कई देशों में दहशत फैलाने वाला जीका वायरस भारत भी पहुंच गया है. गुजरात में जीका वायरस के तीन मरीज सामने आए हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले साल ही जीका वायरस को लेकर दुनिया भर के लोगों की सेहत के लिए खतरा बताकर आगाह किया था. इस वायरस को लेकर WHO ने इमरजेंसी एलर्ट जारी किया था.
जीका वायरस की शिकार ज्यादातर गर्भवती महिलाएं होती हैं. इनके बच्चे अविकसित दिमाग के साथ पैदा होते हैं. सबसे पहले लैटिन अमेरिकी देशों में इस बीमारी का पता चला था.
ब्राजील के कई राज्यों में इसके चलते इमरजेंसी का एलान कर दिया गया था. कई देशों ने तो नागरिकों को सलाह दी थी कि वो अभी प्रेगनेंसी न प्लान करें क्योंकि उनके आने वाले बच्चे के जीका के शिकार होने का खतरा है.
डॉक्टर कह रहे हैं कि जीका वायरस बड़ी तेजी से महामारी के तौर पर फैल रहा है. हालांकि इस बीमारी को लेकर लोगों को बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है.
चलिए आपको जीका वायरस को लेकर कुछ अहम जानकारियां देते हैं.
क्या हैं जीका के लक्षण?
जीका वायरस के शिकार लोगों की मौत बहुत कम होती है. केवल पांच से में एक मरीज की ही मौत होती है. जीका वायरस के शिकार लोगों को हल्का बुखार, कंजक्टिवाइटिस (लाल दुखती आंखें), सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, शरीर में चकत्ते की शिकायत हो जाती है.
ये असल में बहुत कम होने वाली नर्वस सिस्टम की बीमारी है. इसे वैज्ञानिक गुलियन-बार सिंड्रोम कहते हैं. इसकी वजह से अस्थाई तौर पर लकवा भी मार जाता है.
फिलहाल जीका वायरस का कोई इलाज नहीं है. इसकी कोई वैक्सीन या दवा नहीं है. इसीलिए जीका के शिकार मरीजों को ढेर सारा पानी पीने और आराम करने की सलाह दी जाती है.
इसके मरीजों के लिए सबसे बड़ी चुनौती गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर होती है. ये वायरस गर्भ में पल रहे बच्चों को माइक्रोसेफाली नाम की बीमारी का शिकार बनाता है.
क्या है माइक्रोसेफाली?
माइक्रोसेफाली आम तौर पर बच्चों को होने वाली बीमारी है. इसकी वजह से सिर का आकार छोटा रह जाता है. इसकी बड़ी वजह ये होती है कि दिमाग का पूरा विकास नहीं हो पाता. जब जन्म के समय बच्चे के सिर का आकार 31.5-32 सेंटीमीटर से भी कम हो तो उसे माइक्रोसेफाली का शिकार माना जाता है.
अमेरिका में हर साल औसतन 25 हजार बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं.
बच्चों के सिर का आकार बेहद छोटा होता है. उनका दिमाग अविकसित रह जाता है.
इस बीमारी की गंभीरता हर बच्चे में अलग तरह से दिखती है. कई बार ये जानलेना भी हो सकती है. क्योंकि कई बच्चों का दिमाग, जीने के लिए जरूरी कामों को ही नहीं कर पाता.
इस बीमारी के शिकार जो बच्चे बच जाते हैं, वो भी कम अक़्लमंद होते हैं. उनका विकास भी बहुत धीरे होता है.
माइक्रोसेफाली होने की वजह रुबेला वायरस का संक्रमण भी हो सकती है. गर्भ के दौरान आनुवांशिक बीमारियों की वजह से भी ये बीमारी हो सकती है.
ये बहुत भयानक बीमारी नहीं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जीका वायरस की वजह से माइक्रोसेफाली और गिलियन-बार सिंड्रोम जैसी बीमारियां होती हैं.
इस वायरस के शिकार कुछ बच्चों के दिमाग में ये वायरस पाया गया है. कई बच्चों की गर्भनाल में भी ये वायरस पाया गया है.
क्या इस वक्त प्रेगनेंट होना ठीक रहेगा?
कई देशों ने अपने नागरिकों को सलाह दी है कि जीका वायरस के बारे में और पड़ताल होने तक वो मां बनना टाल दें.
जानकार मानते हैं कि जीका की वजह से गर्भवती महिलाओं को कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं. इस दौरान उनका गर्भपात हो सकता है. बच्चा वक्त से पहले पैदा हो सकता है. आंख की दिक्कत भी हो सकती है.
अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल कहता है कि जीका वायरस खून में काफी दिनों तक, यानी करीब एक हफ्ते तक जिंदा रहता है. ये सेक्स करने पर दूसरे साथी के शरीर में प्रवेश कर सकता है.
अगर कोई इंसान इस वायरस का शिकार हो गया है. और एक हफ्ते बाद वो उसके खून से निकल गया है, तो इसके बाद गर्भ धारण करने पर बच्चे पर जीका का असर नहीं होगा.
