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राहुल के लिए 2जी और गुजरात परिणाम 2019 का रण जीतने के लिए काफी नहीं

सीबीआई अदालत का फैसला, राहुल के लिए एक अच्छा राजनीतिक मौका जरूर है कि वे 2 जी घोटाले का इस्तेमाल बतौर एक राजनीतिक हथियार के रूप में बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ कर सकें

Dinesh Unnikrishnan

जिस वक्‍त में राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अपना काम शुरू किया है, वो शायद इससे बेहतर नहीं हो सकता. उनके गुजरात के मंदिरों के अनगिनत दौरों ने कुछ बहुत शक्तिशाली देवताओं का ध्यान अपनी ओर जरूर ही खींचा है क्योंकि वह अब भाग्‍य की लहरों पर सवार होकर पार्टी प्रमुख के रूप में अपनी पारी की शुरुआत कर रहे हैं. गुजरात में नंबरों की गुणा गणित में शिकस्‍त के बावजूद, राज्य के विधानसभा चुनावों को व्यापक रूप से कांग्रेस की जीत के रूप में देखा जा रहा है.

इन दिनों के दौर में ‘पप्पू’ को लेकर चुटकले जरा कम बन रहे हैं. महाराष्ट्र के बीजेपी सहयोगी शिवसेना समेत ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों के प्रमुख राहुल के नई पैकेजिंग वाले अवतार का समर्थन कर रहे हैं. इस राज्य में कांग्रेस में शुक्रवार को नई जान उस समय फूंकी गई, जब मुंबई हाईकोर्ट ने आदर्श घोटाला मामले में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर मुकदमा चलाने के लिए महाराष्ट्र के गवर्नर सी विद्यासागर राव की मंजूरी को दरकिनार कर दिया. और फायनली, गुरुवार को सीबीआई कोर्ट ने 2 जी स्पेक्ट्रम स्‍कैम में जो फैसला दिया वो पार्टी के लिए बड़ी राहत के रूप में सामने आया. कांग्रेस ने बिना वक्‍त गंवाए इसका इस्‍तेमाल करते हुए खुद को भारत के सबसे बड़े भ्रष्‍टाचार घोटाले में बेदाग बताने में कोई कोताही नहीं बरती.


अब 2 जी मामले का राजनीतिक इस्तेमाल करना मोदी के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस अब अपने पैतरों को और अधिक मजबूती दे रही है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कुछ पसंदीदा राजनीतिक बातों की चमक को खो रहे हैं. 2 जी मामले में कम से कम आपराधिक नजरिए से, सीबीआई की स्‍पेशल कोर्ट ने सभी अभियुक्तों को बरी करके इस पर चल रही बहस की गुजांइश ही खत्‍म कर दी है. इसका असर ये होगा कि मोदी को अब अपनी राजनीतिक रैलियों में 2 जी घोटाले को बतौर हथियार की तरह इस्‍तेमाल करना टेढ़ी खीर होगा. अगर मोदी अदालत के फैसले पर सवाल उठाते हैं, तो उनके आलोचक, गुजरात दंगों के मामले में उनके खिलाफ उसी बयान का इस्तेमाल करने से नहीं चूकेंगे.

किस्‍मत के जिन घोड़ों पर इस समय राहुल सवारी गांठे हुए हैं, वे, हमेशा हर जंग में उनका परचम नहीं लहराएंगे. यह शायद उनके (अभी तक) सफलता और असफलता के बीच झूल रहे राजनीतिक कैरियर में एक बड़ा मौका है, जिसकी मदद से वे खुद को योद्धा साबित कर सकते हैं. गुजरात ने साबित कर दिया कि मोदी कोई अतिमानव नहीं हैं और वह कठिन लड़ाई में कमजोर भी पड़ सकते हैं. हकीकत में, कांग्रेस उठापटक के खेल के आखिरी मोड़ में उस मुकाम तक पहुंच ही गई थी जहां उसे मोदी के गढ़ में फतह नसीब हो सकती थी. अगर राहुल ने इसी रफ्तार को बनाए रखा और विपक्ष को एकजुट बनाया तो मुमकिन है कि मोदी 2019 में अजेय शक्ति नहीं रहें.

