view all

2 जी फैसले पर कांग्रेस की खुशी कहीं ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना तो नहीं’

कांग्रेस को ये सोचना होगा कि ‘रेनकोट’ पहन कर नहाने से भले ही छींटे कम पड़ें लेकिन दाग़ तो लगते ही हैं

Kinshuk Praval

राजनीति में कभी-कभी दाग अच्छे भी हो सकते हैं. शायद 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले पर सीबीआई कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस यही जताने और बताने की कोशिश कर रही है. 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले से पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि की बेटी और पूर्व सांसद कनिमोड़ी के बरी होने पर कांग्रेस में जश्न इस तरह है जैसे ‘खोया हुआ खजाना’ उन्हें मिल गया. लेकिन सवाल ये है कि यूपीए के घटक दल के इन दो बड़े चेहरों की रिहाई को कांग्रेस अपने पक्ष में क्यों भुनाने में जुट गई है. जबकि यूपीए सरकार के वक्त दर्ज हुए 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में एक भी कांग्रेसी नेता को आरोपी नहीं बनाया गया था. अकेले ए राजा और कनिमोड़ी पर ही गाज गिरी थी. गठबंधन की कीमत भी इन दोनों की पार्टी डीएमके को ही चुकानी पड़ी थी.

दरअसल जब घोटाले पर शोर मचा था तो पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने 2जी स्पैक्ट्रम पर अपनी प्रतिक्रिया में गठबंधन धर्म को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था. उन्होंने कहा था कि गठबंधन की मजबूरी की वजह से ही ए राजा को ये टेलीकॉम मंत्रालय देना पड़ा था क्योंकि डीएमके की पहली पसंद ए राजा थे. पूर्व पीएम ने ये भी कहा था कि शिकायत मिलने के बाद भी वो टूजी स्पेक्ट्रम डील में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर पाए. ये उनके ही शब्द थे. यानी उनको शिकायतें मिलने की खबर थी.


कांग्रेस ने 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला मामले में बहुत सफाई से डीएमके से किनारा कर लिया था. जबकि ए राजा ने सीबीआई कोर्ट की सुनवाई में ये तक कहा था कि तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी चिदंबरम को बिना नीलामी की स्पैक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया की पूरी जानकारी थी. यहां तक कि ये भी आरोप लगाया था कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने हिस्सेदारी बेचने को पीएम के सामने गलत नहीं ठहराया और कहा था कि इससे विदेशी निवेश आकर्षित होगा.

जेल में बंद ए राजा की दलील थी कि अगर वो गलत हैं तो केवल उन पर ही उंगली क्यों उठाई गई? साफ है कि जब तक राजा गठबंधन का धर्म निभा सकते थे उन्होंने निभाया और बाद में जब उनका भ्रम टूटा तो सीबीआई कोर्ट के सामने अपना पक्ष भी रख दिया. किसी आरोपी पूर्व दूरसंचार मंत्री का बयान सीधे तौर पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करता था लेकिन राजा और कनीमोड़ी को ही 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले में धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा और आपराधिक साजिश रचने का आरोपी बनाया गया.

कोर्ट ने नहीं कहा कि 'नहीं हुआ घोटाला'

ऐसे में कांग्रेस की 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर आए फैसले से खुशी समझ से परे है. खासतौर से तब जबकि टू जी घोटाले में न तो मनमोहन सिंह और न ही चिदंबरम आरोपी थे. अब जबकि ए राजा बाहर और कनीमोड़ी को कोर्ट ने बरी कर दिया है तो कांग्रेस इसे अपनी नैतिक जीत बता रही है. सवाल उठता है कि ये नैतिक जीत कहां से साबित होती है?

पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि ‘कोर्ट के फैसले से साबित हो गया कि हमारी सरकार पर जो घोटाले के आरोप लगाए गए थे वो झूठे थे'. कांग्रेस को अपनी इस खुशी से पहले कोर्ट के फैसले को भी समझना चाहिए. कोर्ट ने ये नहीं कहा है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला नहीं हुआ है. कोर्ट का फैसला साफ है कि सीबीआई सबूत पेश करने में नाकाम रही है.

सुप्रीम कोर्ट रद्द कर चुकी है 122 लाइसेंस

दूसरा बड़ा सवाल ये भी उठता है कि अगर स्पैक्ट्रम घोटाले में कैग की रिपोर्ट आधारहीन थी तो फिर सुप्रीम कोर्ट ने उसे तरजीह क्यों दी?

