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दलाई लामा ने जान बचाने वाले सैनिक को 58 साल बाद देखते ही गले से लगा लिया...!

जब 58 साल पहले दलाई लामा भारत आए थे तब नरेन दास उन सैनिकों में से एक थे जिन्होंने उन्हें सुरक्षा दी थी.

FP Staff

तिब्बती बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा शनिवार को दो दिनों के लिए असम की यात्रा पर गुवाहाटी पहुंचे. इस मौके पर गुवाहाटी एयरपोर्ट उनका स्वागत अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडु ने किया.


गुवाहाटी में आयोजित असम ट्रिब्यून ग्रुप के प्लैटिनम जुबली कार्यक्रम में दलाई लामा का स्वागत पारंपरिक असमिया टोपी 'जापी' पहनाकर किया गया.

इस मौके पर उनका स्वागत उन्हें असम का पारंपरिक तोहफा सराई भेंट कर के किया गया.

असम के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवल के साथ मंच पर दीप जलाते हुए बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा.

इस मौके पर दलाई लामा ने अपनी आत्मकथा ‘मेरी धरती-मेरे लोग’ का असमिया भाषा में किया गया अनुवाद ‘मोर देश अरु मोर मानुह’ का गुवाहाटी यूनिवर्सिटी में लोकार्पण किया.

गुवाहाटी में आयोजित नमामी ब्रह्मपुत्रा महोत्सव के दौरान दलाई लामा 5 असम राईफल्स के रिटायर्ड हवलदार नरेन चंद्र दास के साथ. नरेन दास उन सात भारतीय सैनिकों में से जीवित बचे एकलौते सैनिक हैं जो 1959 में दलाई लामा को सुरक्षित भारत की धरती पर लेकर आए थे.

नरेन चंद्र दास के साथ दलाई लामा. दलाई लामा साल 1959 में तिब्बत से अपनी जान बचाकर भारत आए थे. तब उन्हें सुरक्षित भारत लाने वाले सैनिकों में से एक नरेंद्र दास थे.