प्रभावशाली भाषणों में एक रहा. मनमोहन ने कहा, 'प्रधानमंत्री दलील दे रहे हैं कि काले धन पर लगाम कसने, जाली नोटों के प्रसार को रोकने और आतंकी गतिविधियों को मिलने वाले वित्‍तपोषण को नियंत्रित करने का यह तरीका है. मैं इन उद्देश्‍यों से असहमत नहीं हूं, लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि नोटबंदी की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर कुप्रबंधन किया गया है, जिसको लेकर समूचे देश में कोई दो राय नहीं है.'


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की रात जब 500 और 1000 के नोटों को बंद करने का ऐलान किया, तब से एक आम भारतीय का जीना दुश्‍वार हो गया है. नेताओं पर हालांकि इसकी ज्‍यादा मार पड़ी है. अब बहस के लिए एक बिल्कुल नया मुद्दा आ चुका था. विपक्ष को संसदीय कार्रवाई बाधित करने का नया कारण मिल गया. विपक्ष में चाहे जो कोई हो यही करता है लेकिन सत्‍ता में आते ही अपनी पिछली करनी को भूल जाता है.

नोटबंदी की कार्रवाई पर बहुत कुछ कहा जा चुका है और अब भी बातें हो रही हैं. कई ने कहा कि प्रधानमंत्री की मंशा अच्‍छी थी- काले धन के स्रोत को काटना. लेकिन जिस तरीके से यह योजना लागू की गई वह कुप्रबंधित और गड़बड़ था.

भ्रष्‍टाचार से युक्‍त यूपीए के राज में 'मौन-मोहन' सिंह करार दिए गए मनमोहन जब इस तमाम बहस के बीच राज्‍यसभा में खड़े हुए और अपने भाषण से उन्‍होंने सरकार की हवा निकाल दी, तो हर कोई थोड़ी देर तक तो हैरत में चुप रहा. उसके बाद उनके ऊपर हमले शुरू हो गए.

मनमोहन ने अपने भाषण में अर्थशास्‍त्री जॉन मेनार्ड कीन्‍स को उद्धृत किया था (कीन्‍स की ही तरह मनमोहन भी कैम्ब्रिज में पढ़े हैं).

सौजन्य: पीटीआई

उन्‍होंने कहा, वे लोग जो कह रहे हैं कि यह कदम तात्‍कालिक रूप से कुछ नुकसान या कष्‍ट पहुंचाएगा लेकिन लंबी अवधि में देश के हित में होगा, उन्‍हें याद दिलाया जाना चाहिए, जो कभी जॉन कीन्‍स ने कहा था- लंबी दौड़ में हम सब मर चुके होंगे.

( मनमोहन सिंह का पूरा भाषण यहां पढ़ा जा सकता है क्‍योंकि यह लेख उस भाषण पर केंद्रित नहीं है.)

तर्क बनाम कुतर्क

उन नेताओं और विरोधी दलों को छोड़ दें जिन्‍होंने प्रत्‍याशित तरीके से पूर्व प्रधानमंत्री पर जुबानी हमला किया, लेकिन ट्विटर पर तो लोग पागल हो गए. लोगों ने वहां इस बात का मजाक उड़ाया कि आमतौर पर शांत रहने वाले सिंह को क्‍या हो गया है. उनका बोलना असामान्‍य था, इसलिए कुछ के लिए मनोरंजक था तो कुछ को यह आतंकित भी कर गया.

दो मामलों में कह सकते हैं कि यह भाषण आतंकित करने वाला था.

पहला, जैसा कि फर्स्‍टपोस्‍ट के इस आलेख में कहा गया है, जब आप तथ्‍यों को चुनौती नहीं दे पाते तो कीचड़ उछालते हैं. सिंह के अधिकतर आलोचकों ने यही रास्‍ता चुना.

मनमोहन: 'मैं प्रधानमंत्री से जानना चाहूंगा कि क्‍या उनके खयाल में एक भी ऐसा देश मौजूद है जहां लोगों को बैंक में जमा किया अपना ही पैसा निकालने की छूट न हो.'

आलोचक: '2जी याद है?’ (खीस के साथ)

मनमोहन: 'मेरे विचार में इस योजना को जिस तरीके से लागू किया गया है, वह देश में कृषि वृद्धि, छोटे उद्योगों और अर्थव्‍यवस्‍था के अनौपचारिक क्षेत्र में जुड़े तमाम लोगों को चोट पहुंचाएगा. मेरा मानना है कि राष्‍ट्रीय आय यानि कि जीडीपी इस कदम के कारण 2 फीसदी नीचे गिर सकती है.'

आलोचक: 'जीडीपी आदि तो ठीक है, लेकिन कॉमनवेल्‍थ खेल का क्‍या हुआ? सुरेश कलमाड़ी आजकल कहां हैं?'

Source: Getty Images

यह सिलसिला अनंत है, लेकिन वास्‍तव में मूर्खतापूर्ण है. एक सरकार की नाकामी के लिए एक अर्थशास्‍त्री पर कीचड़ उछालना, जिसे वास्‍तव में पता है कि वह क्‍या बात कह रहा है, अद्भुत विवेकहीनता है.