साल 2010 में कैग की रिपोर्ट ने साल 2008 में 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल उठाए थे. रिपोर्ट के मुताबिक स्पेक्ट्रम को नीलामी के बजाए 'पहले आओ, पहले पाओ' की तर्ज पर बांटा गया जिसमें बंदरबांट हुई थी. रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के फैसले से देश के खजाने को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. कैग का कहना था कि नीलामी के जरिए यदि स्‍पैक्‍ट्रम का आवंटन होता तो यह रकम सरकारी खजाने में जाती. कैग की ही रिपोर्ट को आधार मान कर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2012 में 9 टेलीकॉम कंपनियों को मिले 122 लाइसेंस रद्द किए थे.

हालांकि जब 2 जी मामले में साल 2011 में ट्रायल शुरू हुआ तो सीबीआई ने 30 हजार 984 करोड़ रुपए के नुकसान का आंकलन किया. इसके बावजूद वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल 2 जी स्पैक्ट्रम आवंटन को ‘जीरो लॉस’ बता रहे हैं.

साफ है कि कांग्रेस टू जी पर फैसले को मौजूदा हालात में सबसे बड़े राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है. लेकिन कांग्रेस को ये सोचना होगा कि ‘रेनकोट’ पहन कर नहाने से भले ही छींटे कम पड़े लेकिन दाग़ तो लगते ही हैं.

यूपीए शासन में घोटालों की गूंज

यूपीए के शासनकाल में सिर्फ 2जी स्पेक्ट्रम का ही एक घोटाला नहीं था. घोटालों की फेहरिस्त लंबी है. यूपीए सरकार के दस साल में जिस तेजी से घोटालों की गूंज हुई वो देश के सियासी इतिहास में पहले कभी नहीं सुनाई पड़ी. 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाला, कोलगेट, रेलगेट, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श हाउसिंग घोटाला आदि अभी जिंदा हैं.

कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की वजह से ही कांग्रेसी नेता सुरेश कलमाड़ी को न सिर्फ अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि जेल भी जाना पड़ा था. कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में करीब 70 हजार करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े की बात सामने आई थी. बिना अस्तित्व की कंपनियों को भुगतान किया गया था.

कैग की ही रिपोर्ट ने अरबों-खरबों रुपये के कोयला घोटाले का खुलासा किया था. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2004 से 2009 के दरम्यान बिना नीलामी के कंपनियों को 155 कोल ब्लॉकों का आवंटन कर दिया गया था. क्या ये कोल ब्लॉक राष्ट्रीय संपत्ति नहीं थे?

कोयला घोटाले की आंच पीएमओ तक भी पहुंची थी और पीटीआई के मुताबिक  पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को हिंडाल्को कोल ब्लॉक मामले में सीबीआई के सवालों से रूबरू होना पड़ा था. हो सकता है कि उस वक्त भी उनकी खामोशी ने तमाम सवालों की आबरु को बचाने का काम किया हो.

साल 2010 में इटली की कंपनी फिनमैकानिका के साथ 12 अगस्ता वैस्टलैंड हेलीकॉप्टर की डील की गई थी. ये हेलीकॉप्टर वीवीआईपी लोगों के लिए खरीदे जा रहे थे. इस डील में हुए घोटाले की जांच भी अब सीबीआई के पास है.

प्रतीकात्मक

कांग्रेस नेता पवन बंसल को जब रेल मंत्रालय सौंपा गया तो रेलवे बोर्ड के चेयरमैन पद के लिए करोड़ों रुपये की घूस का खुलासा हुआ जिसके बाद पवन बंसल को इस्तीफा देना पड़ा और उनके भांजे को गिरफ्तार किया गया.

यहां तक कि यूपीए सरकार की सबसे महत्वाकांक्षा योजना मनरेगा तक में दस हजार करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई.

अतीत के घोटालों के आरोपों से कांग्रेस अभी पाक-साफ साबित नहीं हुई है. ऐसे में 2जी स्पेक्ट्रम को लेकर जश्न कई सवाल खड़े करता है खासतौर से तब जब कि ए राजा और कनिमोड़ी को उनके हाल पर अकेला छोड़ दिया गया था. अब उनके बरी होने पर कांग्रेस की ये खुशी कुछ वैसी ही है जैसे ‘बेगानी शादी में अबदुल्ला दीवाना’.