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सरयू के पार: योगी जी धीरे धीरे... योगी जी... वाह योगी जी!

योगी को सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए महायज्ञ की शपथ लेनी होगी.

Kinshuk Praval

यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी के सामने विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल की 40 सीटों की जिम्मेदारी थी लेकिन अब ये जिम्मेदारी बढ़कर 80 लोकसभा सीटों तक भी जा पहुंची है.

योगी सरकार के एक एक एक्शन पर पीएमओ की भी नजर बनी हुई है. यूपी जैसे सूबे को पीएम मोदी सिर्फ योगी भरोसे छोड़कर साल 2019 की तैयारियां नहीं कर सकते. ऐसे में योगी के लिए भले ही संन्यास लेने का फैसला उतना चुनौती भरा न रहा हो लेकिन अब जो चुनौतियां उनके सामने हैं वो उनके लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं.


यूपी को पीएम के सपनों का प्रदेश बनाएंगे योगी?

सरकार में आते ही योगी के बड़े फैसलों ने सोई पड़ी व्यवस्था में हड़कंप तो मचा दिया. सरकार के हर फैसले की तारीफ तो आलोचना भी होती है. आलोचनाओं को सहने की क्षमता राजनीतिज्ञ को बड़ा बनाती है.

योगी ये सबक पीएम मोदी के पिछले पंद्रह साल के अनुभवों से सीख सकते हैं. क्योंकि योगी के लिए पीएम मोदी आदर्श हैं और योगी उनके बताए रास्तों का पालन करना चाहते हैं. संसद में योगी ने कहा भी था कि वो यूपी को पीएम के सपनों का प्रदेश बनाएंगे.

योगी के आदर्श हैं पीएम मोदी

लेकिन योगी के साथ उनका पुराना इतिहास उनके वर्तमान के साथ साथ चल रहा है. हिंदू युवा वाहिनी सेना और भगवा वेश योगी की कट्टर हिंदुत्व की परिभाषा गढ़ने के लिए काफी है. जिस तरह यूपी में बीजेपी को मिली 325 सीटें चौंकाने के लिए काफी हैं उतना ही योगी को सीएम बनाने का फैसला भी.

सूबे का अल्पसंख्यक अपनी असुरक्षा की भावना की वजह से ही कभी कांग्रेस, कभी बीएसपी तो कभी एसपी में अपनी शरणगाह तलाशता रहा है. उसकी असुरक्षा ही राजनीतिक दलों के लिए वोटबैंक का काम करता आया है. अब उसी यूपी में राम मंदिर का मुद्दा फिर सांस भर रहा है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन खुद कोर्ट ने इस धार्मिक मसले को आपसी बातचीत से सुलझाने का सुझाव भी दिया है.

ऐसे में आस्था के मुद्दे ने बहस और दावों के दरवाजे खोल दिए है. सुब्रमहण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा कि मुस्लिमों को सरयू नदी के पार मस्जिद बनाने के मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए. वरना 2018 में राज्यसभा में बहुमत मिलने के बाद राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बना देंगे. हालांकि सच्चाई ये है कि राज्यसभा में मोदी सरकार अल्पमत में है. ऐसे में कानून बना पाना इतना आसान नहीं है.

लेकिन योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद देश के सबसे विवादित और संवेदनशील मसले पर यूपी में सियासी करवट का ये आगाज भर है. हालांकि योगी ने साफ कर दिया कि वो 18 से 20 घंटे यूपी के विकास के लिए काम करेंगे. उन्होंने गुंडों को सुधरने या फिर यूपी छोड़कर जाने के लिए ताकीद भी कर दिया. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि उनकी सरकार तुष्टीकरण नहीं करेगी. वो सांप्रदायिक सौहार्द बना कर चलेंगे.

लेकिन एक वर्ग योगी से उम्मीद करता है कि वो राम मंदिर के लिए कोई बड़ा कदम जरूर उठाएंगे. जैसा कि 1992 में यूपी में कल्याण सिंह की सरकार के वक्त हुआ. लेकिन पिछले 25 साल में सरयू में पानी बहुत कम हुआ है. उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की नरसिम्हा राव की सरकार थी.

नया योगी यूपी पर राज कर रहा है

यूपी में बीजेपी की सरकार को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद न सिर्फ सत्ता से हाथ धोना पड़ा बल्कि 'राम लहर पर कुर्बान’ होने वाली बीजेपी को फिर पंद्रह साल वनवास भी झेलना पड़ा. तब की राम लहर पर अब मोदी लहर भारी है. मोदी के विकास मॉडल के यूपी में ब्रांड एम्बेसडर हैं आदित्यनाथ योगी.

गोरखपुर में भले ही योगी ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष से अपना संबोधन समाप्त करें लेकिन वो भी ये जानते हैं कि बीजेपी के घोषणापत्र में राम मंदिर बनवाने का मुद्दा किस कोने में था.

योगी को ये बखूबी समझना होगा कि अब वो आदित्यनाथ नहीं हैं जो राम मंदिर के मुद्दे पर अपने बयानों से रामभक्तों में जोश भर दिया करते थे. अब यही जोश भरने का काम सुब्रमण्यम स्वामी और शिवसेना कर रही है.

शिवसेना का कहना है कि ‘अगर योगी के सीएम रहते राम मंदिर नहीं बना तो कभी नहीं बन पाएगा.’ तो वही साधु-महंतों का कहना है कि ‘केंद्र में मोदी और यूपी में योगी का संयोग भगवान का बनाया हुआ है, अब राम जन्मभूमि पर मंदिर बनना चाहिए.’

भव्य राम मंदिर का सपना देखने वाले वर्ग से वर्तमान एक सवाल कर रहा है कि क्या यूपी का महा-जनादेश राम मंदिर के लिए मिला? क्या यूपी में पूर्ण बहुमत योगी को सीएम फेस रखने पर मिला?

ये दोनों ही सवाल यूपी के चुनावी नतीजों को परखने के लिए काफी हैं. ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा ही यूपी में जीत का आधार है. चाहे वो साल 2014 का लोकसभा चुनाव हो या फिर साल 2017 की यूपी चुनाव की जीत.

ऐसे में राम भक्तो सियासतदां को उस पुराने योगी को भूलना होगा क्योंकि नया योगी अब उस विकास के मंदिर का पुजारी है जहां 22 करोड़ देवी-देवता मौजूद हैं. विपक्ष में रह कर नारे लगाना और सत्ता में रह कर संविधान की मर्यादा के दायरे में काम करने में बेहद फर्क है.

अयोध्या फैसला सरयू नदी के किनारे से करना होगा

पीएम मोदी 125 करोड़ हिंदुस्तानियों की बात करते हैं और योगी अब 22 करोड़ यूपी वासियों की बात कर रहे हैं. योगी को अब अयोध्या के भविष्य का फैसला सरयू के पार से ही करना होगा ताकि वो किसी आंदोलने के आवेग में राजधर्म से भटके नहीं.

कहा जाता है कि कमजोर हाथों में राजदंड सुरक्षित नहीं रहता है. ऐसे में योगी को सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के महायज्ञ की शपथ लेनी होगी. साथ ही यूपी में विकास के मंदिर को धीरे-धीरे ही सही लेकिन भव्य बनाएं ताकि लोग कह सकें– योगी जी वाह योगी जी!