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बाबरी विध्वंस: हिंदू बनेंगे ना मुसलमान बनेंगे, इंसान की औलाद हैं इंसान बनेंगे

6 दिसंबर 1992 को उत्तेजित कारसेवक बैरिकेडिंग तोड़कर चबूतरे पर पहुंच चुके थे. इन सबने आडवाणी और जोशी के साथ धक्का-मुक्की की. मौके पर मौजूद अशोक सिंघल ने बीच-बचाव करना चाहा, पर वहां कोई किसी को पहचान नहीं रहा था

FP Staff

6 दिसंबर को मर्यादा पुरूषोत्तम राम के नाम पर लाखों कारसेवक ने बाबरी मस्जिद के तीनों गुंबद तोड़ दिए थे. यह तारीख नफरत और धार्मिक हिंसा के इतिहास से जुड़ गया. फोटो Getty Images

बाबरी मस्जिद 400 साल पुरानी 16वीं शताब्दी में बनी थी. कारसेवकों की इच्छा इसे तोड़कर भव्य राम मंदिर का निर्माण करना था. 6 दिसंबर के दो दिन बाद 8 दिसंबर को पुलिस विवादित ढांचे पर अपना नियंत्रण कर पाई थी.


विश्व हिंदू परिषद का ऐलान था प्रतीकात्मक कारसेवा का. लेकिन वहां माहौल चीख-चीखकर कह रहा था कि कारसेवा के लिए रोज बदलते बयान, झूठे हलफनामे, कपटसंधि करती सरकारों के लिए भले यह सब अकस्मात् हो, लेकिन कारसेवक तो इसी खातिर यहां आए थे. कारसेवकों को वही करने के लिए बुलाया गया, जो उन्होंने किया. ‘ढांचे पर विजय पाने’ और ‘गुलामी के प्रतीक को मिटाने’ के लिए ही तो वे यहां लाए गए थे.

दो सौ से दो हजार किलोमीटर दूर से जिन कारसेवकों को इस नारे के साथ लाया गया था कि ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो.’ उन्हें आखिर यही तो करना था. वे कोई भजन-कीर्तन करने नहीं आए थे. उन्हें बंद कमरों में हुए समझौतों और राजनीति से भला क्या लेना? ढाई लाख कारसेवक अयोध्या में जमा थे. नफरत, उन्माद और जुनून से लैस. उन्हें जो ट्रेनिंग दी गई थी या जिस हिंसक भाषा में समझाया गया था, उसके चलते अब उन्हें पीछे हटने को कैसे कहा जा सकता था?

बाबरी मस्जिद तोड़ने के बाद हिंदुओं का प्रदर्शन
फोटो Getty Images

6 दिसंबर 1992 को भारत में बाबरी मस्जिद तोड़ा गया. इसके जवाब में लाहौर में हिंदूओं के एक जैन मंदिर को जमीदोंज कर दिया गया. उस दौरान पाकिस्तान में 11 मंदिर मंदिर तोड़े गए थे. फोटो Getty Images

बाबरी मस्जिद विध्वंस का ही नतीजा मुंबई में हुए दंगे थे. 12 जनवरी 1993 को पूरा मुंबई जल रहा था, जिसमें कई लोगों की जान गई थी.