फिलहाल कांग्रेस के लिए स्थानीय गठजोड़ अहम

लेकिन, ऐसा होने के लिए, गांधी को पहले तो जमीन पर अपनी पार्टी के बुनियादी ढांचे को बदलना होगा. चूंकि 2014 में मोदी सत्ता में आए थे, इसलिए कांग्रेस निराश हो चुके वरिष्ठ नेताओं, महत्वाकांक्षी नेताओं और जमीनी काम करने वाले मगर अब दिशाहीन वर्कर्स का समूह हो गया है. नए कांग्रेस अध्यक्ष को अपनी ताकत की पहचान और उसे संजो के रखने करने के लिए राज्य के नेताओं के साथ मिलकर काम करना चाहिए. स्थानीय गठजोड़ अहम है और ये राहुल के लिए मुख्य राजनीतिक चुनौती है. मिसाल के तौर पर, मोदी से निपटने के लिए केंद्र में वामपंथियों के साथ दोस्ती करना आसान नहीं होगा, क्‍योंकि तब केरल के वामपंथी कार्यकर्ताओं को अपने साथ लाना मुश्किल होगा.

राहुल को अब अधिक होशियारी से प्‍लानिंग करना और लोकल यूनिट्स की फिर से इंजीनियरिंग करना जरूरी है. सीबीआई अदालत का फैसला, राहुल के लिए एक अच्छा राजनीतिक मौका जरूर है कि वे 2 जी घोटाले का इस्तेमाल बतौर एक राजनीतिक हथियार के रूप में बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ कर सकें. उनके दल के नेता ऐसा कर भी रहे हैं. बीजेपी ने इसे 2014 के लोकसभा चुनाव में और उसके बाद इसका लाभ के लिए इस्तेमाल किया है. बीजेपी इस मामले में पहले जितनी ताकतवर नहीं रहेगी. कांग्रेस खुद को पीड़ित बताने का खेल खेलेगी और वोटरों को ये समझने की कोशिश करेगी कि बीजेपी एक ऐसे मुद्दे पर चुनाव जीती है जहां यूपीए सरकार ने कोई गलत काम नहीं किया.

सिर्फ 2 जी ही काफी नहीं है राहुल को लड़ाई जीतने के लिए

कम से कम इस घोटाले में आपराधिक नजरिए से क्‍लीन चिट मिल गई है. लेकिन जैसा कि पहले कहा है, अकेले ये फैसला राहुल के लिए बंद दरवाजों की चाबी का काम नहीं करेगा. उनकी राजनीति करने का जो तौर तरीका है उसमें गहारई की कमी है. मोदी और बीजेपी के खिलाफ उनके राजनीतिक कदम काफी हद तक प्रतिक्रियावादी रहे हैं. राहुल के पास कोई ताजा, ठोस बात नहीं है, शिवाय इसके कि उन्‍होंने मतदाताओं को कुछ मुफ्त में देने और पैसे वाले उद्योगपतियों पर गरीब को लूटने का आरोप लगाया है. शुरुआत में, राहुल को देश के लिए एक विश्वसनीय आर्थिक एजेंडे तैयार करने की जरुरत है. वह नोटबंदी और जीएसटी को इकोनॉमी को नुकसान पहुंचाने वाला जुड़वां टॉरपीडो बताते हैं, लेकिन वे ब्‍लैक मनी की इकोनॉमी को रोकने या बेहतर जीएसटी ढांचे के प्‍लान पर चुप्‍पी साधे हुए हैं. मोदी ने इनकी मदद से इसे हासिल करने की कोशिश की है.

अगर सोशल मीडिया पर मोदी पर हुई लफ्फाजी को छोड़ दिया है, तो राहुल के पास अभी तक सरकार के आर्थिक नीतियों में फेल होने और उसकी कमियों का सामना करने के लिए स्पष्ट और विवेकपूर्ण आर्थिक रूपरेखा नहीं है. इसके आगे, राहुल को विवादास्पद मुद्दों जैसे बहुमत/अल्पसंख्यक संतुलन, जाति की राजनीति- जहां जवाब देना मुश्किल होता है, उसके लिए अपने नजरिए को तैयार करना होगा. गुजरात में उनकी मंदिर तक की दौड़ और ‘जनेऊ पहनने वाले हिंदू’ का ऐलान वोटरों के लिए काफी नहीं है. अगर राहुल सही वक्‍त पर सही चीजें करते हैं, और किस्‍मत उनका साथ देती है तो, नए कांग्रेस अध्यक्ष अंधेरों की दलदल में फंसी अपनी पार्टी को निकाल कर उसे उसके सुनहरे दिनों की ओर ले जा सकते हैं.