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'अम्मा' के बाद तमिलनाडु में बीजेपी के लिए मौका

बीजेपी तमिलनाडु की राजनीति में बड़ी खिलाड़ी बन सकती है.

Sreemoy Talukdar

जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु और केंद्र के राजनीतिक समीकरण का बदलना तय हो गया है. जनता के बीच जयललिता की लोकप्रियता के बारे में पहले भी काफी कुछ कहा जा चुका है. लेकिन जयललिता का असर तमिलनाडु की सरहदों से भी आगे था.

जयललिता की बीमारी से जंग और फिर निधन के बाद से मची सियासी उथल-पुथल का असर केंद्र में भी देखा जा रहा है. जब से एआईएडीएमके की प्रमुख अस्पताल में भर्ती थीं, तब से तमिलनाडु की सांसें अटकी हुई थी.


प्रशासन ऑटोपायलट मोड पर चल रहा था और विपक्ष का भी यही हाल था. एक तरफ जयललिता की बीमारी से डॉक्टरों की टीम जूझ रही थी, दूसरी तरफ डीएमके के उम्रदराज नेता करुणानिधि की हालत भी नाजुक थी. दो दिग्गज नेताओं की बीमारी के बीच झूलते राज्य में वक्त मानो ठहर सा गया था.

जयललिता के जाते ही मची हलचल

इस स्थिति में बदलाव उस वक्त आया जब रविवार रात जयललिता को दिल का दौरा पड़ा. भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा. कई जगह हिंसा होने के बाद केंद्र ने बागडोर अपने हाथ में ले ली. जयललिता को दिल का दौरा पड़ने और निधन के बीच के वक्त में गवर्नर सी विद्यासागर राव बेहद सक्रिय भूमिका में नजर आए.

उन्होंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए और मुंबई से सीधे अपोलो अस्पताल पहुंचे. जिसके बाद केंद्र ने एम्स से विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम भेजी. केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू भी हालात पर नजर रखने और एआईएडीएमके का हौसला बढ़ाने के लिए चेन्नई पहुंच गए. वहां से वो लगातार प्रधानमंत्री मोदी को हालात की रिपोर्ट दे रहे थे.

जब ऐसे संकेत मिलने लगे कि जयललिता की जान नहीं बचेगी (वो राज्य की तीसरी मुख्यमंत्री हैं जिनका पद पर रहते हुए निधन हो गया), तो केंद्र सरकार ने राज्य के हालात पर निगरानी बढ़ा दी. डर था कि जयललिता के निधन से हालात बेकाबू हो सकते हैं. ऐसे में केंद्र का हर स्थिति के लिए तैयार रहना जरूरी था.

सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ही नहीं, देश के तमाम दिग्गज नेता जयललिता को श्रद्धांजलि देने के लिए चेन्नई पहुंचे. नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, शिवराज सिंह चौहान, अरविंद केजरीवाल, पिनराई विजयन, वी. नारायणसामी और राहुल गांधी के साथ अलावा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जयललिता को श्रद्धांजलि देने चेन्नई पहुंचे. ममता बनर्जी ने अपने दो दूत चेन्नई भेजे. जयललिता के निधन पर सियासी नेताओं की मौजूदगी ने आने वाले सियासी समीकरण के संकेत दिए.

चौकन्नी मोदी सरकार

मोदी सरकार के लिए जयललिता की मौत ऐसे वक्त में हुई है जब राज्यों और केंद्र के रिश्ते बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था पहले ही मुश्किल दौर से गुजर रही है. उस पर अब सरकार जीएसटी लागू करने की तैयारी में है. ऐसे वक्त में केंद्र को राज्यों के सहयोग की जरूरत है. इस मौके पर जयललिता के निधन से पैदा हुए हालात से निपटने के लिए मोदी सरकार को अपनी रणनीति नए सिरे से तैयार करनी होगी.

