राजस्थान में जीका वायरस फैलने की अहम वजह है फॉगिंग न होना. फॉगिंग के जरिए मच्छरों को पैदा होने से रोका जाता है. जयपुर म्यूनिसिपैलिटी अस्पताल के एक डॉक्टर के मुताबिक पिछले दस साल से फॉगिंग नहीं हुई है.
जयपुर में जीका वायरस का पहला केस सामने आने के दस दिन बाद पहली बार फॉगिंग का फैसला हुआ. जयपुर डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल, हेल्थ और फेमिली वेलफेयर के चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर डॉ. नरोत्तम शर्मा कहते हैं, ‘जयपुर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (जेएमसी) और राजस्थान सरकार का स्वास्थ्य विभाग इन हालात के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं.’
शर्मा के मुताबिक जयपुर के एसएमएस गवर्नमेंट हॉस्पिटल से वायरस की रिपोर्ट सही साबित नहीं हुई. डॉक्टर्स ने पुणे स्थित लैब से पुष्टि का इंतजार किया. एक बार जब रिपोर्ट में जीका का होना साफ हुआ, उसके बाद जयपुर के शास्त्री नगर में फॉगिंग का आदेश दिया गया. यहीं से पहला केस रजिस्टर हुआ था. राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सर्राफ पहला केस सामने आने के 17 दिन बाद उस जगह का दौरा करने गए. शर्मा कहते हैं, ‘निवासियों में घबराहट थी, क्योंकि उन्हें अपने घर से नहीं निकलने दिया जा रहा था.’
इस सबसे ऊपर जेएमसी ने आसपास के निवासियों पर जुर्माना ठोक दिया. जेएमसी ने अभियान चलाया. इसके मुताबिक प्रभावित एरिया के आसपास सभी घरों में जांच की जानी थी. लार्वा मिलने की सूरत में जुर्माना लगाया जाना तय हुआ. जेएमसी के अधिकारी के मताबिक, ‘2.44 लाख कंटेनर में करीब 55 हजार अब लार्वा मुक्त हैं. 68 घरों से 44 हजार रुपए जुर्माने के तौर पर वसूले गए हैं. कुल मिलाकर, अगर मच्छर किसी घर में जाता है और वहां लार्वा पैदा करने में कामयाब होता है, तो उस घर में रहने वाले को जुर्माना देना होगा.’
कॉरपोरेशन ने ने करीब 250 टीमें बनाई हैं, जो वायरस के लक्षण पता करती हैं और उन घरों पर जुर्माना लगाती हैं, जहां से लार्वा मिलता है. प्रभावित क्षेत्रों में टीमें खून के नमूने ले रही हैं, जिससे मरीज का पता लगाया जा सके.
जीका वायरस तेजी से फैलने के बाद दो बड़ी और पांच छोटी मशीनों के लिए टेंडर स्वीकार किए गए. जेएमसी का दावा है कि अब वे मशीनें लगाई जा चुकी हैं और पूरी तरह काम कर रही हैं. जेएमसी की डॉक्टर सोनिया अग्रवाल के मुताबिक मशीनों और सुविधाओं की उपलब्धता के हिसाब से फॉगिंग की जा रही है. वायरस अब शास्त्री नगर से सिंधी कैंप राजपूत हॉस्टल पहुंच गया है, जहां छह छात्र पॉजिटिव पाए गए हैं. उन्हें अलग कर दिया गया है. करीब 150 छात्रों को अंदर ही रखा जा रहा है.
एक और मुद्दा है. फॉगिंग के लिए जिस केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है, मच्छर उसके आदी हो गए हैं. उन्हें अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा. दो दशक पहले, जब फॉगिंग के लिए केमिकल की मात्रा बढ़ाई गई थी, तब तमाम निवासी बीमार पड़ गए थे. स्किन यानी त्वचा संबंधित बीमारियों की बहुत सी शिकायतें आई थीं. इसके चलते मानवाधिकार आयोग ने फॉगिंग के लिए केमिकल के स्तर की सीमा तय कर दी थी. डॉ. अग्रवाल कहते हैं, ‘डिपार्टमेंट अब आयोग से केमिकल की मात्रा बढ़ाने को लेकर बात कर रहा है.’ अभी फॉगिंग के लिए 1:19 के रेशियो में मुख्य केमिकल पाइरेथ्रम और डीजल का इस्तेमाल होता है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में 80 लोग जीका वायरस के लिए पॉजिटिव पाए गए हैं. डिपार्टमेंट और डॉक्टर हालात पर नियंत्रण कर पाने में नाकाम दिख रहे हैं. अग्रवाल का कहना है कि अब दिन में दो बार फॉगिंग हो रही है. एक बार में तीन लगभग तीन वॉर्ड कवर हो रहे हैं. उम्मीद है कि यह प्रक्रिया 25 अक्टूबर तक चलेगी, ताकि फॉगिंग का पूरा असर हो सके. इसी तरह के हालात 2008-09 में देखे गए थे, जब शहर में स्वाइन फ्लू का पहला मामला सामने आया था.
जीका के लिए करीब 900 लोगों के सैंपल लिए गए हैं, इनमें 152 गर्भवती महिलाएं हैं. डॉक्टर्स के अनुसार वायरस इतना खतरनाक नहीं है कि इससे किसी की जान चली जाए. हालांकि, जीका का सबसे ज्यादा असर गर्भवती महिलाओं में गर्भ के पहले तीन महीने में सबसे ज्यादा होता है. इस वायरस की वजह से बच्चे के मानसिक विकास में बाधा आती है. स्वास्थ्य विभाग ने प्रभावित इलाकों में गर्भवती महिलाओं का खास ध्यान रखने का आदेश दिया है. उन पर प्रभावित इलाकों में जाने पर रोक तक लगी जा रही है. वायरस के लक्षणों में बुखार, खांसी, शरीर में दर्द और छींक आना है.
इस बीच, जेएमसी उस कंपनी के साथ भी जूझ रही है, जिसे कूड़ा इकट्ठा करने का काम सौंपा गया है. उसके साथ विवाद की वजह से आधे शहर से कूड़ा नहीं उठ रहा है. विवाद दोनों पक्षों में पैसों के एग्रीमेंट को लेकर है. जैसे-जैसे कूड़ा जमा हो रहा है, मच्छरों के लिए लार्वा पैदा करने की जगह बढ़ रही है. इससे वायरस फैलने का खतरा और ज्यादा बढ़ता जा रहा है.
(लेखक 101 रिपोर्ट्स का हिस्सा हैं.)