2जी घोटाले, कोयला घोटाले, चॉपर घोटाले, कॉमनवेल्‍थ घोटाले, कैश फॉर वोट घोटाले, आदि हर चीज को उठाकर मनमोहन के मुंह पर फेंक देना और नोटबंदी के मुद्दे पर उनके कहे पर सवाल उठा देना दरअसल वैसे ही है, जैसे किसी समाचार प्रतिष्‍ठान के प्रतिष्ठित पूर्व संपादक से कहा जाए कि उसे पत्रकारीय नैतिकता पर कुछ भी बोलने का हक इसलिए नहीं है क्‍योंकि उसका स्‍टाफ चोरी की खबरें लिखता था.

अंधी आलोचना

मनमोहन आरबीआइ के गवर्नर रह चुके हैं और केंद्रीय वित्‍त मंत्री भी रह चुके हैं. वे हमेशा से आदमी सही थे लेकिन गलत जगह पर थे.

शायद इसीलिए उनके संबंध में खबर की हेडलाइन ऐसे लिखना आम बात थी- 'मनमोहन सिंह: दि राइट मैन ऐट दि रॉन्ग टाइम'. संयोग से कुछ ऐसी ही बात अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में भी कही गई थी- दि राइट मैन इन दि रॉन्ग पार्टी.

पूर्व प्रधानमंत्री के कठोरतम आलोचक भी यह बात कह चुके हैं कि राजनीति दरअसल धारणा का खेल है और कांग्रेस की ताकतवर अध्‍यक्ष के साथ सह-अस्तित्‍व इतना आसान काम नहीं था. सिंह कभी भी गैर-परंपरागत नेता नहीं रहे. वास्‍तव में, वे एक शांत और बुद्धिजीवी अर्थशास्‍त्री थे, जो अपने ऊपर तमाम राजनीतिक दबावों से थक चुके थे. ये बात अलग है कि एक अरब भारतीयों को घोटालों में झोंक दिए जाने का यह कोई बचाव नहीं हो सकता.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मनमोहन नहीं होते तो परमाणु क्षेत्र में भारत अब भी अलग-थलग पड़ा रहता. वे 2008 में अमेरिका के साथ 123 समझौता करवाने में निर्णायक थे.

मनमोहन के तीखे आलोचकों में कोई एक नहीं है जो उनकी आर्थिक मेधा की बात करता हो. यह सच है कि आपकी प्रतिष्‍ठा आपके पिछले काम से ही तय होती है और मनमोहन की त्रासदी यह है कि प्रधानमंत्री के बतौर वे उपलब्धियों से काफी दूर रहे. उन्‍होंने हालांकि एक बार जरूर कही थी कि मीडिया और विपक्ष के बजाय इतिहास उनके साथ उदारता बरतेगा. यह बात अब सही जान पड़ती है.

मनमोहन ने पूर्व प्रधानमंत्री के बतौर राज्‍यसभा को संबोधित नहीं किया था. वे एक अर्थशास्‍त्री की हैसियत से बोल रहे थे. मोदी सरकार के समर्थकों की यह खासियत रही है कि वे सरकार की गड़बडि़यों की ओर से अपने आंख, नाक और काम बंद रखते हैं वरना खुद मोदी भाषण खत्‍म होने के बाद मनमोहन के पास गए और उनसे हाथ मिलाया.

मनमोहन की गलती यह थी अपने राज में वे उतने उग्र नहीं थे लेकिन कांग्रेस भी तो कभी ऐसी पार्टी नहीं रही जहां कोई हाईकमान का अतिक्रमण कर के कामयाब हो जाए.

साहसिक व आक्रामक

मनमोहन के भाषण के बाद बीजेपी के समर्थकों ने वही किया जो उन्‍हें सबसे बढ़िया आता है. वे मुद्दा भूल गए और मनमोहन को निशाना बनाने लगे. एक बात की यहां उपेक्षा नहीं की जा सकती है. वो यह कि सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि न केवल भारत बल्कि दुनिया को हिला देने वाले रातोंरात लिए गए एक फैसले से करोड़ों लोग हलकान हैं. वेंकैया नायडू जैसे बीजेपी के वरिष्‍ठ नेताओं के बयान दिखाते हैं कि कुशल से कुशल राजनेता भी मूर्खतापूर्ण बातें कर सकते हैं.

उन्‍होंने कहा था, प्रसव में पीड़ा होती है लेकिन मां जब अपने बच्‍चे का चेहरा पहली बार देखती है तो उसका सुख असीम होता है.

राज्‍य और उसके नागरिकों के बीच बच्‍चे और मां का रिश्‍ता कायम करना बहुत खतरनाक है.

मनमोहन के आलोचक अगर ध्‍यान दे रहे होंगे, तो उन्‍हें इस बात का अहसास हुआ होगा कि उनका भाषण एक चतुर राजनेता का संबोधन था क्‍योंकि योजना के गड़बड़ क्रियान्‍वयन को आड़े हाथों लेते हुए भी पूर्व प्रधानमंत्री ने बहुत सतर्कता के साथ नोटबंदी के नतीजों को नहीं छुआ और उससे बच निकले.

Photo: Getty Images

उन्‍होंने कहा था, 'और मैं पूरी जिम्‍मेदारी के साथ कह रहा हूं कि हमें नहीं मालूम इसका अंतिम नतीजा क्‍या होगा.'

एक अर्थशास्‍त्री, आरबीआइ के पूर्व गवर्नर और पूर्व वित्‍त मंत्री के बतौर मनमोहन नोटबंदी के तात्‍कालिक और दीर्घकालिक परिणामों का विश्‍लेषण कर सकते थे लेकिन उन्‍होंने इस कदम को खारिज नहीं किया. यह एक साहसिक और आक्रामक नेता का भाषण था, विनम्र व मृदुभाषी मनमोहन का नहीं.

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