संसद में एआईएडीएमके काफी ताकतवर है. उसके लोकसभा में 37 और राज्यसभा में 13 सांसद हैं. ऐसे में एनडीए के लिए उसका सहयोग जरूरी है. जयललिता के बाद तमिलनाडु की राजनीति में तेज उतार-चढ़ाव के बाद केंद्र सरकार की कोशिश होगी कि हालात उसके काबू में हों. मोदी सरकार चाहेगी कि जयललिता के बाद पार्टी और राज्य में जो भी ताकतवर हो, उससे बेहतर संबंध हों.

हालांकि ये आसान नहीं होगा. जयललिता की लोकप्रियता से पन्नीरसेल्वम को शुरुआती चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी. उम्मीद है कि जयललिता के जाने के बाद पार्टी नहीं टूटेगी. अरुणाचल या उत्तराखंड जैसी रणनीति दोहराने की कोशिश में अगर मोदी सरकार इस तरह की टूट कराने की कोशिश करती है, तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

जयललिता का जाना मोदी के लिए एक दोस्त का गुजर जाना है. दोनों के बीच बेहद अच्छे संबंध थे. प्रधानमंत्री मोदी का बयान और उनका श्रद्धांजलि देने के लिए चेन्नई जाना इस अच्छे संबंध की गवाही देता है.

शशिकला पुष्पा और शशिकला

चेन्नई में पीएम मोदी ने जयललिता की बेहद करीबी रही और अब पार्टी से निकाली जा चुकी सांसद शशिकला पुष्पा के साथ कुछ वक्त बिताया. ये राजनीतिक लिहाज से बहुत अहम है. साथ ही पीएम मोदी जयललिता की करीबी सहयोगी शशिकला से भी मिले. शशिकला अब किंगमेकर की भूमिका में हैं. ऐसे में जयललिता के निधन के बाद पीएम मोदी के लिए उनके साथ बेहतर संबंध बेहद जरूरी हैं.

शशिकला और जयललिता

जैसा कि सी एल मनोज ने इकोनॉमिक टाइम्स में लिखा, 'एआईएडीएमके में अलग-अलग गुटों की लड़ाई में शशिकला गुट को जीतने के लिए केंद्र के सहयोग की सख्त जरूरत है. हाल ही में जीएसटी पर एआईएडीएमके का बदला रुख और केंद्र की 'उदय' योजना को पार्टी का समर्थन इस बात का संकेत है कि शशिकला केंद्र से बेहतर रिश्ते चाहती हैं. एआईएडीएमके अभी नोटबंदी का विरोध कर रही है. ये शायद इस बात का संकेत है कि वो इसे केंद्र से मोल-भाव के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है. खुद शशिकला पर आमदनी से ज्यादा संपत्ति का केस चल रहा है. ऐसे में वो केंद्र के दवाब में आ सकती हैं, ताकि सत्ता का आसानी से ट्रांसफर हो सके.'

इस वक्त तमिलनाडु विधानसभा में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं है, हालांकि हाल के विधानसभा उपचुनावों में पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. पार्टी ने 2.5 फीसदी वोट हासिल करके डीएमके को चौथे नंबर पर धकेल दिया था. हालांकि बीजेपी का फिलहाल तमिलनाडु में यूपी की तरह चुनाव लड़कर अपनी ताकत बढ़ाने का इरादा नहीं, पर जयललिता की मौत और डीएमके के अंदरूनी झगड़े से बीजेपी को राज्य में अपनी पहुंच बढ़ाने का मौका दिख रहा है.

जयललिता के बिना एआईएडीएमके नेतृत्वविहीन हो गई है. क्योंकि पार्टी में दूसरी लाइन के नेताओं की जमात ही नहीं. ऐसे में राज्य की सरकार को अपने आपको बचाए रखने के लिए केंद्र से सहयोग की जरूरत होगी.

ऐसे में अगर बीजेपी अपने पत्ते सही ढंग से खेलती है तो वो तमिलनाडु की राजनीति में बड़ी खिलाड़ी बन सकती है.