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नोटबंदी: मनमोहन के अनुमान से ज्यादा होगा नुकसान

नोटबंदी के बाद व्यापार में 40 प्रतिशत तक की कमी आई है.

Arvind Mohan

नोटबंदी के जो इंडिकेशन्स आ रहे हैं, उनके हिसाब से व्यापार में 40 प्रतिशत तक की कमी आई है. इसके अलावा 80 लाख जो ट्रक हैं देश में, उनके व्यापार में भी कमी आई है. मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि व्यापार पर असर दिखाई देने लगा है.

प्रधानमंत्री ने 50 दिन का समय मांगा है. लेकिन इतने समय में सबकुछ ठीक होने वाला नहीं है. अर्थव्यवस्था में मुद्रापूर्ति को 8 नवंबर के स्तर पर लाने में 4 महीने का समय चाहिए. जीडीपी पर 2 प्रतिशत के असर को लेकर मनमोहन सिंह ने एक रिस्पॉन्सिबल विपक्ष के तौर पर इसको थोड़ा कम करके ही बताया है जबकि इसका असर कम से कम 3 से 3.5 प्रतिशत हो सकता है.


अब ये बिल्कुल स्पष्ट है कि कैसे एक अवसर को क्राइसिस में कैसे बदला जाए, ये इसका उदाहरण बन गया है. अगर नोटबंदी योजनाबद्ध तरीके से की गई होती तो काले धन का बड़ा हिस्सा अर्थव्यवस्था की मूल धारा में जुड़ जाता और ये जीडीपी को बढ़ा देता. ऐसे वैश्विक परिवेश में जहां यूरोप अमेरिका और चीन में बड़ी समस्याएं दिख रही हैं भारत एक स्टार परफॉर्मर के रूप में दिखाई देता. इसकी वजह से क्रेडिट रेटिंग संस्थाएं हमारी रेटिंग को बेहतर कर देतीं और देशी और विदेशी निवेश इस फीलगुड फैक्टर के चलते तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई पड़ता जो भारत की विकास क्षमता को नई ऊर्जा दे देता.

योजना और तैयारी के अभाव के चलते ये संभावनाएं अब क्षीण होती दिख रही हैं. तीन दिन पूर्व कई रेटिंग एजेंसियों ने हमारी रेटिंग में सकारात्मक परिवर्तन करने से मना कर दिया है.

4 प्रतिशत हो सकता है नुकसान

अर्थव्यवस्था में हम मोटे तौर पर मानकर चलते हैं कि जब बाजार में करेंसी की सप्लाई बढ़ती है तो वो महंगाई भी बढ़ाती है. लेकिन अगर मुद्रा की विकासदर अर्थव्यवस्था की विकासदर के साथ बढ़ती है तो ये महंगाई नहीं बढ़ाती है. अगर यह विकास दर के साथ नहीं बढ़ती है तो ये विकासदर को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर देती है. आज हमने 18 लाख करोड़ की मुद्रापूर्ति में से सवा 14 लाख करोड़ (लगभग 86 प्रतिशत) की मुद्रा निकाल ली है. अब हम इसकी पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं. इस अभाव के चलते निश्चित तौर पर हमारी विकासदर नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी.

Denomination. Photo: Getty Images

ग्रोथ रेट का अलग-अलग आकलन है. एक आकलन के मुताबिक 16-17 में लगभग 7.6 प्रतिशत की ग्रोथ रहले वाली थी. जैसा कि सरकार कह रही है कि अगर दो महीने भी मुद्रापूर्ति नहीं हो पाती है. उसके चलते व्यापार और अर्थव्यवस्था चालीस प्रतिशत प्रभावित रहती है तो विकासदर पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव 4 प्रतिशत से कम नहीं होगा. यदि ब्लैक मनी का एक हिस्सा हमारी मूल अर्थव्यव्सथा में शामिल हो जाता है तो इसकी वजह से जीडीपी कुछ बढ़ी हुई जरूर दिखेगी.

वास्तव में यह उत्पादन आज भी हो रहा है लेकिन वो जीडीपी में दिखाई नहीं दे रहा है. अब वह दिखेगा. इसके चलते जीडीपी आर्टिफिशियली बढ़ी हुई दिखेगी. और कुछ हद तक जो संभावित 4 प्रतिशत की वास्तविक गिरावट होने की आशंका है वह कागजों पर न्यूट्रलाइज करती दिखेगी.

गांवों पर पड़ेगा असर

दूसरा सबसे बड़ा असर रूरल इकॉनमी पर पड़ेगा. रूरल इकॉनमी मे ज्यादातर लेन-देन कैश में होता है. इस समय इकॉनमी में कैश की भारी कमी है. एक अनुमान के मुताबिक 42 प्रतिशत लोगों के पास आज भी बैंक अकाउंट नहीं है. ये तमाम लोग रोजमर्रा का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं. देश में लगभग 45-46 प्रतिशत जीडीपी असंगठित क्षेत्र से आता है. ये सेक्टर पूरी तरीके से कैश पर आधारित है. इस सेक्टर के पास कोलाट्रल सिक्योरिटी नहीं होती और ये हमारे बैंकिंग सिस्टम से लाभांवित नहीं हो पाता.

Source: Getty Images

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में होने वाली हाउसहोल्ड सेक्टर की बचत अनौपचारिक माध्यमों से इस सेक्टर तक पहुंचती हैं और इस सेक्टर को वित्तपोषित करती हैं. नोट बंदी के चलते ये अनौपचारिक कैश फ्लो पूर्ण रूप से खत्म हो गया है. और इस सेक्टर के पास वित्त पोषण का कोई दूसरा चैनल नहीं है. कृषि क्षेत्र के बाहर ये देश का सबसे बड़ा उत्पादक और रोजगारदाता है. ये सेक्टर पूरी तरह से क्षत विक्षत होने की तरफ अग्रसर है.

रोजगार और उत्पादन घटेगा

इसके चलते देश में उत्पादन और रोजगार दोनों घटता दिखेगा. यदि तीन चार महीने में मुद्रापर्ति 8 नवंबर के स्तर पर आ भी जाती है तो भी ये क्षेत्र पूरी तरह से प्रभावित हो जाएगा और इसको अपने पुराने स्तर पर लानें मे सालों का वक्त लगेगा. क्योंकि ये अर्थव्यवस्था का सिस्टम स्विच की तरह नहीं चलता कि आपने ऑन किया तो ऑन हो गया और ऑफ किया तो ऑफ हो गया है. इसे रिवाइव होने में सालों लगेगा.

Source: Getty Images

अगर हमने नोटबंदी की योजना को सही तरीके से लागू किया होता तो हमें इसका फायदा होता. अब जो संभावित लाभ थे चाहे वे निवेश के रूप में हों या श्वेत अर्थव्यवस्था की क्षमता में आगे बढ़ाने के रूप में, उन सभी की संभावनाएं क्षीण होती दिख रही हैं. सिर्फ एक पाजिटिव इंपैक्ट होगा वह है सरकार के टैक्स कलेक्शन में संभावित बढ़ोतरी. लेकिन टैक्स बढ़ोतरी के पीछे अर्थव्यवस्था को जो कीमत चुकानी पड़ रही है वह संभावित लाभ से कहीं ज्यादा है. जिस तरह का परिवेश अब बन रहा है उसमें यह कहा जा सकता है कि अगर न्यूनतम समय में नियंत्रित नहीं किया जाता है तो देश के लिए संभावनाएं बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं.