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AAP में आशुतोष का राजनीतिक सफर इस्तीफे पर ही खत्म होना था

कई महीनों में ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे आशुतोष को निराशा हुई और उन्होंने ये फैसला लिया

Pallavi Rebbapragada

पूर्व पत्रकार और आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष ने आखिरकार पार्टी का साथ छोड़ दिया है. ये खबर भले ही अचानक आई हो लेकिन पार्टी में हो रही घटनाओं के चलते आशुतोष को ये फैसला लेना ही था.

2014 में आशुतोष ने आम आदमी पार्टी से चांदनी चौक सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था. वो तीसरे नंबर पर आए. जुलाई 2014 में उन्हें दिल्ली आप का संयोजक बनाया गया. दुर्गेश पाठक और दिलीप पांडेय को सह-संयोजक बनाया गया.


जब गोवा विधानसभा के चुनाव आए तो आशुतोष इस बात पर काफी जोर दे रहे थे कि पार्टी को गोवा में चुनाव लड़ना चाहिए. गोवा में पार्टी का नेतृत्व पंकज गुप्ता और सीआईएसएफ डीजी और केजरीवाल के पूर्व सलाहकार राकेश सिन्हा ने किया. अब पंकज गुप्ता को चांदनी चौक लोकसभा का प्रभारी बना दिया गया है.

राकेश सिन्हा और आशुतोष जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी में बैचमेट रह चुके हैं और दोनों की पार्टी की लिबरल और एंटी कास्ट आवाज के रूप में पहचान रही है.

आशुतोष वक्त-वक्त पर पार्टी के फैसले के उलट भी अपनी आवाज उठाते थे. ऐसे कई मौके आए, जब उन्होंने अपनी विचारधारा के मुताबिक स्टैंड लिया. वो सामूहिकता के बीच व्यक्तिगतता के पक्षधर थे. इसका एक नमूना तब दिखा जब एससी/एसटी मंत्री संदीप कुमार सेक्स टेप विवाद में फंस गए और पार्टी ने उन्हें तुरंत नैतिक आधार पर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. उस वक्त आशुतोष ने संदीप सिंह का साथ देते हुए कहा था कि किसी की भी निजी जिंदगी उसके सार्वजनिक जीवन से अलग होनी चाहिए और उन्होंने जो किया, वो अपराध नहीं था. आशुतोष ने इस पर एक ब्लॉग पोस्ट लिखकर इस कदम की निंदा की थी.

इसके अलावा आशुतोष को केजरीवाल-सिसोदिया की ओर से किए गए वादों के बाद भी कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई, राज्यसभा में भी टिकट नहीं मिला और पिछले कुछ वक्त से आशुतोष को एहसास हो गया था कि लोकसभा में भी पार्टी का भविष्य अधर में है तब से वो इस्तीफा देना चाहते थे.

आप के कुछ सूत्रों का कहना है कि वो दुखी हैं कि पार्टी की एक मुखर लिबरल आवाज इस सामाजिक राजनीतिक आंदोलन को छोड़कर जा रही है.