फिलहाल इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि अगर किसी को जीका हुआ था तो आने वाले वक्त में उसे गर्भधारण में दिक्कत होगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को सलाह दी है कि अगर वो जीका प्रभावित इलाकों से आ रहे हैं तो सेफ सेक्स करें. बेहतर हो कि वो आठ हफ्ते तक यौन संबंध बनाने से परहेज करें.
अगर किसी जोड़े ने गर्भधारण की योजना बनाई है और इस दौरान मर्द जीका वायरस का शिकार हो जाता है, तो दंपति को कम से कम छह महीने तक सेक्स नहीं करना चाहिए.
आखिर जीका वायरस की वजह से सेहत की इमरजेंसी क्यों है?
WHO को इस बात की फिक्र हो रही है कि ये वायरस बड़ी तेजी से दुनिया के तमाम इलाकों में फैल रहा है.
इसे दुनिया के लिए चुनौती बताकर WHO ने सेहत के लिए इमरजेंसी का एलान कर दिया है. यानी जीका वायरस इबोला वायरस की तरह ही खतरनाक माना जा रहा है.
फिलहाल जीका और गर्भ में पल रहे बच्चे को होने वाली बीमारी माइक्रोसेफाली के बीच संबंध तलाशा जा रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन अब तमाम देशों के साथ मिलकर जीका वायरस से गर्भ धारण में होने वाले खतरों के बीच संबंध तलाशने की कोशिश कर रहा है.
जीका वायरस कहां से आया?
पहली बार जीका वायरस अफ्रीकी देश युगांडा के बंदरों में 1947 में पाया गया था.
इंसानों में पहली बार जीका वायरस 1954 में नाइजीरिया में पाया गया था. इसके बाद अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर के कई द्वीपों में लोग इसके शिकार हुए. हालांकि ये संक्रमण बहुत छोटे पैमाने पर हुए थे. इसी वजह से इसे इंसान के लिए बड़ा खतरा नहीं माना जाता था.
मई 2015 में ब्राजील में बड़े पैमाने पर लोग जीका वायरस के शिकार हुए. तब से ये वायरस कई देशों में फैल चुका है. इसे महामारी के तौर पर फैलने की आशंका जाहिर की जा रही है. अमेरिका का नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इसे बड़ा खतरा बताता है.
कैसे फैलता है जीका वायरस?
जीका वायरस एडीस मच्छर से फैलता है. इन्हीं मच्छरों से डेंगू और चिकनगुनिया के वायरस फैलते हैं. एडीस मच्छर पूरे एशिया में पाए जाते हैं. कनाडा और चिली के ठंडे इलाकों को छोड़ दें तो ये उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के कमोबेश सभी देशों में पाए जाते हैं.
कितने वक्त तक लोग जीका के शिकार रहते हैं?
अब तक जितनी पड़ताल की गई है उसके मुताबिक मच्छरों के काटने के करीब एक हफ्ते तक लोग जीका वायरस के शिकार रहते हैं.
अगर ये वीर्य में पहुंच जाता है, तो ये करीब दो हफ्ते तक जिंदा रहता है.
इसीलिए तमाम देश जीका प्रभावित इलाकों में रहने वालों को सुरक्षित सेक्स संबंध बनाने की सलाह देते हैं. इन इलाकों में लोगों को रक्तदान से भी मना किया जाता है.
जीका प्रभावित इलाकों का दौरा करके आए लोगों को भी एहतियात बरतने की सलाह दी जाती है.
आप इससे बचने के लिए क्या करें?
फिलहाल जीका वायरस का कोई इलाज मौजूद नहीं. ऐसे में इससे बचने के उपाय करना ही जीका से निपटने का एकमात्र तरीका है.
डॉक्टर सलाह देते हैं कि-
-आप मच्छर मारने वाली दवाएं इस्तेमाल करें.
-घर में मच्छर हों तो पूरा बदन ढंकने वाले कपड़े पहनकर रहें.
-खिड़कियां और दरवाजे बंद रखें.
-एडीस मच्छर अपने अंडे बहुत दिनों से जमा पानी में देते हैं. इसलिए आप बाल्टी या किसी और बर्तन में पानी भरकर न रखें.
-गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वो जीका वायरस प्रभावित इलाकों में न जाएं.
जीका से निपटने के लिए दुनिया में क्या किया जा रहा है?
ब्राजील में जीका वायरस के टेस्ट के लिए एक किट विकसित की जा रही है. इससे वायरस के शिकार मरीजों की जल्द पहचान हो सकेगी.
साथ ही जीका वायरस की वैक्सीन विकसित करने के लिए दुनिया के तमाम देशों में कोशिश हो रही है.
साथ ही इसके वाहक यानी एडीस मच्छरो को मारने के उपाय भी किए जा रहे हैं.
जीका वैक्सीन
अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ का कहना है कि जीका वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो गया है. जल्द ही ये बाजार में आ जाएगी.
उम्मीद है कि 2018 की शुरुआत से जीका वायरस की वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होगी. तब तक आप तमाम जरूरी एहतियात से खुद को बचाएं.
क्योंकि अंग्रेजी में कहावत है- 'इलाज से बचाव बेहतर' (प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर)